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*🌹💙सखियों के श्याम💙🌹*
*(14)*
🌹 *नातो नेह को मानियत* 🌹
"जे कहा कर रही है री ?"
छोटी-सी घाघरी पहने, ऊपरसे खुले शरीर-बिखरे केश लिये पाँचेक वर्षकी बालिका वर्षासे गीली हुई मिट्टीमें पाँव डालकर घरौंदा बनाने का प्रयत्न कर रही थी। उसकी छोटी-सी छींटकी औढ़नी थोड़ी दूर घासपर पड़ी थी। गौरवर्ण तन स्थान-स्थानसे धूलि धूसरित हो गया था। गोल मुख, बड़ी आँखें और मोटे होठ उसके भील कन्या होनेकी घोषणा कर रहे थे।
बालिका जैसे ही पाँवपर मिट्टी थापकर संतुष्ट होकर धीरेसे पाँव खाँचती, घरौंदा किसी सुरापीके अवश तन-सा ही ढह पड़ता। वह एक बार झुंझलाती, मिट्टीको पीटती-बिखेरती और पुनः जुट पड़ती। सम्भवतः उसे जिद्द चढ़ आयी थी कि बिना किसीकी सहायताके स्वयं अपना घरौंदा बनायेगी वह ऐसा करके अपने साथी-संगियोंको दिखाना चाहती थी कि वे जो उसे चिढ़ाते थे, अब देख लें कि वह उनसे छोटी होते हुए भी समर्थ है। किंतु घरौंदा भी शायद उसीकी भाँति जिद्दी था कि दूसरेका हाथ लगे बिना बनेगा ही नहीं!
उपर्युक्त वाक्य सुनकर समझी, उसका ही कोई साथी उसे चिढ़ाने आया है। तुनककर बोली-
'तेरो सिर! कहा काज है तो कू मो सौं ? जो मेरो मन होय सो करूँ; तो कू कहा ?"
'मैं बना दूँ तेरा घरौंदा ?'
'भागेगो कि मारूँ?'–
उसने हाथमें मिट्टी उठायी उसपर फेंकने को। हाथके साथ नेत्र ऊपर उठे और वह जैसे स्थिर हो गयी। सम्मुख पीत वस्त्र और रत्नभूषणोंसे सजा सांवला सलोना उसीकी वयका अपरिचित बालक मुस्कराता खड़ा था।☺️
‘क्यों री! ऐसे क्या देख रही है?'– दाँत मोती की लड़ियोंसे चमक उठे।तो उसने हँसकर कहा,,,
'मार रही थी मुझे!
मैंने क्या बिगाड़ा है री तेरा ?
ला, मैं बना दूँ। - वह समीप आकर बैठ गया।☺️
उसके तनकी गंध - अहा कैसी मन भावनी! मिट्टी फेंकनेको उठा हाथ नीचे हो गया, किंतु आंखें यथावत अपलक उसे निहार रही थीं। 🌹💙
'नाम क्या है तेरा ?' – बालक जमकर बैठ गया था। उसने एक पाँव मिट्टीमें डालकर हाथोंसे थपथापाते हुए पूछा-
'बोलेगी नाय मो सों?
अभी तो खूब बोल रही थी।
क्या नाम है तेरा ?'☺️
'उजरी।'–
उसने धीरेसे कहा।
फिर पूछा- 'तेरो ? '
'मेरो ? मेरो नाम कन्हाई!'
कहकर वह खुलकर हँस पड़ा।
'तेरा नाम मुझे अच्छे लगा, जैसा नाम है वैसी है ही तू उजरी! मैं तो काला हूँ, इसीसे नाम भी कृष्ण मिला। मैया बाबा और सखाओंने बिगाड़कर लाड़से कन्हाई कर दिया। तुझे कैसा लगा मेरा नाम ?'
बालिकाने मुस्कराकर डबडबाई आँखोंसे बालककी ओर देखा, फिर नेत्र नीचेकर लिये
'बता न ?' 🌹
बालकने अपने धूलि भरे हाथसे उसका चिबुक उठाकर निहोरा किया।
'कन्हाई!'–
बालिकाने लजाकर कहा और फिर दोनों हँस पड़े।
'देख! कैसा बना है? -
कन्हाईने पैर धीरे से बाहर खींच लिया और बोला।
घरौंदा देखकर उजरी प्रसन्नतासे ताली बजाकर हँसने लगी। कन्हाईने घरौँदेके चारों ओर मेड़ बनायी उसके एक ओर दरवाजा बनाया और बोला ,,,
'चल उपवनमें लगानेको फूल-पत्ते बीन लायें।'
कन्हाई भी हाथ, पैर और मुखपर मिट्टी लगा चुका था💙। पटुका और कछनी भी गीली मिट्टीका स्वाद ले चुके थे। ☺️पटुका अवश्य कार्यमें बाधक जान दूर रख दिया गया था, उसे उठाकर गलेमें डाल उजरीका हाथ पकड़ बोला-
'चल।'
वह भी अपनी डेढ़-दो हाथकी ओढ़नी लेकर पैरोंमें पीतलके पैंजने छनकाती चली। उन पैंजनियोंके संग श्यामके स्वर्ण-नुपूरोंकी छम-छम बड़ी अटपटी! मानों वीणाके साथ भोंपू बज रहा हो, ऐसी लग रही थी।
'तेरा घर कहा है री ?'– कन्हाईने हाथके पुष्प भूमिपर बिछे पटुके पर धरते हुए पूछा।
उधर, भीलपल्लीमें।'-
उजरीका ध्यान पुष्प पत्र चयनमें कम और अपने नवीन सहचरकी ओर अधिक था।
"कितने बहिन-भाई हैं तेरे ?"" 'एक भी नहीं! तू बनेगा मेरा भाई ?'💙
हो ,,,,,,, । तू लड़ेगी तो नहीं मुझसे ?
