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।।श्रीहरिः।।

 सखाओं का कन्हैया

(ठाकुर श्रीसुदर्शनसिंहजी 'चक्र')
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               ३-सचिन्त

          भद्र ! बाबा, भद्र कहाँ है ?' ऐसा तो कभी नही हुआ कि श्याम गोदोहन करने गोष्ठ में आ जाय और भद्र उसे दोहिनी लिये न मिले। आज भद्र कहाँ गया ? कन्हाई ने भद्र को इधर उधर देखा, पुकारा और फिर अपने दाहिने हाथ की दोहनी बांयें हाथ में लेते हुए बाबा के समीप दौड़ गया।
          राम-श्याम दोनों भाई प्रातःकाल उठते ही मुख धोकर पहिले गो-दोहन करने गोष्ठ में आते हैं। प्रातःकृत्य गोदोहन के पश्चात् होता हैं। बाबा के साथ ही भद्र सोता है। उनके साथ ही दोहनी लिये सबेरे दोनों भाइयों को गोष्ठ में मिलता है। लेकिन आज वह दीखता नहीं है।
          'तुम आ गये ?' बाबा ने भुजाएँ बढ़ाकर श्याम को अंक में लेना चाहा। उन्हें प्रतीक्षा करनी पड़ती है इन बालकों के आने की। ये दोनों न आवें तो गायें हुंकार करती रहेंगी और दूध दुहने नहीं देंगी। दोनों के गोष्ठ में आते ही सब बैठी गायें, वृषभ, बछड़े खड़े हो गये हैं। गायें हुंकार करने लगी हैं और थोड़ी पूँछ उठाकर गोमूत्र-त्याग करने लगी हैं। उन्होंने दूध उतार दिया है। अनेकों के स्तनों से दूध टपकने लगा है।
          सेवक बछड़े खोलने में लग गये हैं और वे खुलते ही अपनी माताओं के समीप दौड़ जाने के स्थान पर इन दोनों के पास दौड़कर आ रहे हैं। इन्हें सूँघ-सूँघकर इनके ही आसपास कूदने-फुदकने लगे हैं।
          गायें हुंकार कर रही हैं, प्रत्येक चाहती है कि ये पहिले उसे दुहें और बछड़े कूदकर नन्हीं 'बाँ' करके तनिक सिर से ठेलकर संकेत करने लगे हैं–मेरी माँ के पास चलो।
          दोनों भाइयों की अलकें बिखरी हैं। मस्तक पर कोई श्रृंगार नहीं। भाल पर तिलक नहीं, कन्धों पर पटुके नहीं। केवल नीली-पीली कछनियाँ हैं कटि में। चरणों में नूपुर, कटि में किंकिणी, करों में कंकण, भुजाओं में केयूर, कण्ठ में मुक्तामाल हैं, किन्तु कोई पुष्पमाला नहीं है। गुंजामालाएँ हैं गले में। दाऊ तो एक ही कान में कुण्डल पहिनते हैं, श्याम के दोनों कुण्डल अलकोंमें उलझे हैं। दोनों के अंगों में लगा अञ्जन कपोलों तक फैल गया है।
          'भद्र कहाँ है ?' श्याम बाबा की गोद में नहीं गया। इसने बाबा की वाम भुजा हिलाकर पूछा। अब इस समय न इसका ध्यान गायों की हुंकृति की ओर है, न बछड़ों के सूँघने बोलने-ठेलने की ओर। इसे अपने भद्र की चिन्ता लगी है।
          उसे तेरे छोटे चाचा घर ले गये। कुछ हुआ है उसे।' बाबा ने तनिक हँसकर कहा–'तुम दोनों गोदोहन करोगे न ?'
          भद्र को कुछ हुआ है ?' सहसा श्याम के हाथ से छूटकर दोहनी भूमि पर भड़ाम से गिर पड़ी। कमलमुख गम्भीर हो गया। वह घूमा बड़े भाई की ओर 'दादा ! भद्र को कुछ हुआ है ? चाचा उसे घर क्यों ले गये ?
