प्रेम तत्व
प्रेम तत्व से सामान्य जन अनभिज्ञ है । वह केवल निज कामना को ही प्रेम जानता है चाहें वह किसी वस्तु , पदार्थ के प्रति हो , किसी मनुष्य के प्रति या स्वयं श्री भगवान के प्रति ।ये काम है प्रेम नहीं जीव की प्रकृति में प्रेम नहीं है जबकी काम सहज प्राप्त है उसे । प्रेम तत्व तो हृदय पर पडे अनन्त जन्मों के संस्कार और माया मल के धुलने के पश्चात वहाँ श्री भगवान का प्रतिबिंब झलकने पर ही वह अनभूत कर पाता है और तब जान पाता है कि प्रेम और काम में क्या अंतर है। जिसे अब तक प्रेम मान प्यारे को ताने दे रहा था वह तो केवल कामनाएँ थी । पर वे इतने प्रेमी हैं कि उसे भी प्रेम मान जीव को दे देते स्वयं को
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