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।।श्रीहरिः।।

सखाओं का कन्हैया

(ठाकुर श्रीसुदर्शनसिंहजी 'चक्र')
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                7. गायक

         श्याम गा रहा है–अस्फुट स्वर में कुछ गा रहा है। गुनगुना रहा है, कहना चाहिये।
         वृन्दावनका संघन भाग–अधिकांश वृक्ष फल-भार से झुके हैं और उन पर हरित पुष्पगुच्छों से लदी लताएँ चढ़ी लहरा रही हैं। भूमि कोमल तृणों से मृदुल, हरी हो रही है।
         वृक्षों पर कपि हैं और अनेक प्रकार के पक्षी हैं। पूरे वन के कपि और पक्षी मानो यहीं एकत्र हो गये हैं; किन्तु इस समय न कपि कूदते- उछलते हैं, न पक्षी बोलते हैं। सब शान्त-निस्तब्ध बैठे हैं। एक भ्रमर तक तो गुनगुनाता नहीं; क्योंकि श्याम गा रहा है।
         गायें-सहस्रों गायें, अनेक रंगों की गायें हैं, जो प्रायः छोटी हथिनियों जैसी बड़ी हैं, स्वस्थ हैं, मोटी हैं, भारी अयान हैं उनके और सचल पर्वत जैसे वृषभ हैं, छोटे-बड़े बछड़े-बछड़ियाँ हैं। सबके सींग सजे हैं। सबके गले में अनेक रंगों की मणियों की मालाएँ हैं। सब दूर तक फैले चरने में लगे हैं। केवल कुछ बछड़े और बछड़ियाँ कभी-कभी कूदती-फुदकती हैं और बालकों के पास आकर उन्हें सूँघती हैं।
         गायों के इस विशाल यूथ में मृग, गवय, ॠक्ष, व्याघ्र-केशरी तक ऐसे आ मिले हैं और घूम रहे हैं जैसे वे भी पालित पशु हों और उन्हें भी चरने को इनके साथ छोड़ा गया हो। होने को तो इन बड़े पशुओं के मध्य-उनके पैरों के मध्य भी शशक, लोमड़ी, गिलहरी जैसे छोटे पशु भी सहस्रशः हैं और निर्भय स्वच्छन्द घूम रहे हैं।
         गोपों के साँवले या गोरे सात से दस वर्ष की वय के सैकड़ों बालक हैं। देवकुमारों जैसे स्वस्थ, सुन्दर बालक। सबकी कटि में कछनी हैं और कन्धे पर पटुके हैं। ये वस्त्र अनेक रंगों के हैं। अनेकों के कन्धों पर रस्सियाँ हैं, छीकें हैं और अनेकों ने सिर पर भी रस्सियाँ लपेट रखी हैं। करो में लकुट अथवा वेत्र हैं। शृंग, वेणु आदि हैं अनेकों के पास।
         सबके दृगों में अञ्जन है। सबके भाल तिलकांकित हैं। सबके कर्ण, कण्ठ, भुजायें, कलाई, कटि, चरण आभूषणों से भूषित हैं। सबके केश-पाश तैल-स्निग्ध हैं।
         सबके केशों में पुष्प, पल्लव तथा पक्षियों के रंग-बिरंगे पंख लगे हैं। सबके कपोल, वक्ष, उदर, पृष्ठ, भुजाएँ नाना धातु-चित्रोंसे चित्रित हैं। सबके कंठ में, भुजाओं में, कलाइयों में पुष्पमाल्य तथा गुञ्जा- मालायें हैं।
         सबके सब सिमट आये हैं एक कुञ्ज के भीतर अथवा उसके द्वारो के समीप और सब शान्त, स्थिर खड़े चित्र में मानों बने हों ऐसे हो रहे हैं।
         बालक ही स्थिर नहीं है, इस समय तो वायु की गति भी अतिशय मन्द हो रही है; क्योंकि श्याम गा रहा है।
         सघन तमाल पर पुष्पित मालती ऐसी छा गयी है कि बड़ा सुन्दर कुञ्ज बन गया है। तमाल-मूल से टिका बैठा है नन्दनन्दन और कुछ गा रहा
है।
         कन्हाई लगभग नौ वर्ष का है। इस समय उसका सर्वांग सुचित्रित है। गेरू, खड़िया, हरताल आदि से सखाओं ने इसके पूरे अंगों पर चित्र-रचना की है। ऐसी चित्र-रचना मानों भगवती वीणापाणि ने स्वयं इसे सम्पन्न किया हो और सखाओं का शृंगार करते कन्हाई के हिलते-डोलते अंगों पर यह रचना करनी पड़ी है। यह चपल स्थिर तो अब बैठा है।
         कपोलों पर विकच श्वेत पुष्पोंकी कर्णिका पर पंख फैलाये तितलियाँ अंकित हैं और ये पुष्प ऐसे बने हैं मानो पत्र-सहित इनके डंठल कानों पर रखे हों। भाल पर कुंकुम-तिलक के दोनों ओर गोरोचन की चित्रमय खौर है। नासिका तक तो अछूती नहीं और कर्ण भी रँगे हैं। एक भुजा पर शशक-शिशु बना है तो दूसरी पर कुछ कुतरती दो पैरों पर खड़ी गिलहरी बनी है। कुहनी से नीचे कर की ओर मुख किये मछलियाँ बनायी हैं किसी ने। वक्ष पर कपोत-युगल अंकित हैं तो उदर पर नृत्य करता मयूर है। लेकिन इस समय यह चित्र-रचना स्पष्ट दीखती नहीं है। दीखता है पीठ पर बना पंख फैलाये उड़ता शुक। शेष रचनाओं में अधिकांश प्रायः ढक गयी हैं।
         रेशम से लच्छों-सी कोमल-काली, घुँघराली, तैल-स्निग्ध अलकों में सखाओं ने ढेर से पुष्प, किसलय, माला सजा दी है और तीन मयूर-पिच्छ लगा दिये हैं। कानों पर पीले कनेर के पुष्प रखे हैं और अमलतास के पुष्पों की लड़ियाँ लटक रही हैं। कन्धे पर पटुका है। कण्ठ में कौस्तुभ है, वक्ष पर श्रीवत्स है; किन्तु वैजयन्ती माला, गुञ्जामाल, कुन्दमाल से वक्ष ढक गया है। भुजाओं के अंगद ढके हैं यूथिका माला से और कलाइयों में मल्लिका की माला लिपटी है।
         कन्हाई इस समय दक्षिण चरण वाम उरू पर रखे स्थिर बैठा है। कभी ताली बजाता है, कभी एक या दोनों करों से चुटकी बजाता है और थोड़ा झूमता हुआ गा रहा है।
         श्याम क्या गा रहा है ? वह अस्फुट स्वर में 'दादा-दादा' अथवा 'राधा-राधा' ऐसे ही केवल दो अक्षर गा रहा है–गुनगुना रहा है।
         विशाल लोचन अर्धोन्मीलित हो रहे हैं। सम्पूर्ण श्रीअंग रोमाञ्चित है और स्वेद से आर्द्र है। नन्दनन्दन आनन्दविभोर कुछ गाने में तन्मय है–वह गुनगुना रहा है।

*जय जय श्री राधेश्याम🙏🙏*

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