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*🌹💙सखियों के श्याम💙🌹* 

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 🌹 *श्याम हिये श्याम जिये श्याम बिना नाहिं जियें* 🌹

कैसी मूर्ख हूँ मैं, अबतक अपनी व्यथा छिपाये फिरती रही। आज सखियोंसे मिली, उनकी बातें सुनी तो ज्ञात हुआ प्रत्येक घरकी बालिका और किशोरी इसी रोगसे ग्रसित हैं। हाँ, रोग ही तो कहना होगा। अच्छे भले मनुष्यको अनमनस्क बना दे वह रोग नहीं तो और क्या है ?

यह श्यामसुंदर इन्द्रजालिक है क्या? अभी तो सातवाँ वर्ष चल रहा है, सौन्दर्यकी - भोलेपनकी सीमा है जैसे! बात व्रजकुमारियोंकी ही नहीं है, चराचर विमुग्ध है इसपर मेरा भैया विमल दिनभर श्याम के साथ ही रहता हे फिर भी जबतक घरमें होता है, कन्हाईके अतिरिक्त अन्य चर्चा जैसे उसे भाती नहीं सुहाती नहीं। 

मैया जैसे ही देखती है ‘मेरा लाल, मेरा छोना' कहकर हृदयसे लगाये रहती है। और बाबा! बाबाकी तो बात ही न्यारी है, अंकमें लिये लिये घर बाहर घूमते रहेंगे और पूछते रहेंगे- 'लाल क्या खायेगा तू ? क्या लेगा?' कभी माखन मिश्री मँगायेंगे, कभी दूध-दही, कभी मोटी रोटी, कभी फल और कभी मेवे कभी नई व्यायी बछिया दिखायेंगे और कभी कुतियाके पिल्ले श्यामसुंदर भी भाँति-भाँतिकी इच्छा प्रकर करता है; बाबा उसे पूरी कर जैसे स्वर्ग सुख पाते हैं।

एक दिन मैया हँस-हँस कर बता रही थी कि ऐसे ही बाबा श्यामसुंदरको उठाये पूछ रहे थे—'क्या लेगा लाल ?' कि कन्हाईने मैयाका लहंगा था खड़ी मेरी ओर ऊँगली उठा दी। तब वह तीन बरसका भी पूरा नहीं था और मैं डेढ़ेक वर्षकी रही होऊँगी। ऐसा मैया बता रही थी।

उसका संकेत समझ बाबा हँस पड़े थे— 'ऋचा, इधर आ!' मैं मन्थर गतिसे समीप जा खड़ी हुई।

'यह कन्नू तुझे लेगा, जायेगी इसके साथ ?" मैंने स्वीकृतिमें सिर हिला दिया। मैया माखन ले आयी थी, बाबाकी बात सुनकर नयन भर आये- 'हमारे ऐसे भाग कहाँ! यह व्रजयुवराज और

यह एक विपन्न ग्वालकी पुत्री।' इससे क्या हुआ ? हमारे पास कुछ कम गायें हैं और क्या! हमारी लाली रूप गुणकी खान है।' बाबा बोले । खिला-पिलाकर बाबा हम दोनोंको गोदमें लेकर नंदपौरपर पहुँचे थे।

वहाँ जाकर नंदबाबासे कहा- 'अहो, नंद जू ! आज तुम्हारे कुँवरने मेरे घर आकर मेरी लालीको माँग लिया है।'

'क्या हुआ ?' वहाँ बैठे गोपों सहित हँसकर व्रजराजने पूछा। 'होगा क्या!' बाबा कहने लगे-'यह मेरे घरकी पौरि पर खड़ा था, मैंने गोदमें उठाकर पूछा- लाला क्या लेगा ? तो लालीको बताकर बोला इसे लूँगा।'

मैंने पूछा–'इसका क्या करेगा? तो बोला- खेलूँगा। मैंने कहा- अच्छी
बात है लाला! दोनों यहीं खेलो। 

तो बोला- यहाँ नहीं। इसको मेरे घर ले चलो, वहीं खेलूँगा। सो व्रजराज! यह लाली आजसे आपके लालाकी हुई। हम दरिद्रोंसे क्या बन पड़ेगा, आप इसे अपने महलकी दासी बना लिजियेगा।'

'अरे भैया, यह क्या कहते हो! लाला भी तुम्हारा ही हैं, इसे विवाहका बड़ा चाव है। अभी तो समझता नहीं, बड़ा होगा तो विवाह भी करा देंगे। दासीकी क्या बात कही तुमने! बहु घरकी दासी नहीं, लक्ष्मी होती हैं।' नंदबाबाने मुझे समीप बुलाकर सिरपर हाथ फेरा और नंदन काकाके साथ हमें यशोदा मैयाके पास भेज दिया।

सब बात सुन मैयाने मुझे गोदमें उठा लिया। दुलारकरके मीठे पकवान खिलाये, नये वस्त्र पहनाये और कन्हाईके समीप बिठाके निरखने लगीं। श्यामसे रोहिणी माँने पूछा-'नीलमणि तू कितने विवाह करेगा रे ?' " इत्ते सारे श्यामने दोनों हाथ फैला कर कहा 'अच्छा, भला?"🥰

'हाँ मैया! कोई तेरे पाँव दबायेंगी, कोई मैयाके, कोई रसोई बनायेगी, कोई दही बिलोयेगी, कोई........

हँसी रोककर मैयाने पूछा- 'यह क्या करेगी ?' 'मेरे साथ खेलेगी।'

'काम-काज नहीं करेगी ?"

