पूर्व चिति
पूर्वचित्ति अप्सरा -
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चित्त मेँ रहने वाली पूर्वजन्म की वासना ही पूर्वचित्ति है , भोगे हुए विषय सुख का स्मरण और उनके कारण मन
मेँ बसी हुई सूक्ष्म वासना ही पूर्वचित्ति है ।
पूर्व की वासना शीघ्र छूट नहीँ सकती । इन्द्रियो को मिला हुआ सुख वे बार बार माँगती रहेँगी । ऐसी वासना जागने पर मन को समझाना होगा कि तूने आज तक कितना सुखोपभोग किया फिर भी तृप्ति नहीँ हो पाई है, क्योँ ?
जब तक विषयोँ का आर्कषण है तब तक विषयेच्छा
नष्ट नहीँ हो पाती । विषयोँ के प्रति आर्कषण न रहने
पर विषयेच्छा नष्ट होती है। सांसारिक विषयोँ मेँ जब
तक रुचि रहती है।
तब तक जीव ज्ञान- भक्ति के मार्ग नहीँ बढ़ सकता ।
पूर्वचित्ति सभी को सताती है । पूर्वचित्ति का अर्थ है
पूर्व के संस्कार । निवृत्ति होने पर भी पूर्व की वासना
का स्मरण होते रहना ही पूर्वचित्ति है ।
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