18
*🌹💙सखियों के श्याम💙🌹*
*(18)*
*🌹तुव अधीन सदा हौं तो हे श्रीराधे प्राणाधार🌹*
'किशोरीजी ! आज स्वर्ण कलशी छोड़कर यह माटीकी मटकिया क्यों ?"
'सखी! मिट्टीकी गागरके जलसे कुल देवी प्रसन्न होंगी।'— श्रीकिशोरीजीने मुस्करा कर अपने सहज मधुर स्वरमें कहा।🌹☺️
हम सब घाटपर जल भरने आयीं थी सम्मुख पुष्पित कदम्बके नीचे श्यामसुंदर अपने सखाओंके साथ हँस खेल रहे थे, कोई एकाध यमुना मैं नहा रहे थे। जो सखियाँ गगरी धो रहीं थीं, छोरे जलमें डुबकी लगा उनकी गगरी पकड़ लेते; वे खीजकर डाँटती तो हँसते हुए दूर भाग जाते।
श्रीकिशोरीजी कई सखियोंके साथ तमालके नीचे विराजमान थी, इधर-उधर ललिता-विशाखा और सम्मुख अन्य सखियाँ सब जल भरनेमें जान-बूझकर विलम्ब कर रही थी, श्याम दर्शनका ऐसा सुयोग भला कब-कब मिलता है ?💙
मैं किशोरीजीके चरणकमल अपनी गोदमें धरकर संवाहन करने लगी।
'यह क्या करती है विभा!'- उन्होंने मेरा हाथ थाम लिया।
"श्री जू! हमारे ऐसे भाग्य कहाँ कि आपकी कुछ सेवाकर सकें।'
मेरे नेत्र भर आये। जो आनंद श्यामसुंदरके स्पर्श-दर्शनमें है, वहीं आनंद किशोरीजीके स्पर्श-दर्शनमें भी है; यह सत्य हम सब सखियाँ जानती हैं। बरसानेकी सखियाँ हमसे अधिक सौभाग्य शालिनी हैं; उन्हें किशोरीजीकी सेवा सहज प्राप्य है।🌹
'विभा यह क्या कहती है बहिन! तुम्हारे भाग्यकी तो कहीं समता नहीं। श्यामसुंदरके समीप निवास, जन्मसे ही उनके दर्शन और साथ खेलनेका महाभाग्य लेकर आयी हो तुम सब।'– गद्गद कंठसे यह कहते हुए किशोरीजीने मेरा चिबुक ऊपर उठा दिया।🌹
दोनों ओर के नयनघट छलक पड़े, मैंने उनके जानुपर सिर टिकाते हुए कहा-'अब तो यह बात नहीं!'
'हाँ सखी! सो तो हमने नारी जन्म पाया है। कदम्ब तले उन सखाओंके भाग्य देख और जितना सम्भव है लोचन लाभ ले।'
गहरी साँस ले किशोरीजीने कहा—
'न जाने दिनमणि क्यों धीरे-धीरे चलते हे,कब आयेगा शरद् !'
'देख, देख सखी!'
