आचार्य हित रूप लाल जु

आचार्य श्रीहितरूपलाल जू को मंगल
-------------------------------------------------

जै-जै श्रीहितरूप विमल-जस गानियै |

श्रीवृषभान-सुता-पद सेव्य सु जानियै ||

ललित भजन रसरीति सकलजन उर धरी |

नब निकुंज-सुख-सम्पति जगत-विदित करी ||

करी सब जग-विदित गाथा, एक हि व्रत-निर्वह्यौ |

बलि जाउँ राधा रसिक नागर, जिननि कर गाढ़ौ गह्यौ ||

गौरांग अंगी ह्रदै मंदिर, चारू चरित वखानियै

जै- जै श्रीहितरूप विमल-जस गानियै ||१||

जै- जै श्रीहितरूप प्रेम-पूरित हियौ |

कानन विशद विलास सुकृत-संचित कियौ ||

केलि कुशल कमनीय मिथुन रसरीति सौ |

दुलरावत निशि-घौस सु पद रचि प्रीति सौ ||

प्रीति सौ रचि सु पद गुन, अभिराम विपिन-विनोद के |

नेह-गर्वित वचन सुनियत, नागरी नव कोद के ||

निजु धर्म धीर सुमित प्रसंशै, प्रनतजननि अभय दियौ |

जै- जै श्रीहितरूप प्रेम-पूरित हियौ ||२||

जै- जै श्रीहितरूप दिबाकर तम हरयौ |

रसिक-सभा-अरविन्द-ह्रदौ प्रफुलित करयौ ||

भूषन द्रिजवर-बंश दिपत मणि भाग की |

हरि-जन वर्धन मान मुरति अनुराग की ||

अनुराग मुरति जुगल-पद-रति, भाब-भीने रहत चित |

राधा धनि धन धर्म श्रीहरिलाल-नन्दन जग-विदित ||

रस-पोषि कीने सुजन सीतल, सुद्रढ़ व्रत नाहिंन टरयौ |

जै- जै श्रीहितरूप दिबाकर तम हरयौ ||३||

जै- जै श्रीहितरूप लतागृह राजही |

अलिनु-वृन्द जुत गान जहाँ जुग भ्राजही ||

उभय अमित रस-उदधि तलप निबसित भये |

सुख-संगम रस-रतन जतन करि मति लये ||

लये मति रस-रतन जतननि, कोष उर निजजन भरयौ |

पुनि धर्म रक्षा हेत अब जग, व्यासनंदन बपु धरयौ ||

वृन्दावन हित चरित कौतिक, प्रगट जननि निवाजही |

जै- जै श्रीहितरूप लतागृह राजही ||४||

Comments

Popular posts from this blog

शुद्ध भक्त चरण रेणु

श्री शिक्षा अष्टकम

श्री राधा 1008 नाम माला