प्रेम मई स्थिति

प्रेम मयी दिव्य स्थिति

चित्त में प्रेम रस का स्पर्श होते ही प्रेमी के शरीर पर और उसके व्यवहार में विशेष प्रकार के लक्षण प्रगट हो जाते हैं। श्रीध्रुवदास ने बतलाया है, ‘जिसके हृदय में प्रेम-रस उत्पन्न- होता है वह सदैव उदास रहता है। हँसना, खेलना और खान-पान आदि के सुख उसको विस्मृत हो जाते हैं। अद्भुत रूप-छटा देखकर उसकी बाणी थकित हो जाती है, उसके प्राण अपहृत हो जाते हैं और नेत्र रोते रह जाते हैं। हृदय में रूप की चोट लगने पर सारे अंग शिथिल हो जाते हैं, मुख पीला पड़ जाता है और शरीर का रंग बदल जता है। जिस पर प्रेम बेलि चढ़ जाती है वह सब सुध भूल जाता है। उस के हृदय में एक मात्र चाह का कमल फूला रहता है।’ जेहि उर उपज्यौ प्रेमरस, सो नित रहत उदास। भूल्यौ हँसिवौ, खेलिबौ, खान पान सुखवास।। रूप छटा अद्भुत निरखि, थकित भये सुख बैन। प्रान तहाँ पहिले गये, रोवत छांड़े नैन।। रूप धसकि हिय धँसि गयो, शिथिल भये सब अंग। मुख पियराई फिर गई, दबलि परयौ तन रंग।। प्रेम बेलि जेहि पर चढ़ी, गई सबै सुधि भूलि। एक कमल ध्रुव चाह कौ, ताके उर रहयौ फूलि।।[1] धर्मीं रसिक का रहन-सहन और लोक-व्यवहार उसके प्रेमी रूप के सर्वथा अनुकूल होता है। ‘प्रेम स्वरूप श्रीहरिवंश के नाम से भली भांति परिचित होने पर वह अपने को तृण से भी नीचा मानने लगता है। नाम में से निकलने वाली प्रेम की अद्भुत छटा को देखकर वह उसके आगे सदैव के लिये झुक जाता है। सदैव झुके हुए को गर्दन उठाने का अवकाश नहीं होता। वह तिनके के आगे भी झुका ही रहता है। विनत होने के कारण वह हरएक से आदर पूर्वक और हँसकर बोलता है। वह तरु के समान सहनशील होता है। उससे परिचित सब लोग उसको परम उदार कहते हैं। उसको कभी सोच स्पर्श नहीं करता और उसका मन सदैव श्रीहरिवंश के सुयश-नित्य प्रेम विहार-में समाया रहता है। वह जीवमात्र के लिये सुखदाई होता है और कभी मुख से दुखद वचन नहीं बोलता। 

satyajeet bhawan at 12:55

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