मैंने सिर घुमाकर देखा - श्यामसुंदरने पटका- आभुषण उतारकर कदम्ब मूलमें रख दिये और कछनी काछकर सखाओंके साथ जलमें उतर पड़े।🌹
अबतक तमालकी छायामें बैठी-बतराती सखियाँ भी उठीं और अपनी-अपनी गगरियाँ लेकर पानी भरने लगीं। श्रीकिशोरीजी सीढ़ीपर बैठकर कलसी मांजने लगीं उनको स्मरण ही न रहा कि यह स्वर्ण कलशी नहीं, माटीकी गागर है।☺️
उन्हें ही क्या वहाँ किसी को किसी का ध्यान न रहा। कोई भरी गागर उलट रही थी तो कोई गागर जलमें डूबाये आपा भूल बैठी थी,
किसीकी कलशी लहरोंपर झोंके खा रही थी,
कोई गागरके धोनेके प्रयासमें उसे और अधिक मिट्टीसे लथेड़ रही थी। ☺️किसीको ज्ञात नहीं था कि उसके हाथ क्या कर रहे थे,
सबके प्राण नयनोंमें आ समाये थे।
देख रही थीं हम सब अग-जग भूल श्यामसुंदरकी जल क्रीड़ा |
वे संतरण करते हुए कभी हमारे समीप आ जाते और कभी दूर चले जाते कभी मित्रों के साथ मुखमें जल भर उसकी धार छोड़नेकी होड़ करते और कभी एक दूसरेको पकड़ने दौड़ते। कभी डूबकी मारकर दूसरेका पाँव पकड़कर खींच लेते। उनके कमलनयन आनन्दसे उद्भासित थे और मुखसे आह्लाद-उल्लास झर रहा था। घुंघराली अलकें कंधों, कपोलों और ललाटपर गीली होकर चिपक गय थीं। उनके हाथ-पैरोंके तलवे ऊपर उठते तो लगता चार रक्त कमल यमुनाकी लहरोंपर नृत्य कर रहे हैं।🌹
एकाएक हमारी भाव-समाधि टूटी, श्यामसुंदर तटके समीप आकर जल उछालने लगे, हमारे वस्त्र भीग गये।
'यह क्या करते हो कन्हाई! देखो हम सब भीग गयी- पाटलाने कहा।
'अच्छा ही तो हुआ। जलमें उतरकर न नहायी, सो मैंने नहला दिया। -☺️
सखाओंके साथ वे जोरसे हँस पड़े। यही नहीं! उन्होंने मुखमें जल भरकर धार छोड़ी जो सीधी किशोरीजीकी कलसीमें पड़ी।☺️
इससे चंद्रावलीजी चिढ़कर बोली- 'बड़े घरके ढोटा कहावौ श्यामसुंदर जू! तुम्हारी ऐसी करनी? कुलदेवीकी पूजाके लिये हम जल भरने आयीं थी और तुमने कलशी जूठी कर दी? देवी-देवताओंका भी डर नहीं तुम्हें ? इन लक्षणोंसे कोई तुम्हारे गाँवमें बसा भी रहेगा ?"
'मेरा गाँव बसे कि उजडे, इसमें तेरा क्या आता-जाता है ? तेरा बरसानातो बसा रहेगा न, फिर चिंतामें क्यों सूख रही है ? '☺️
श्यामसुंदरके मुखकी दूसरी धार चन्द्रावलीजीके मुखपर पड़ी। अब तो सखाओंको खेल मिल गया। सब जल उछालने और मुखसे पानीकी धार छोड़ने लगे। सखियाँ चिढ़कर भला-बुरा कहने लगीं। 🌹
चंद्रावलीजीने चुनरीसे मुखको पोंछते हुए नयन तिरछे और होठ बिचका कर कहा- 'इस बुद्धिपर बलिहार। राधा, उठो बहिन! इन ढीठ लंगूरोंका क्या है ? ये छोटे-बड़ेका अन्तर क्या समझें गँवार कहींके; कहीं तुमपर जूठा पानी डाल देंगे।' उन्होंने किशोरीजीका हाथ पकड़कर उठा दिया।🌹
श्यामने पुनः मुखसे जल छोड़ा और किशोरीजी नहा गयीं। उनका शरीर पनसफलकी भाँति कंटकित हो काँपने लगा और अध-मूँदे नयन श्याम मुखकमलके भृंग हो गये।💙
'हम लंगरोंका क्या है सखी! हम गँवार ही तो ठहरे।' उन्होंने घड़ा फोड़नेको कंकड़ उठाया।☺️
'श्याम जू! तुम तो बड़े अच्छे हो, सदा हमारी सहायता करते हो; बड़ी बड़ी विपत्तियों से व्रजको बचाया है। घड़े फोड़नेकी अनीति मत करो मोहन! मैया हमें डाँटेगी।'—मैंने कहा।
'अच्छा सखी! चलो, मैं तुम्हारे घड़े उठवा दूँ। अब तुम सब जाओ यहाँसे, हम नहा रहे हैं; फिर कुछ हो गया तो बकने लगोगी।'☺️
हमने शीघ्रता पूर्वक घड़े भरे और उन्होंने उठवा दिये। किशोरीजीको आगे करके चले हम, पर मन-प्राण पीछे रह गये। उसी समय सन्न करता एक कंकड़ आया और चंद्रावलीजीका घड़ा फट्टसे हो गया। वे जलसे नहा गयीं। नयनोंमें हँसी और मुखमें क्रोध भरकर उन्होंने पुनः सबको लंगर-गँवारकी गाली दी। ☺️
श्यामसुंदरने दोनों हाथोंके अँगूठे दिखाकर मुँह चिढ़ा दिया। सखा सब ठठाकर हँस पड़े।🌹
'मैया हो मैया!'
