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।।श्रीहरिः।। सखाओं का कन्हैया (ठाकुर श्रीसुदर्शनसिंहजी 'चक्र') ---------------------------------------- 7. गायक श्याम गा रहा है–अस्फुट स्वर में कुछ गा रहा है। गुनगुना रहा है, कहना चाहिये। वृन्दावनका संघन भाग–अधिकांश वृक्ष फल-भार से झुके हैं और उन पर हरित पुष्पगुच्छों से लदी लताएँ चढ़ी लहरा रही हैं। भूमि कोमल तृणों से मृदुल, हरी हो रही है। वृक्षों पर कपि हैं और अनेक प्रकार के पक्षी हैं। पूरे वन के कपि और पक्षी मानो यहीं एकत्र हो गये हैं; किन्तु इस समय न कपि कूदते- उछलते हैं, न पक्षी बोलते हैं। सब शान्त-निस्तब्ध बैठे हैं। एक भ्रमर तक तो गुनगुनाता नहीं; क्योंकि श्याम गा रहा है। गायें-सहस्रों गायें, अनेक रंगों की गायें हैं, जो प्रायः छोटी हथिनियों जैसी बड़ी हैं, स्वस्थ हैं, मोटी हैं, भारी अयान हैं उनके और सचल पर्वत जैसे वृषभ हैं, छोटे-बड़े बछड़े-बछड़ियाँ हैं। सबके सींग सजे हैं। सबके गले में अनेक रंगों ...