आचार्य हित रूप लाल जु
आचार्य श्रीहितरूपलाल जू को मंगल
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जै-जै श्रीहितरूप विमल-जस गानियै |
श्रीवृषभान-सुता-पद सेव्य सु जानियै ||
ललित भजन रसरीति सकलजन उर धरी |
नब निकुंज-सुख-सम्पति जगत-विदित करी ||
करी सब जग-विदित गाथा, एक हि व्रत-निर्वह्यौ |
बलि जाउँ राधा रसिक नागर, जिननि कर गाढ़ौ गह्यौ ||
गौरांग अंगी ह्रदै मंदिर, चारू चरित वखानियै
जै- जै श्रीहितरूप विमल-जस गानियै ||१||
जै- जै श्रीहितरूप प्रेम-पूरित हियौ |
कानन विशद विलास सुकृत-संचित कियौ ||
केलि कुशल कमनीय मिथुन रसरीति सौ |
दुलरावत निशि-घौस सु पद रचि प्रीति सौ ||
प्रीति सौ रचि सु पद गुन, अभिराम विपिन-विनोद के |
नेह-गर्वित वचन सुनियत, नागरी नव कोद के ||
निजु धर्म धीर सुमित प्रसंशै, प्रनतजननि अभय दियौ |
जै- जै श्रीहितरूप प्रेम-पूरित हियौ ||२||
जै- जै श्रीहितरूप दिबाकर तम हरयौ |
रसिक-सभा-अरविन्द-ह्रदौ प्रफुलित करयौ ||
भूषन द्रिजवर-बंश दिपत मणि भाग की |
हरि-जन वर्धन मान मुरति अनुराग की ||
अनुराग मुरति जुगल-पद-रति, भाब-भीने रहत चित |
राधा धनि धन धर्म श्रीहरिलाल-नन्दन जग-विदित ||
रस-पोषि कीने सुजन सीतल, सुद्रढ़ व्रत नाहिंन टरयौ |
जै- जै श्रीहितरूप दिबाकर तम हरयौ ||३||
जै- जै श्रीहितरूप लतागृह राजही |
अलिनु-वृन्द जुत गान जहाँ जुग भ्राजही ||
उभय अमित रस-उदधि तलप निबसित भये |
सुख-संगम रस-रतन जतन करि मति लये ||
लये मति रस-रतन जतननि, कोष उर निजजन भरयौ |
पुनि धर्म रक्षा हेत अब जग, व्यासनंदन बपु धरयौ ||
वृन्दावन हित चरित कौतिक, प्रगट जननि निवाजही |
जै- जै श्रीहितरूप लतागृह राजही ||४||
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