'कौन है ? क्या है री ?' मैया बोली।
‘देख मैया! तेरे लालाने हमपर जूठा पानी डाल दिया। बरसानेसे हम देवीकी पूजाके लिये जल भरने आयी थीं। कन्हाईने राधाकी कलशीमें जूठा
पानी डाल दिया। मैंने बरजा, तो मुझपर कुल्ला कर दिया, मुझे बंदरिया और धींगड़ी भी कहा ! जल भरकर चलने लगी तो कंकड़ मारकर मेरा घड़ा फोड़ दिया, देखो मेरे वस्त्र !'
'तू बरसानेकी है लाली?' मैयाका नेह उमड़ा !
'हाँ मैया!'
'अहा हा, सारे वस्त्र भीग गये संध्याको आयेगा तो नीलमणिको मार लगाऊंगी, बहुत उधमी हो गया है। नंदगांवकी गोपियोंसे अचगरी करता करता तुम तक जा पहुँचा ! आने दो उसको, एक बार तो ऊखलसे ही बाँधा था; अबकि खम्भेसे ही बाँध दूंगी।'
'नहीं मैया!' चंद्रावलीजी उतावली होकर बोली-
'बाँधने जैसा तो कुछ नहीं किया है। 💙वस्त्र सूख जायेंगे और मिट्टीके घड़ेकी तो कोई बिसात ही नहीं☺️, परन्तु उन्हे समझा देना।
वे देवी-देवताओंका भी डर नहीं मानते।'
'आ बेटी! तुझे सूखे वस्त्र पहना दूँ।'
'नहीं मैया! मैं घर जा रही हूँ।'
'अरी लाली! तुझे मेरी सौगन्ध, नेक रुक जा। अहा कैसी सोनेकी मूरत सी लड़की है। इस कन्हाईके मारे मैं तो बोलने योग्य भी नहीं रही, कीर्तिदा सुनेगी तो क्या कहेगी!"
मैयाने चंद्रावलीजीको नये वस्त्राभूषणोंसे अलंकृत किया, सिरके केशोंमें कंधी करके चोटी गूँथी और भोजनका आग्रह करने लगी।
तभी बाहर से श्यामसुंदर भागे आये –
'मैया मुझे भूख लगी है, शीघ्र कुछ खाने को दो।'
'क्यों रे उधमी! तू नंदगाँवमें उधम करता करता बरसाने तक जा पहुँचा ? तेरी सास सुनेगी तो क्या कहेगी रे?"
'बरसानेमें?
कब गया बरसाने ?
किसने कहा तुझसे?
यह कौन बैठी है ?
किसकी बहु है ? "
'अरे तूने आज इसके वस्त्र फाड़ दिये। देवीकी पूजाके लिये कीर्तिकुमारी जल लेने आयी, तूने उसका घड़ा जूठा कर दिया। उसे बंदरिया और धींगड़ी कहा। कन्हाई! तेरे उधम और इन उलहनोंके मारे मैं तो धाप गयी हूँ बाबा।'
'तुझसे कहा किसने ?' –
श्यामने झुककर चंद्रावलीजीका मुख और खड़े होकर बोले-
'अहा, बन ठनकर यहाँ कैसी शील-संकोचकीअवतार होकर बैठी है; इसीने कही है मैयासे ऐसी झूठी बातें।'☺️
'री मैया! मैं क्या फाइँगा इसके वस्त्र, घाट-बाटमें बंदरिया-सी उछलती फिरती है, कहीं गिर-गिरा गयी होगी। बरसानेका घाट छोड़कर हम नहा रहे थे, उस घाटपर जल भरने आयीं। एक प्रहर भर तमालकी छाँहमें बैठी बतियावती रहीं। जब हम नहाने लगे तो सब उठकर घाटपर आ गयीं।☺️
अरी मैया! तू तो निपट भोली है, इनकी बातेंमें आकर नित्य ही मुझे डाँटती है, पर सुन मेरी बात! ये सब घाटपर बैठी बैठी मिट्टीकी गागरको माँज रही थीं। घड़ेको भरे और ढ़ारें, बार-बार यही करती रहीं। न पानी भरें, न टलें वहाँ से इनकी करतूत देखकर सखाओंको हँसी आ गयी, तो जलके एक-दो छींटे पड़ गये होंगे इनपर अब तो लगी चीखने-चिल्लाने! मैं बीच बचाव करने लगा तो यह लजवंती मुझसे कहने लगी- ढीठ, गंवार, लंगर, लबार! यह क्या जाने बड़े-छोटोंका रहन-सहन; किशोरी जू चलो यहाँसे।'☺️
