शरणागत भक्त

अपने शरणागत भक्त के लिये क्या-क्या रुप
नहीं धरते वे ! और क्यों न धरें? आश्रित की
जिम्मेवारी तो सदा से ही आश्रयदाता
की !

*किन्तु आश्रित की ही !*

*और आश्रित भी कैसा? जिसे अपनी देह की भी सुधि न हो और अवश्यंभावी मृत्यु को सम्मुख देखकर भी प्रभु के अतिरिक्त किसी का स्मरण ही न हो  उस क्षण भी वही मुस्कराते दिख रहे हों।*

तब भी यही भाव कि वही हो... देने वाले सर्वस्व न्यौछावर करने को तत्पर !

माँग ले कुछ !
और लेने वाला का भाव क्यों माँगू?
कुछ नहीं चाहिये तुम्हारे अतिरिक्त !
देनी ही है तो श्रीचरणों की रज दे दो !
उन्हें इसमें भी संकोच ! कैसे दे दूँ? चरण-रज !
भक्त-राज को !
अपराध न होगा !
कौन दे ! कौन ले !
आ लग जा मेरे वक्ष-स्थल से ! हम दोनों ही
तृप्त हों !
भक्त और भगवान ! भगवान और भक्त !
दो होकर एक ! एक होकर दो !
उद्धार के लिये ! कल्याण के लिये !

हमारे  जीवन  लाड़िलि - लाल ।
रास - बिहारिनि    रास - बिहार ,  लतिका  हेम तमाल  ।।

महाभाव  - रसमयी राधिका ,  स्याम  रसिक रसराज  ।
अनुपम  अतुल  रूप - गुन - माधुरि  अँग  - अँग  रही बिराज  ।। 

दोउ  दोउन  हित  चातक , घन प्रिय ,  दोउ मधुकर , जलजात ।
प्रेमी   प्रेमास्पद   दोउ ,  परसत  दोउ  दोउन  बर  गात ।। 

मेरे   परम   सेव्य   सुचि सरबस   दोउ   श्रीस्यामा -स्याम  ।
सेवत  रहूँ  सदा  दोउन   के चरन - कमल  अभिराम ।।

जय जय श्री राधे !   🙏🏻💐

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