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🌹💙 *सखियों के श्याम* 💙🌹

🌹 *कलधौत के धाम बनाय घने महाराजन के महाराज भये* 🌹

 *(27)* 

'देवी सूर्यनंदिनी! इतनी उतावली होकर कहाँ जा रही हो?🌹
क्या कहा, मथुरा ? ☺️
अहा, सौभाग्यशालिनी हो श्रीयमुने! क्या श्यामसुन्दरसे मिलने जा रही हो ?☺️ 
क्या कहा ! इसी कार्यसे जा रही हो?🌹 
अच्छा देवी! तुम्हारे चरणों में एक छोटी-सी प्रार्थना है, स्वीकार करोगी? अपने श्यामसुन्दर से मिलो, तो कृपा कर हमारा संदेश उन तक पहुँचा देना।'💙

क्या कहती हो—'मैं अपनी बात कहूँगी कि तुम्हारा संदेश दूँगी ? 
वे राजराजेश्वर हैं। उनके पास इतना समय कहाँ कि मेरे पास बैठकर तुम सबका दुःख-सुख सुने। मैं ही कहाँ अधिक समय कहीं रुक पाती हूँ।🌹 चलते-चलते ही जो कुछ कहना है, कह देना होगा।'🌹

'आह! क्या सुन रही हूँ कि श्यामसुन्दरके पास हमारी बात सुननेका समय नहीं! ठीक है, भाग्य ही पलट गया तो उन्हें अथवा तुम्हें दोष दूँ। अभागा मन भी यह सब भाग्य-विधान समझ पाता, तो दुःख ही काहे का था। यह जो नहीं मानता; कहना ही पड़ेगा।'

'श्री यमुने! तुम्हारी ही बात सत्य लगती है। तुम तो उनके दर्शनके लिये नित्य ही मथुरा जाती हो। यदि वे मिले होते, तो तुम फूली न समाती- तुम इतनी क्षीण कलेवरा न होतीं सुनो बहिन! यदि उनसे तुम्हारी भेंट हो और तुम्हारी बात सुनने तक वे ठहरे रहें, तब मेरा संदेश तुम्हें स्मरण रहे तो कहना-इलाने.... नहीं.... नहीं! कहना एक गोपकुमारीने कहलाया है.... किंतु क्या कहूँ? क्या यह कहलाऊँ कि शीघ्र आ जाओ, तुम्हारे बिना हम मर रहीं हैं।' 'सो क्या वे नहीं जानते ?'🌹

'यदि उनके समीप कोई हुआ तो 'गोपकुमारी' सुनकर न जाने क्या समझ ले ! न..... बाबा.... न! ऐसी बात ठीक नहीं।'🌹

'तो फिर क्या कहलाऊँ ?'

'यमुनाजी! तुम कृपामयी हो। दयाकर अपनी ओर से ही कह देना—'सारा व्रज तुम्हारे विरहमें जीवन्मृत है। सब जड़-चेतन तुम्हारे दर्शनकी आशामें तड़प रहे हैं। परन्तु... परन्तु सुनकर कहीं वे दुःखी हुए तो ? उनके कमलदृग अश्रुपूर्ण हुए अथवा मूर्छित हो गये तो ? नहीं...... नहीं! हम अनन्तकालतक विरह-ज्वाला में जलती रहें, पर वे सुखी रहें। तुम उनसे कुछ न कहना, तुम्हारे पाँव पडू देवी कालिन्दी ! उन्हें कुछ न कहना। कभी तुमसे भेंट हो जाय तो उनकी कुशलवार्ता अवश्य हमें सुना देना। उनसे कुछ न कहना!'💙

*जय जय श्री राधेश्याम🙏🙏*

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