'देखे देख मैया! तेरी दृष्टि बचाकर अभी भी मुझे चिढ़ा रही है।'🌹
'सुनो कन्हाई! झूठकी सीमा हो गयी। हम विश्राम करनेको तमाल तले
बैठी थीं। हमारे घाटपर आते ही तुम जलमें कूद पड़े। मैंने छींटे उछालनेसे बरजा तो तुमने मुँहमें जल भरकर धार छोड़ी सो सीधा राधाकी मटकीमें पड़ी, फिर तो तुम और तुम्हारे सखाओंने सब गागरें झूठी कर दीं। यही नहीं, हमारे ऊपर भी तुमने झूठा जल डाला। बड़े घरके लड़के हो तुम ! हमको धींगड़ी और बंदरिया कहकर गाली दी। न जाने क्या देखकर बाबाने राधा-सी रूप-गुण आगरी की सगाई तुम्हारे साथ कर दी, जिसमें न रूप, न रंग, न गुण! मैं जाकर कीर्ति मैयाको सब बात बताकर सगाई छुड़ाकर रहूँगी।' कहकर चंद्रावलीजी क्रोधसे उठ खड़ी हुई जानेके लिये ।
'अरी लाली! तुझे मेरी सौगन्ध; तनिक रुक जा बेटी! मैं जानती हूँ यह महा-उधमी है। अब तू जो कहे, सो ही दण्ड इसको दूँ!'
'मैया! इन्होंने देवीका अपराध किया है सो बरसाने चलकर हमारी कुलदेवीकी पूजा करके क्षमा प्रार्थना करें और मुझे भी धींगड़ी कहा है इससे मैं सगाई छुड़ा दूँगी। यदि तेरे लाला मुझसे क्षमा माँगकर कहें कि फिर कभी हमें गाली नहीं देंगे तो मैं भी क्षमा कर दूंगी।'🌹
श्यामका मुख सगाई छूटनेकी बात सुनकर जरा-सा हो गया।
'नीलमणि दारी के ! अब माँग इससे क्षमा!' -मैया बोली।
हाथ जोड़, मुख नीचा किये मैयाके नीलमणि धीरे-धीरे आगे बढ़े, चंद्रावली जीजीके समीप जा नीचे झुकते हुए धीमे स्वर में बोले—'छिमा कर दओ।' ☺️
'अच्छा कर दिया। चंद्रावलीजीने कहा।
'बेटी! इसको अपने साथ ही बरसाने ले जाकर देवीकी पूजा और क्षमायाचना करवा दे,,,,क्या कहूँ, मुझ अभागिनीका यही एक अवलम्ब है। तुम सबसे हाथ जोड़कर विनय करती हूँ कि इसके सब अपराध क्षमा करके चिरंजीव होनेका आशिर्वाद दो।'
'कन्हाई! जा बेटा इसके साथ जाकर देवीकी पूजाकर आ, फिर कभी
देवापराध मत करना, समझा!'🌹
'बेटी चंद्रा! तू कीर्तिदासे कुछ मत कहना, तेरा निहोरा करूँ मेरी लाली !'
'अच्छा मैया! कुछ न कहूँगी।'
'अरी इला! इधर सुन तो। मैं समीप जाकर खड़ी हुई तो चंद्रावली जीजीने कहा—'बहिन! तनिक जाकर किशोरीजी और सखियोंसे कहना एक नयी सखी देवीकी पूजा करने आयी है। अतः सारी पूजन सामग्री लेकर
गिरिराज जू के समीप निकुंज मंदिरमें पहुंच जाय!'
फिर कानमें बोली- 'श्यामसुंदरके लिये लहँगा-फरिया भी लेती आना।'☺️
मैंने हँसकर श्यामसुंदरकी ओर देखा और चल पड़ी बरसानेकी और
'राका! सुन बहिन!"
