श्रीवृन्दावन महिमामृत

🌹श्री वृन्दावन महिमामृत🌹

हास्य, नृत्य तथा गान करते-करते, अतिशय पुलकित तथा अश्रुपूर्ण नेत्रों से बार-बार स्तम्भ, स्वेद आदिति मधुर भावयुक्त होकर, अपने प्रियतम श्रीराधापति का ध्यान करते हुए रसोन्मत होकर मैं कब दीर्घकाल तक श्रीवृन्दावन में वास करूँगा।

श्रीराधा-चरण-कमलों के लावण्यलीला-माधुर्य सागर में मेरा चित्त कब अतिशय मत्त होकर अवगाहन करेगा? समसत महत् वस्तुओं को यहां तक कि मोक्षादि सम्पत्ति को भी तृणवत् परित्याग करके श्रीवृन्दावन में कब वास कर जीवन अतिवाहित कर सकूँगा।

सुन्दर मधुर ध्वनि युक्त मंजीर-शोभित श्रीपाद-पद्म की शोभा से, ऊपरी-भाग में गौरकांति तथा तल-देश के रक्तवर्ण माधुर्यप्रवाह से स्फूर्तिशील पादांगद की मणिकांति से तथा दिव्य मादांगुली-समूह से रमणीय श्रीराधा ने निज वन में विचरणस करते-करते मेरे मन को चुरा लिया है

श्रीराधाजी के चरण-कमलों के रस के महामाधुर्य में भ्रमण को उन्मत करके, लोक-प्रसंग तथा वेद-प्रसंग को भी निरतिशय तोड़ कर, किसी मधुरातिमधुर भाव की निरन्तर चित्त में चिन्ता करते-करते एवं विश्व के चित्त एवं नैनों को आकर्षण करने वाली आकृति-विशिष्ट धारण कर क्या मैं श्रीवृन्दावन मे रह सकूंगा।।

श्रीराधा जी का वह कैशोर, वह सुगौर-अंगों की विधि भंगी, वह सौंदर्य, वह अमृतवत् शीतल सुन्दर-बोलिन तथा उन सकल अश्रु-रोमांच आदि भावों को स्मरण कर कौन नहीं मुग्ध होगा।

नीलकमल-वर्ण श्रीहरि जिसके सान्द्र मधुररस से लोभायमान रहते हैं, अनन्त प्रकाश्यमान प्रफुल्लित स्वर्णपद्म के अन्तरीयकोशवत् श्रीराधा के मुखचुन्द्र का स्मरण कर।

चैतन्य और जड़ के भेद को दूर करने वाले स्वर्णोज्ज्वल चन्द्रिका प्रसारित करने वाले, श्रीकृष्ण-चकोर के एकमात्र जीवन स्वरूप श्रीराधिका मुखचन्द्र का स्मरण कर।।

परिपूर्ण मधुरतम प्रेभामृत की सार सुंदर आकृति विशिष्ट श्रीवृन्दावनेश्वरी नित्याकिशोरी को मैं नमस्कार करता हूँ।

चित्-जड़ के भेद को आच्छादन करने वाले परम उच्छलित श्रीराधा के आस्वाद्य महा प्रेमरस-सार सुगौर चन्द्रिका-समुद्र को स्मरण कर।

अप्राकृतिक नवीन युवतियों के रूप को तृणवत् तुच्छ करने वाली, एवं जिसके चरण वनभूमि में विचरण करते समय मोहिनी सखियों द्वारा शीश पर धारण किए जाते हैं, वह मेरी स्वामिनी श्रीराधा प्रकाशित हो रही हैं।।

त्रिभुवन को मोहिन करने वाली महा विदग्धा एवं नवतरुणीवृन्दों की आराध्य सर्वोज्ज्वल श्रीराधाजी का श्रीवृन्दावन में स्मरण कर।।

उन्मद, मधुर, एकमात्र प्रेमानन्द-मधुर प्रवाहित करने वाले श्रीराधा के चरण कमलों में विश्राम पाने वाली दासीगणों को मैं नमस्कार करता हूँ।

सर्व धर्महीन होकर भी, सब कुकर्म करतू हुए भी, ‘‘राधा’’ इन दो अक्षरों का सिद्ध-मन्त्र उच्चारण करके क्या तू सिद्धि को प्राप्त नहीं कर सकता?

हे श्रीवृन्दावन! आप में वास करने के लिए इन्द्रियो के पराधीन होकर परिचय दिया है, अतः मुझे त्याग मत देना।

हे श्रीवृन्दावन! चांडाल से भी महा अधम मैंने आपके प्रति कितने कोटि कुकुर्मों का आचरण नहीं किया है? ईश्वर की भी शरणस मैं ग्रहण नहीं करता, आप मेरा कुछ विधान करेंगे क्या?।

हे श्रीवृन्दावन! अति दुर्लभ पद (धाम) में वास करने की मेरी आशा है, किन्तु सब इन्द्रियों के शत्रु होने से वह भी मेरे लिए अति कठिन हो रहा है, हाय! मेरी क्या गति होगी।।

मुझे कोटि नरक भोगने पड़े, मनोरथों की प्राप्ति न हो,स अथवा ईश्वर मुझ पर दया न करें, किन्तु श्रीराधा-चरण-कमलों में मेरी लालसा कभी कम न हो।।

श्रीवृन्दावन में भ्रमण करते हुए मनोहर अंगी श्रीराधा जी के नूपुरों की मनोहर-ध्वनियुक्त चरणों की शोभा श्रीहरि के मन एवं नेत्रों को भी लुभाने वाली है, वही मेरे प्रेमातुर हृदय में स्फुरित हो ।

कैशोर अवस्था के कांति-मद-भंगी-रूप-तरंगों से परिपूर्ण माधुर्य-समुद्र में निमग्ना जो हरि-भाव मूर्ति है, एवं जिसकी भ्रू भंगिमा के इशारे से ही अनन्त कोटि कामदेव नाचने लगते हैं, वह रसमयी श्रीराधिका मेरे हृदय में प्रकाशित हों।।

सदा सर्वदा जिसका प्रत्येक अंग उच्छलित हो रहा है, दिव्यकैशोर-रूप से जो नित्य वृद्धिशील हो रहा है, नैन - भंगियुक्त लजीली हाँसी से मधुतर शोभामय मुखचन्द्र की कांति से जो प्रकाशित हो रहा है, एवं आश्चर्यमय बोलनि-चलन आदि की अखिल रसमयी चेष्टाओं से स्फुरित हो रहा है, श्रीराधा के उस माधुर्य-समुद्र में मेरा भाव-माधुर्ययुक्त मन निमग्न हो
 
🌹🍁श्री राधा🍁🌹

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