'नहीं मैया!'– श्यामने जोरसे नहींमें मस्तक हिला दिया। 'अच्छा नीलमणि! यह बता बेटा कि वृषभानुरायकी बेटी राधा तेरी बहु बनेगी तो क्या करेगी ?"

'उसकी तो मैं पूजा करूँगा।'

नीलसुंदरकी बातपर सब हँस पड़ी। मैयाने पुनः पूछा- 'पूजा कैसी रे?'

'जैसी तू और बाबा नारायण देवकी करते हो तिलक लगाकर, चढ़ाकर घंटी बजाकर, भोग लगाकर आरती उतारकर, चरणामृत और प्रसाद लेकर; वैसे ही।',,,🌹☺️

हँसीके मारे गोपियों का बुरा हाल हो गया। मैयाने हँसी रोककर कहा 
'बहुकी पूजा नहीं करते बावरे! वह कोई देवता है? पूजा तो प्रतिमाकी होती है।'

'कहा मैया! तू मुझसे महर्षि शाण्डिल्य, गौओंकी, ब्राह्मणों की पूजा नहीं करवाती ? ये सब क्या प्रतिमा हैं ?"

ये सब प्रतिमा न सही, पर ये बड़े हैं पृज्य हैं।'

'बहू पूज्य नहीं होती ? मैं तो करूँगा पूजा! मैं तो करूंगा!" श्यामने
हठ पकड़ ली।,,,☺️

'बहुत अच्छा! कर लेना, अभी तो इस लालीके साथ खेल।'-मैयाने अपना पिंड छुड़ाया।

चार बरस पहले की बात है।

 वे नंदभवनसे पहनाये मेरे वस्त्र मैयाने 
सम्हालके रखे हैं। कभी-कभी बात-बातमें कह देती है मैया— 
'ऋचा तो कन्हाईकी है! वाग्दानकर चुके इसके बाबा हमारे यहाँ उनकी धरोहर है, जब चाहें ले जायँ! बड़े लोग कहते हैं,
 दाऊके कारण कन्हाईका विवाह रुका है। इसके अन्य सखा और भाइयोंके तो कई-कई विवाह हो गये। जबतक बलरामको मथुरा नहीं ले जायेंगे वसुदेव अथवा यही उसका विवाह नहीं हो जाता, नंदराय अपने पुत्रका विवाह नहीं करेंगे। संकोची हैं व्रजेश्वर!'

मैं सोचती हूँ- जिस दिन श्यामसुंदरका विवाह आरम्भ होगा, तो उसका अंत नहीं आना कभी। देखती हूँ सम्पूर्ण चराचरको एक ही रोग है कृष्णचन्द्रको चाहने का! किंतु अभागी केवल हम बालिकायें ही हैं। स्थावरके समीप वे स्वयं चलकर पहुंचते हैं, उन्हें दर्शन और स्पर्श-सुख प्रदान करते हैं। चर प्राणी स्वतन्त्र है, वे स्वयं ही उनके संग लगे रहते हैं। सखा दिनभर साथ रहते हैं, बड़ोंको कहाँ कोई रोक-टोक है ? बालिकाओंमें भी कई नित्य साँझ-सबेरे नंदभवनमें उन्हें टीका करने आरती उतारने जाती हैं। इनमें से अधिकांश उनके ताऊ चाचाकी बेटियाँ हैं। आज महानंद बाबाकी बेटी महिमा अपना संग्रह दिखाकर कह रही थी- 'तू भी चलेगी साँझको नंदभवनमें ? भैया तुझे भी उपहार देंगे।'

मैं क्या कहती ? मेरा उपहार ! कंचुकीसे निकालकर पाटल-पुष्प हाथमें लेकर सूँघा मैंने वन्य-पाटल भी क्या इतने सुगन्धित होते हैं ? आज तीन दिन हो गये, पर यह जैसे अभी वृन्त विच्छिन्न हुआ हो !

उस दिन संध्याको गौओंके संग लौटते गौरज-मंडित तनपर धातुचित्र अंकित, पुष्पाभरण धारण किये श्यामसुंदर जैसे दो श्रेष्ठ नट अभिनयके लिये मंचपर उपस्थित हुए हों, चंचलदृष्टिसे इधर-उधर निहारते गाते, बंसी बजाते, सखाओंसे हँसी कौतुक करते आगे बढ़ रहे थे। गायें पुनः पुनः मुड़कर देखती चलती थीं। कुछ सखा आगे, कुछ पीछे अट्टालिकाओंसे बहिनें पुष्पों लाजा हल्दी कुंकुमकी वर्षाकर रही थीं। कर क्या रही थीं, हाथमें थामे हुए द्रव्य अपने आप छूटकर गिर रहे थे श्यामसुंदर सम्मुख हों, तो शरीरकी सुध किसे रहती है ? नयन ललककर कृपणके धनसे जा चिपटते हैं। चलते चलते दृष्टि उठाई उन्होंने रक्तिम डोरोंसे सज्जित पद्मपलाशदललोचनोंकी वह मुस्कान संयुक्त दृष्टि कौन है त्रिलोक में जो भान न भूल जाय ? दक्षिण कर उठा, अलकोंमें सजा पाटल पुष्प करमें आया और प्रश्चित हुआ; आकर हृदयपर लगा। मनकी दशा कैसे कहूँ। हृदय रोगकी यह दिव्यौपधि पाकर प्राण हर्ष विह्वल हो उठे।

हाँ, आज ज्ञात हुआ यह मेरी ही नहीं प्रत्येक सखीकी कथा है, थोड़े बहुत अंतरके साथ।

*जय जय श्री राधेश्याम🙏🙏*

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