'क्या कहती है जीजी! आज स्याम जू तुम्हारे साथ बंधे हुएसे कैसे चले जा रहे हैं?'🌹☺️
'सो सब बादमें सुन लेना, अभी तो तुम जाकर सब सखियोंको समाचार दे दो कि सब गिरिराज निकुजमें पहुँच जायँ।'
'क्यों सखी! सबका वहाँ क्या काम है? पूजा तो मैं करूँगा और तू करवायेगी। इन सबको वहाँ बुलाकर क्या करोगी?' – श्याम सुंदरने पृछ लिया
तुम तो गंवार-के-गंवार ही रहे कान्ह जू! पूजा कई प्रकारकी होती है- पंचोपचार षोडशोपचार, राजोपचार और महाराजोपचार । तुम जो धूपदीप, नैवेद्य, अक्षत, पुष्पसे पूजा करते हो वह तो साधारण पूजा है। हमारे यहाँ तो सदा महाराजोपचार पूजा होती है; ऐसी तो तुमने कब कहाँ देखी होगी? अपना भाग्य आज खुल गया समझो!'
'अच्छा सखी! मेरा भाग्य खुलनेसे क्या होगा ?"
'भाग्य खुलनेसे सब इच्छायें पूरी हो जाती हैं।'
'सच सखी! तब तो तू मुझसे सम्राटोपचार पूजा करा ले; तेरे पाँव
पडू सखी।'
'तुम्हारा ऐसा कौन-सा कार्य अटका पड़ा है श्यामसुंदर! जिसके लिये इतनी चिरौरी कर रहे हो ?"
'सखी! मेरा ब्याह नहीं हो रहा। भद्रका, विशालका, अर्जुनका; मेरे
बहुतसे सखाओंके एक नहीं, कई-कई विवाह हो चुके! किंतु मेरा तो अबतक
एक भी विवाह नहीं हुआ। मैया कहती है-गोपियाँ तुझे चोर, लबार कहती है, इसीसे कोई बेटी नहीं देता।' ☺️
'तो ऐसा करना, जब पूजा परिक्रमा करके प्रणाम करो, उस समय अपनी अभिलाषा देवीसे निवेदन कर देना। उस समय कोई वहाँ न होगा। जिस छोरीसे विवाह करना हो उसका नाम भी निवेदन कर देना।🌹💙
'यदि ऐसा हो जाय सखी! तो तेरा उपकार सदा स्मरण रखूँगा।'☺️
'अहा! ऐसे ही तो सयाने हो न, चार दिनमें सब भूलकर मुँह चिढ़ाने लगोगे।'— चंद्रावली हँसकर बोलीं।☺️
'नहीं सखी! जो तू कहे सो ही करूँ।"
'सच ?'
'सच सखी।'🌹
'तो सुनो श्यामसुंदर! तुम मुझसे ब्याह कर लो।' 💙
श्यामसुंदर एक बार दुविधामें पड़ ठिठके रह गये, फिर हँसकर बोले
'मेरी सगायो तो श्रीकिशोरीजीसे हुई है। किंतु सखी! भद्र दादाके तो सात विवाह हो गये हैं; अब दो-चार यदि मेरे भी हो जायँ तो क्या बुरा है ?'☺️
'श्यामसुंदर हमारे यहाँका नियम है कि देवीकी पूजा कोई पुरुष नहीं कर सकता।' -निकुंज-मंदिरमें जाकर चन्द्रावली जू ने कहा।
'तो सखी! यह बात तुझे पहले ज्ञात नहीं थी ? क्यों मुझे इतनी दूर कयो
दौड़ाया ?'– श्याम जू ने निराश खेदयुक्त स्वरमें कहा।
"यह बात नहीं श्याम....!'☺️
'तो दूसरी क्या बात थी सखी! क्या पहले मैं तुझे नारी दिखा था और यहाँ आकर पुरुष दिखने लगा हूँ?'- श्याम खीजकर बोले।
'एक उपाय है।'
चन्द्रावली जू सोचते हुए बोली- 'यदि तुम घाघरा फरिया पहन लो तो नारी वेष हो जायेगा, फिर कुछ दोष न रहेगा।'☺️
श्याम खिसियाते हुए बोले ।
'मैं लुगायी बनूँगा ? नहीं, यह मुझसे नहीं होगा!'-