मैया कहती है मैं बड़ा भोला हूँ;☺️
अरे, यह तू क्या कर रही है, फूल-पत्ते सब सूत-सूतकर डाल रही है। एक भी कामका नहीं रहा। देख ऐसे तोड़ना चाहिये!'
दोनों फूल-पत्ते लेकर लौटे, श्यामने बहुत सुन्दर उपवन बनाया। मेडके
साथ-साथ कुछ बड़ी टहनियाँ रोपकर छाया वाले वृक्ष बनाये। द्वारपर लाठी लिये पहरेदार भी खड़ा किया। छोटेसे सरोवरमें समीपके डाबरसे लाकर पानी भर दिया। यह सब देख उजरी प्रसन्नताके सागरमें मानो डूब रही थी। इतनी कारीगरी की तो उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी। किंतु सखाओंको दिखाकर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करनेकी बात वह सम्भवतः भूल गयी थी। बस वह एकटक अपने कन्हाईको देखे जा रही थी।🌹
'आ! अब मैं तुझे सजा दूँ।'- और बचे हुए पुष्प-पत्र लेकर वह उसके सम्मुख आ बैठा। उजरीके भूरे उलझे बिखरे केशोंमें पुष्पों को लगाया; माला गजरे बनाकर उसे पहनाया।🌹
'अब तू मुझे सजा!'– उसने कहा उजरीने आज्ञा मानकर अपने छोटे छोटे अनाड़ी हाथों से उसका अधपटा-सा शृङ्गार किया और दोनों हाथ पकड़कर उठ खड़े हुए उस डाबरमें अपना प्रतिबिम्ब देखने।☺️
'चल उजरी, अब खेलें।'
"कैसे ?"
'तू छिप जा, मैं तुझे ढूँढू और मेरे छिपने पर तू मुझे ढूँढ़ना !'☺️
'अच्छा! किंतु तू ही मुझे ढूँढ़ना। मुझसे यह न होगा, तू कहीं खो जाय तो!🌹
'– उजरीने व्याकुल स्वरमें कहा।
'अच्छा आ तू ही छिप जा! मैं अपनी आँखें मूँद कर खड़ा हूँ। -
कन्हाईने छोटी-छोटी हथेलियोंसे अपनी बड़ी-बड़ी आँखें ढाँप लीं। 🌹
उजरी अनमने मनसे छिपने चली। वह समीपकी एक झाड़ीमें ही बैठ गयी। कुछ समय बाद श्यामसुंदरने आँखें खोली और ढूँढ़ने चले। सामनेकी कुंजोंमें झाँकते हुए वे आगे बढ़े। उजरी अपने स्थानसे उन्हें देख रही थी। उसे दूर जाते देख वह व्याकुल हो उठी।
कितना सुन्दर भाई मिला है उसे! यदि वह साथ चलना चाहे तो, घर ले जाकर बाबा मैयाको दिखायेगी। इतनी देरमें वह ऐसी हिल-मिल गयी थी, मानो जन्मसे ही उसके साथ खेलती रही हो ।💙
अचानक चौंक पड़ी वह
'कहाँ गया कन्हाई?' अपने स्थान से निकल वह आकुल पुकार उठी-
'कन्हाई रे कन्हाई'
कभी इस कुंज और कभी उस झाड़ीमें उसका रूँधा कंठ-स्वर गूँजता -
'कन्हाई रे कन्हाई।'
तभी किसीने पीछेसे उसकी आँखें मूँद ली। झँझलाकर उसने हाथ हटा दिये, घूमकर देखते ही वह उससे लिपट गयी। नन्ही शुक्तियां मुक्ता वर्षण करने लगीं।🌹
'क्या हुआ उजरी?
मैं तो तुझे ढूँढ़ रहा था।
तू क्यों रो रही है ?'
'मैं तो पास ही उस झाड़ीमें थी तू क्यों दूर ढूँढ़ने गया मुझे ?' – वह हिल्कियोंके मध्य बोली।
'तू मुझे क्यों ढूंढ़ रही थी ?'- मैं तो तेरी पीठ पीछे ही खड़ा था। तू पुकार रही थी और मैं संग-संग चलता मुस्करा रहा था।
'हाँ ऊजरी, सच!'💙
तूने ऐसा क्यों किया ?
'मैं तुझे अच्छा लगता हूँ कि नहीं, यह देखनेके लिये।'🌹
'कन्हाई!'– उजरीके होंठ मुस्करा दिये, जल भरी आँखें श्यामके मुखपर टिकाकर वह बोली।🌹
'उजरी!'–
श्याम भी उसी प्रकार पुकार उठे और दूसरे ही क्षण दोनों एक दूसरेकी भुजाओंमें आबद्ध हो हँस पड़े।🌹
'अब मैं तुझे कहीं नहीं जाने दूँगी! कहीं फिर खो जाय तो ?'☺️
'मैं तुझे छोड़ कहीं जाऊँगा ही नहीं!'🌹
'सच ?'
'सच!'☺️
सच ही तो है, एक बार आँखों में समाकर यह निकलता ही कहाँ है।🌹💙
*जय जय श्री राधेश्याम🙏🙏*
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