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🌹💙 सखियों के श्याम 💙🌹

🌹  *ऐसी फाँस गड़ी हिय माँहि, ना निकसे ना चैन पड़े*  🌹

 *( 31 )* 

 'री पद्मा, कछु सुनी तैने ! चम्पा आयी है। वसुधा ने कहा

'सच: कब आयी! तूने देखा?' पद्मा ने उत्सुकता से कहा; फिर उसाँस भरकर बोली- 'अब क्या देखने को आयी अभागी.... चल मैं भी मिल लूँ उससे ।'

पाटला के घर पहुँच एक दूसरे को देखते ही दोनों लिपट गयी; मुख से वाणी नहीं फूटी, कंठ रुद्ध और आँखें छलछला उठी। 'भाभी! मैं लिवा ले जाऊँ चम्पा को ?'– पद्मा ने पूछा

'वह तो आयी ही तेरे लिये है। किंतु बलि जाऊँ, तनिक दोनों बैठकर मुख जुठार लो।'– पाटला ने मनुहार की । 'अच्छा भाभी ला दे! जो कुछ हो सो खाय लें।'

खा पीकर दोनों सखियाँ यमुना तट पर जा बैठीं। 'अब कैसे आयी चम्पा! व्रज में अब बचा ही क्या है देखने को ?' पद्मा ने पूंछा।

'जीजी! सब सुन लिया है, किंतु मेरे लिये तो यह व्रजरज ही निधि है ! आप सबके और लीला स्थलियों के दर्शन कुछ कम है ?"

'किंतु व्रज का महोत्सव - नित्य महोत्सवमय ब्रज दावानल दग्ध विपिन
हो गया है बहिन!' – पद्मा रोती हुई चम्पा की गोदमें गिर पड़ी। 'धैर्य धारण करो जीजी ! सुना है, उनके कोई सखा संदेश लेकर आये हैं।'

'आये हैं बहिन ! पर आज तक मथुरा से कुछ अच्छा आया है कि अब आयेगा? वह संदेश सुनेगी-मर्म चीर कर अंगार भरे जैसा है वह! अहा श्याम जू; ऐसे कठोर निकले तुम! तुमसे तो किसी की तनिक-सी भी व्यथा सही नहीं जाती थी, आज.... आज आँखों से ओट होते ही निर्दयता की पराकाष्ठा पर उतर आये ? किशोरी जू के कोमल हृदय का भी विचार नहीं किया! एक बार तो सोचा होता..... ।'– पद्मा के आँसुओं का बाँध टूट गया।

'जीजी! ऐसा क्या संदेश है; मुझसे कहो तो! अन्ततः वह हमारे प्रिय की कही बात है।'

'सुन नहीं सकेगी चम्पा!'

'तुम कहो तो !"

'तब चल ! ऊधो जू के समीप ही चलें। हमें तो यही ज्ञात नहीं होता कि वे समझाना क्या चाहते हैं। यमुना पुलिन पर नंदा ने अपनी ओढ़नी बिछा दी थी, उसी पर उद्धव बैठे थे। कुछ सखियाँ उनके सामने मंडलाकार बैठी बतिया रही थीं। इन्हें देख एक साथ बोल उठी-' अरे चम्पा! कब आई बहिन ? आओ, तनिक तुम भी सुनकर हृदय जुड़ा लो। श्याम जू का यह अनोखा संदेश हमारे गले तो उतरा नही! सम्भव है, तुम कुछ समझ पाओ।'

चम्पा ने आगे जा उद्धव को प्रणाम किया- 'हमारे धन्यभाग, भले पधारे महाराज! श्यामसुन्दर ने हमें स्मरण किया, इसी से हम धन्य हो गयीं। यहाँ इस व्रज में उनके स्मरण करने योग्य है ही क्या ! पर माता-पिता, स्नेही सखा आदि का सम्बन्ध योगी यति भी नहीं तोड़ पाते। अब वे बहुत बड़े व्यक्ति हो गये हैं, बड़े-बड़े लोग उन्हें घेरे रहते होंगे। उन्हें समय ही कहाँ रहता होगा व्रज को, यहाँ के लोगों को स्मरण करने का ! फिर भी उन्होंने कृपा की, आपने कष्ट किया यहाँ तक आकर उनका संदेश लाने का; हम क्या कहकर कैसे आभार व्यक्त करें। हम गंवार ठहरी! कोई उचित शिष्टाचार न कर सकें - उचित शब्द न व्यवहृत कर सकें तो हमें क्षमा करने की कृपा करें और अब उनका संदेश जो भी हो- जैसा भी हो सुनाने की कृपा करें।'

चम्पा की बात सुन उद्धव के जी में जी आया। वे बेचारे किंकर्तव्य विमूढ़ से हो गये थे; जब से आये, सबने उन्हें विक्षिप्त अथवा अर्ध- विक्षिप्त मान लिया था। कैसे अपनी बात कहें- उन्हें समझायें, समझ ही नहीं पा रहे थे। कैसे जाकर श्रीकृष्ण को मुख दिखायेंगे कि उन पुरुषोत्तम का सखा-साक्षात बृहस्पति का शिष्य उद्धव गाँव की गँवार ग्वालिनों को नहीं समझा सका।