'देखो श्यामसुंदर! देवीका कोप उतरेगा तो तुम्हारा जन्मभर ब्याह नहीं होगा। कौन देखनेवाला है यहाँ, तुम जानो ,,कि देवीके वरदान से जिससे चाहो विवाह कर सकोगे💙। अब तुम्हें जो सोच-विचार करना हो शीघ्र कर लो। मुझे देर हो रही है, मैया डाँटेगी मुझको।'
श्यामसुंदर कुछ क्षण विचार करते रहे फिर बोले- 'अच्छा सखी! जैसा यहाँका नियम हो वैसा कर, पूजामें कोई दोष नहीं रहना चाहिये।'🌹
श्यामसुंदरको लहँगा चोली और फरिया पहनाकर चन्द्रावली जू उन्हें दूसरे कक्षमें ले गयी। वहाँ सब सखियाँ पूजाकी तैयार कर रही थी। इन दोनोंको देखकर सब समीप आ गयी—'अरी सखी! यह साँवरी सखी तो बड़ी सलोनी है, किस गोपकी बेटी है यह? क्या नाम है? कोई पाहुनी है क्या ?'☺️
इस प्रकारके अनेक प्रश्न सुनकर चन्द्रावली जी हँसकर बोली-
'हाँ सखी! यह पाहुनी है, नाम साँवरी सखी है। आज देवीका पूजन यही करेगी, तुम सब सावधानीसे सहायता करो। इसके पश्चात् साँवरी सखीकी बाँह पकड़कर कहा–
‘चल तुझे श्रीकिशोरी जू के समीप ले चलूँ। देख, तू गाँव की गंवार है। राजा-महाराजाओंसे भला तुझे कब काम पड़ा होगा?
वहाँ जानेपर भली-भाँति पृथ्वीपर सिर रखकर, फिर चरण छूकर प्रणाम करना। समझी ?
लट्ठकी भाँति खड़ी मत रह जाना!
वे हमारी राजकुमारी है।
श्यामसुंदरने सिर हिलाकर स्वीकृति दी और सकुचाते हुए श्रीकिशोरीजी समीप पहुँचे।
वेशकी लज्जा और दर्शनके आनन्दसे उनके पाँव डगमगा रहे थे। श्रीकिशोरी जू माला गूँथ रही थी, साँवरी सखीने प्रणाम किया तो चंद्रावली जू से मधुर स्वरमें पूछा-
'यह कौन है जीजी ?'
'पाहुनी है! नाम साँवरी सखी है।'- चंद्रावली जू ने हँसकर कहा।
जब साँवरी सखीने प्रणामकर सिर उठाया तो दोनोंकी दृष्टि दौड़कर आलिङ्गनबद्ध होकर अपना आया खो बैठी।💙
'यह देवीका पूजन करने आयी है बहिन!'- चंद्रावली जूने सचेत करते हुए कहा-
'पूजाके पश्चात दोनों भली प्रकार देख लेना एक दूसरी को।'
सब उठकर मंदिरमें गयी। देवी गिरिजाको सबने प्रणाम किया और पूजा आरम्भ कर दी। सखियाँ सामग्री ला लाकर रख रही थी। ललिता और
विशाखा उनमें से क्रमश: प्रथम प्रयुक्त होनेवाली वस्तुको किशोरीजीके समीप सरका देती और किशोरीजी निर्देश देते हुए साँवरी सखीको दे रही थी। चन्द्रावलीजी विधि बता रही थी और बहुत सी सखियाँ मंगल गा रही थी। 🌹☺️
एक प्रहर भर पूजा चली, नैवेद्यके पश्चात परिक्रमा और कुसुमाञ्जली अर्पण कर साँवरी सखीने प्रणाम करते हुए नयन मूँद हाथ जोड़े।
'देवीका ध्यान करके अपनी अभिलाषा निवेदन करो।'— चंद्रावलीजीने कहा-
'जो तुम मन, वचन और कर्मसे एकाग्र होकर प्रार्थना करोगी तो देवी तुरंत इच्छा पूरी करेंगी।'🌹
'अच्छा सखी! अब देवीके सम्मुख नृत्य प्रदर्शित करो।' 🌹☺️