          अब बाबा से यह भी पूछने का समय नहीं लगता कि 'भद्र को हुआ क्या है ?' कृष्णचन्द्र तो अग्रज का हाथ पकड़कर उन्हें भद्र के समीप ले जाने को बढ़ आया है। दोनों भाई दौड़ने को मुड़ पड़े। दाऊ ने भी दोहनी हाथ से लगभग फेंक ही दी।
          'अरे, भद्र को कोई रोग या कष्ट नहीं हुआ है !' बाबा ने शीघ्रता पूर्वक कहा और आगे बढ़कर दोनों के हाथ पकड़े–'तुम दोनों गोदोहन करो ! नित्यकर्म करके कलेऊ कर लो तो मैं साथ चलूँगा। तुम्हारी मैया को भी तो चलना है।
          क्या हुआ है उसे ?' कन्हाई ने बाबा का हाथ झकझोर दिया। बाबा उसे बतलाते क्यों नहीं कि उसके भद्र को हुआ क्या है।
          'महर्षि शाण्डिल्य आवेंगे भद्र के यहाँ विप्रवर्ग के साथ। पूजन होगा, यज्ञ होगा और .... ..
          भद्र को क्या हुआ है ?' श्याम को यह सब सुनने में कोई रुचि नहीं है। यह सब तो गोपों के घर में होता ही रहता है। भद्र क्यों सबेरे गोष्ठ में नहीं है ? उसे क्या हुआ है ?"
          लाल ! शकुन-अपशकुन की बहुत-सी बातें बालकों से नहीं कही जातीं। बाबा कहना नहीं चाहते कि कल सायंकाल उड़ते हुए किसी काक के पंख भद्र के शरीर को किञ्चित् स्पर्श कर गये थे और उस अपशकुन का आज परिमार्जन होना चाहिये, यह रात ही बाबा ने अपने छोटे भाई को समझा दिया। महर्षि शाण्डिल्य से पूछ आये स्वयं और सब व्यवस्था भी कर आये।
          'हूँ।' कन्हाई के दाहिने हाथ की मुट्ठी तनिक बँध गयी। भृकुटि पर तनिक बल पड़ा। उसने अग्रज की ओर देखा–'दादा !' 
          'भद्र को कुछ नही हुआ। उसे कुछ होने वाला नहीं है।' दाऊ ने पूरी गम्भीरता से कहा और फिर उनके अधरों पर स्मित आ गया। छोटे भाई की बँधी मुट्ठी पकड़ ली इन्होंने। अपने अनुज का स्वभाव ये जानते हैं। जो श्याम के अपने हैं–उनपर संकट की सम्भावना भी इस नन्दनन्दन को सह्य नहीं। अपनों की ओर टेढ़ी दृष्टि करने का साहस करे तो वह कोई हो–कन्हाई उसे मिटाकर रहेगा। ऐसा कौन-सा अरिष्ट–शकुनाधिदेवता है जो ब्रज में कोई दुस्साहस करेगा। फिर अनुज के अपनों की रक्षा का दायित्व अग्रज पर है और वे प्रमाद कहाँ करते हैं कि श्याम को चिन्ता करनी पड़े।
          'भद्र तो हँसता-खेलता है। वह पूजन-उत्सव के आनन्द में मग्न होगा।' बाबा ने कहा–'तुम दोनों शीघ्र गोदोहन कर लो तो हम लोग भी वहाँ चलें।
          श्याम ने अब अपनी दोहनी की ओर देखा। कोई प्रसन्न है, आनन्द में है तो भले दूर बना रहे–कनुँको कुछ नहीं सोचना; किन्तु कोई अपना कष्ट में हो, दुःखी हो, संकट में हो तो कन्हाई का स्वभाव उसकी उपेक्षा करना नहीं। यह अत्यन्त सचिन्त हो जाता है। भद्र प्रसन्न है तो अब यह गोदोहन करेगा।


*जय जय श्री राधेश्याम🙏🙏*

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