अब चम्पा की कुछ युक्तिसंगत बातें सुन उनका हृदय उत्साहित हुआ— ‘देवियों ! पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण ने जो संदेश दिया है वह सब शास्त्रों का सार है। उन्होंने कहलाया है- तुम सब जो मेरे विरह में व्याकुल हो- दुःखी रहती हो, सो अज्ञान ही इसका कारण है। मैं तो अजन्मा-नित्य-चेतन हूँ। सर्वत्र सदा उपस्थित रहता हूँ। सबके अंतःकरण में साक्षी रूप से रहता हूँ। तुम एकाग्रचित्त से मेरा ध्यान कर इस रहस्य को पा जाओगी तो दुःख-सुखादि द्वन्द तुम्हारे समीप नहीं फटक पायेंगे- तुम सदा मुझे अपने समीप ही पाओगी।'

उद्धव के चुप होने पर सब चम्पा की ओर देखने लगीं। 'और कुछ ?'– चम्पा ने पूछा।

'मैं ही सर्वत्र समरस- निराकार चेतन तत्व हूँ।' उद्धव ने कुछ डरते सहमते हुए कहा–‘मेरे अतिरिक्त कहीं कुछ नहीं है। मैं ही साकार-निराकार रूप हूँ। कुछ क्रियायें और साधन भी बताये।'

'सो सब रहने दें! अभी-अभी तो आप आये हैं, अभी तो ठहरेंगे यहाँ । हम अनपढ़ ठहरीं; एक दिन में आपका यह सारा शास्त्र ज्ञान हमारी मूढ़ बुद्धि में कैसे उतर जायेगा! किंतु एक बात जो इस संदेश में छिपी है; सम्भवतः आप भी नहीं समझ पाये! बात भी सच है; परम सखा होते हुए भी अन्ततः संदेश उनकी प्रेयसियों के लिये है, अतः गुप्त तो होगा ही!'

मेरी बहिनो! श्यामसुन्दर ने कहलाया है - सखियों! मैं तुमसे दूर रहकर भी मन से दूर नहीं हूँ। जैसे ईश्वर सर्वत्र सब समय उपस्थित रहता है, वैसे ही मेरा मन सदा सब समय तुम्हारा स्मरण करता रहता है, मैं एक क्षण को भी तुम्हें भूल नहीं पाता। जैसे योगी लोग ध्यान एकाग्र करके ईश्वर का अनुसंधान पा जाते हैं; वैसे ही यदि तुम मेरी अवस्था का अनुसन्धान करोगी, तो मेरे मन की अवस्था का अनुमान पा लोगी। मैं तुमसे तनिक भी दूर नहीं हूँ। मैंने व्रज छोड़कर एक पद भी बाहर की भूमिमें नहीं रखा है। संदेश में छिपा अर्थ यही है सखियों!'- चम्पा की बात सुन उद्धव आश्चर्य में और सखियाँ आनदं से कुछ क्षण स्तब्ध रह गयी और फिर वे सब एकाएक ही उच्च स्वरसे रो उठी।

श्रीकिशोरीजी ने चरणों में पड़ी चम्पा को उठाकर गले से लगा लिया 'अब तू कहीं न जाना चम्पा!' सुनकर चम्पा को लगा श्यामसुन्दर ने उसके लिये संदेश नहीं, पुरस्कार भेजा है। उसने कसकर किशोरीजी के चरणों को वक्ष से दबा लिया और नेत्र जल से पखारने लगी।

सखियाँ रुदन करते हुए प्रलाप करने लगी। उनकी आँखों के सामने श्यामसुन्दर की एक एक भङ्गी- एक एक चेष्टा साकार हो उठी। वे उन्हें साक्षात् सम्मुख पाकर कहने लगी- 'मोहन! तुम परम स्वतन्त्र हो, तुम पर किसी का वश नहीं चलता; क्योंकि तुम व्रजराज के लाडले लाल हो। किंतु_ हम क्या करें, तुम्हारे अतिरिक्त हम कुछ नहीं जानतीं- हमें कुछ नहीं सुहाता । तुम्हारा यह अपरूप रूप, यह विशाल वक्षःस्थल, गजशावक की सी चाल, मीठी हँसी और कमलपत्राक्ष तुम्हारे इन कोमल-कजरारे नेत्रों की यह बाँकी चितवन देखकर हम सब कुछ भूल गय हैं। हमें अपने घर, सगे-सम्बन्धी और तन का भी ध्यान नहीं रहता। हमारी दृष्टि जिधर भी उठती है तुम्हारी ही छवि दिखायी देती है। सम्पूर्ण भूवनमण्डल में हमें तुम्हारे अतिरिक्त कोई दिखायी नहीं देता।'

'तुम हमारे हो मनमोहन ! तुम.... हमारे.... हो ! हम.... तुम्हारी... चरण... किंकरियाँ... तुम्हारे... लिये,.... तुम्हारे.... दर्शन... स्पर्श... को.... तरस.... रही.... हैं, करो.... प्राणधन ! इस..... प्रकार.... की.... ठिठौली.... मत.... क्षण.... भर.... भी.... यदि.... हम.... तुम्हें.... नहीं..... देख.... पाती.... है.... तो.... हमारे.... प्राण.... ही.... निकलने.... लगते.... हैं । • हम.... तुम्हारी.... हैं, हम.... तुम्हारी.... हैं, तुम... कैसे.... जा.... सकते.... हो.... S... S... 5... ।' हमें.... त्यागकर.....

सबकी सब सखियाँ आतपदग्ध कुमुदिनियों-सी मूर्च्छित हो भूमि पर गिर पड़ी। उद्धव आश्चर्याभिभूत हो उन प्रेम प्रतिमाओं को देखते रहे । उनके भरे दृगों से टप.... टप टप.... आँसू चू पड़े।

*जय जय श्री राधेश्याम🙏🙏*

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