श्यामसुंदरने विवशतापूर्ण दृष्टिसे चन्द्रावलीजीकी ओर देखा ।
'हाँ सखी! यह भी पूजाका ही अंग है, तुम चिंता छोड़ो; वाद्य हम बजा देंगी।' विवश साँवरी सखी उठ खड़ी हुई।
किशोरीजी एक उच्चासनपर विराजित हुई और अन्य सखियाँ उनके दायें बायें बैठ गयी ललिता और विशाखा देवी पर चँवर डुला रही थी। आठ-दस सखियाँ वाद्य लिये संकेतकी प्रतिक्षा कर रही थी। साँवरी सखीने पाँव दुमकाकर ताल और गुनगुनाकर राग बताया, वाद्य मुखर हो उठे।
जय जय जय हर प्रिया गौरी।
जय षडवदन गजानन माता जगजननी अति भोरी ॥
महिमा अमित अनन्त तिहारी मोरी मति गति कोरी।
आयी सरन जानि जगदम्बा, पुरौ अभिलाषा मोरी ॥
नृत्य-गायनके बीच किसीको तन-मनकी सुध नहीं रही। साँवरी सखी जैसे ही पुनः देवीको प्रणाम कर उठी, श्रीकिशोरीजीने लड़खड़ाते पदोंसे उठकर उसे हृदयसे लगा लिया और मुखसे बरबस निकल पड़ा— 'श्यामसुंदर.... !"💙🌹☺️
यही दशा साँवरी सखीकी हुई। उसके मुखसे भी धीमा उच्छ्वास मुखरित हुआ— 'राधे.... !'
दोनोंके मन एक-दूसरेमें गंगा-यमुनाकी भांति मिलकर अपनी पहचान खो बैठे। सखियाँ चित्र लिखी-सी देखती रहीं।
'अच्छा सखी! तुम सब राधा बहिनके साथ बैठो, मैं इस पाहुनीको विदा
करके आती हूँ ?'
'जीजी!'
श्रीकिशोरीजी अनुनय भरे स्वरमें बोली-'भला इतनी शीघ्रता क्या है विदा करने की ? कल विदा कर देना,
अभी कुछ बात भी नहीं हुई ! ऐसा अवसर फिर न जाने कब आये। मैंने तो इतने बरसोंमें आज ही दर्शन किये हैं, आज इसे यही रहने दो न ?"💙
'बहिन! इसे विलम्ब हो रहा है, देवीकी पूजा करनेको ही आज इसकी मैयाने भेजा है। देवीकी कृपा रही तो ऐसे अवसर अब आते ही रहेंगे। अपनी मैयाके यह एक ही लाली है, वह बाट तकती होगी। आज जाने दो; अबकी बार उसे जताकर लाऊँगी। यह फिर आ जायेगी।'
'जीजी! इसका नृत्य, इसका गायन मेरे अंतरमें समा गया है, न जाने क्यों बिछड़ने की बातसे ही हृदय टूटा पड़ता है।
अच्छा बहिन! जा ही रही हो तो अपने श्रीमुखसे कुछ मधुर बात तो कहो, जिससे प्रान जुड़ायें।'
'क्या कहूँ सखी।' श्यामसुंदर अपना सखीवेश भूलकर बोल पड़े -
'जो दशा तुम्हारी है, वहीं दशा मेरी भी है। तुम्हारे चरणोंको छोड़कर पथपर पद बढ़ते ही नहीं पर....🌹💙'
वाक्य अधूरा छोड़कर उनका गला रूँध गया।
शतशत सखियोंके साथ ही श्रीकिशोरीजीके चकित दृग ऊपर उठे और आनंद विह्वल कंठसे अस्पष्ट वाणी फूटी-
'श्यामसुंदर....!'🌹💙
'श्री राधे....!'🌹💙
वैसी ही गद्गद वाणी कान्ह जू के कंठसे निकली।
दो क्षण पश्चात् चंद्रावली जू सचेत होकर हँस पड़ी-
'श्याम जू! इतना भी ढाँढ़स नहीं रहा ?' उनकी बात सुन सब सखियाँ हँस दी।
श्री जू के नयन नीचे हो गये और श्यामसुंदर सकुचाकर चंद्रावलीजीका मुख देखने लगे।☺️
*जय जय श्री राधे श्याम🙏🙏
Comments
Post a Comment