प्रेम नगर की डगर

प्रेम नगर की डगर....!!!

प्रेम के नष्ट होने का कारण हो, और प्रेम नष्ट न हो, उसको प्रेम कहते हैं । हमारे संसार में मां से, बाप से, भाई से, बीबी से, पति से, जो हम प्रेम करते हैं, मन का अटैचमेंट करते हैं, इसमें उल्टा होता है । उल्टा माने? हम अपने स्वार्थ के लिए प्रेम करते हैं । तो जब हमारे स्वार्थ का नाश होता है, स्वार्थ का नुकसान होता है, तेरा वह प्रेम भी उसी लिमिट में कम होता जाता है और समाप्त हो जाता है । यहाँ तक कि हम एक दिन उसी माँ को, बाप को, बीबी को, पति को गोली मार देते हैं । तो यहाँ पर तो प्रेम है ही नहीं, पर प्रेम शब्द का गलत प्रयोग करते हैं । संसार में कोई भी किसी भी व्यक्ति से, जो मायाबद्ध है, जिसके पास प्रेम नहीं है, उससे प्रेम नहीं कर सकता । और अगर करेगा भी, या करता भी है, तो दुःख, अशांति, अतृप्ति, अपूर्णता, और चौरासी लाख का बंधन, यही मिलता है ।

सूत जी महाराज शौनकादिक परमहंसों से कहते हैं कि भक्ति में दो शर्त हैं । एक तो अपनी कामना न हो, अपनी इच्छा न हो । और दूसरी, वह निरंतर हो, सदा हो । उस को प्रेम कहते हैं । अपने सुख की। कामना न हो, और निरंतर हो । थोड़ी देर तो प्रेम हो गया, फिर झगड़ा हो गया, यह तो संसार में भी होता रहता है । सदा प्रेम हो, और सदा अपने प्रेमास्पद के सुख का ही चिंतन हो । उनको कैसे सुख दें? क्या सेवा करें कि उनको सुख मिले? यही चिंतन बने । उसको प्रेम कहते है ।

गुण देखकर अगर कहीं प्यार करोगे, तो वह प्यार भी फेल हो जायगा । जैसे संसार में हम किसी रूप से प्यार करते हैं । वह रूप बिगड़ गया, प्यार खत्म । यह स्त्री- पति का प्यार क्या होता है? एक दिन उस लड़की को देखने के लिए वह लड़का दिन- रात खाना, पीना, सोना बंद करके परेशान था । और जब वह लड़की बुढिया हो गई, या कैंसर हो गया, बीमार हो गई, हड्डी- हड्डी रह गई, तो वह देखना भी नहीं चाहता उसको । यह क्या हो गया जी? कयोंकि गुण देखकर प्यार किया । वह रूप चला गया, तो प्यार चला गया । किसी धनी से प्यार किया । यह बड़ा अरबपति है । बिल गेट्स है ।और उसका पैसा चला गया, दिवालिया हो गया, प्यार खत्म हो गया । हम किसी गुण से प्यार करेंगे, वह गुण चला जाएगा, तो प्यार भी चला जाएगा। और कामनारहितं । और कामना से प्यार करेंगे, तो कामना पूरी होगी, तो प्यार बना रहेगा । कामना पूरी होने मे कमी हो गई तो प्यार कम हो गया । और कामना बिलकुल नहीं पूरी हुई, तो प्यार खत्म । उसका आधार गलत है ।

प्रेम प्रकाश स्वरूप है । सूर्य का प्रकाश जैसे होता है । लेकिन जैसा पात्र होगा, उसी के अनुसार फल मिलेगा । प्यार करने के तरीके में अंतर नहीं है । वही इन्द्रियाँ वही मन, वही बुद्धि, जो हमारे पास है, वही तुलसीदास, सूरदास, मीरा, कबीर, शंकराचार्य बड़े- बड़े महापुरुषों के पास भी तो था । उनके पास कोई एक्सट्रा इन्द्रिय नहीं थी । और इन्द्रियों का वर्क भी जो हमारे पास है, वही वो करते हैं । मन सोचने का काम करता है, आंख देखने का काम करती है । लेकिन हमारी आँख, संसार देखने को व्याकुल है, और उनकी आँख भगवान को देखने को व्याकुल है । बस, इतना सा अंतर है । हम संसार को पाने के लिए तडप रहे हैं, वो भगवान को पाने को तडप रहे हैं । सब वैसे ही है क्रिया, कोई अंतर नहीं है । फल में अंतर है । एक को आनंद, और भगवान मिल गये, और एक को चौरासी लाख का बंधन मिला । क्रिया वही । अपनी इच्छा, अपने सुख की इच्छा न करके उनके सुख की इच्छा करो, बस ।

तेरी इच्छा दिव्य दिव्य गोविंद राधे।
मेरी इच्छा मायिक पतन करा दे।।

प्रेम एक अलौकिक वस्तु है, वो भगवान और महापुरुष के पास ही है । तो भगवान तो हमको मिलेगा नहीं पहले, महापुरुष मिलता है । तो महापुरुष के पास हमें जाना है, जिसके पास प्रेम है, उस महापुरुष के पास जाओ और उसके शरणागत होओ । और उसकी सेवा करो । उनके शरणागत होकर, उनके आदेश के अनुसार हरि- गुरु में मन का अटैचमेंट करो अपने सुख की कामना छोड़ कर । तो अंतःकरण निर्मल होगा । जब निर्मल हो जाएगा, तब फिर गुरु- कृपा से दिव्य होगा । और जब दिव्य हो जायगा, तब वह दिव्य प्रेम फ्री मे देगा । उसके लिए हमको साधना नहीं करनी पड़ेगी, माँगना भी नहीं पड़ेगा । वह तो प्रेम देने वाला देखता रहता है, कहीं बर्तन मिल जाय, और हम किसी को दे दें प्रेम । कयोंकि वह तो अपने स्वामी का दास है न। तो वह चाहता है मेरे स्वामी सब को प्रिय हो जाएँ । इसलिए तो वो गोलोक से आते हैं बड़े- बड़े अवतारी महापुरुष । संसार की ठोकरें खाते हैं, दुःख भोगते हैं संसार का । फिर भी वो लगे रहते है पीछे, की शायद अब भी यह समझ जाय, अब भी भगवान की और चल कर प्यार करके, अपना कल्याण कर ले ।
जय जय श्री राधे कृष्ण 🌹👏

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