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*🌹💙सखियों के श्याम💙🌹* 

 *(15)* 

 🌹 *जात की कहा बात करे सखी! स्याम ही प्रेम पियारो* 🌹

उस दिन मैयाने झड़बेरीकी डाली काट लाने भेजा था। मैंने कहा भी था- 'डाली यहाँ काटकर लाऊँ; इससे तो छौनेको ही क्यों न चरा लाऊँ?" किंतु मैयाने मुझे डाँटकर भेज दिया। छोटी कुल्हाड़ी कंधेपर धर में झोपड़ीसे बाहर आ गयी। डाली छौनेके समीप रखकर, उसके गलेकी डोरी खोल दी। किंतु खुलते ही अभागा सीधे आँगनसे होकर बाहर भागा।

मैयाके डरसे मैं भी पीछे दौड़ी! सच भी हैं, कोई कुत्ता-सियार मुँह में दबा ले तो ? अभी तो महीने भरका भी नहीं हुआ ! किंतु छोटा है तो क्या हुआ, भागता कितना तेज है मरा अरे यह तो गायों के समूह में जा घुसा। कहाँ किसीने सींग या लात चला दी तो, और कहीं कुचल गया.... आगे सोचा न गया, मैं भी दौड़कर समूहमें जा घुसी। वह नटखट उधर 'बॅ... वे' करता गायोंके पैरोंके बीचसे भागा जा रहा था और पीछे-पीछे मैं भी। गावें बहुत बड़ी-बड़ी सुन्दर और सीधी थी, अन्यथा ऐसी अनजान भागम-भागमें पशु भड़क उठते हैं। छौनेपर मुझे क्रोध आ रहा था, कितना दौड़ाया मुझे ! कुछ हो गया इसे तो मैया मारेगी–डांटेगी सो अलग। पा जाऊँ, तो दो-चार चपत तो लगा ही दूँ मरे को ।

एकाएक ठिठककर रुक जाना पड़ा मुझे! गायोंके बीचसे निकलकर छौना सीधे वटके नीचे गोप- बालकोंकी ओर दौड़ा। एक पीत वस्त्रधारी साँवरे किशोरको घेर कर सब छोकरे बैठे थे। छौनेके गले में बँधे घुंघरुओं की ध्वनि सुन, सबने पलटकर देखा छौना सीधा फुदकता हुआ उस साँवरे कुमारके सम्मुख जा खड़ा हुआ।🌹

उन्होंने बाहें पसार कर, 'अरे कैसा सुन्दर ,,,अजा शावक !-कहकर उठा लिया। 
वे एक हाथसे उसे वक्षसे दबाये थे, दूसरेसे उसे सहलाते हुए मुख, नेत्र और पीठपर चुम्बन अंकित करते जा रहे थे। मैं दूर खड़ी उस सांवले सलोने रूपको देखते हुए छौनेके महा-भाग्यकी मानो साक्षी दे रही थी। न समयका ध्यान था न शरीरका! तभी उन्होंने मीठे स्वरमें पूछा

 'किसका है रे तू?"
 उस स्वरकी माधुरीने कानोंमे प्रवेश करते ही तनमें झनझनाहट-कम्प उत्पन्न कर दिया। साथ ही देखा 'किसका' कहते हुए उनके कोमल रतनारे नेत्रोंकी पलकें ऊपर उठी।

 क्या कहूँ! दृष्टि मिलते ही सारी सृष्टि लोप हो गयी । यहाँतक कि वे गोपकुमार, छौना और उनका वह शोभाधाम शरीर-मुख कुछ भी स्मरण न रहा- रह गये। मात्र रक्तिम डोरोंसे सज्जित नयन कंज धीरे-धीरे वे नयन समीप आये-💙🌹

'तेरा है यह छौना?'
 पुनः वही मीठा स्वर कानोंकी राह भीतर उतर कर किसी रीते सरोवरको भरने लगा। उन्होंने छौना मेरे हाथों में थमाया। कब मैं लौटी घर कुछ भी स्मरण नहीं । मैयाने ही झंझोड़कर जगाया-
'अरी बैठी-बैठी ही सो रही है? अभी तो सूरज उगा ही है। छोड़ इस छौनेको, पत्ते खाने दे। यह छोरी क्या करेगी अपने घर जाकर! नित उठ मार खायेगी। अरी उठ तो; टोकरी लेकर कंडे और लकड़ी बीन ला।'

समीप आकर फिर पूछा– 
'तेरा जी तो ठीक है, कोई मांदगी तो नहीं लगी ?" 
उसने माथा हाथ और पेट छूकर देखा और 'नहीं' में माथा हिला दिया— 
'भूख लगी हो तो उठ, आधी रोटी पड़ी है खाकर जा। मैं और तेरे बाबा शहद लेने जायेंगे।'

'कहा कहूँ स्वामिनी जू ! 
वा समय ते मोकू जाने कहा भयो!
 न कछु काम सूझे, ना काहू की बात सुहावे बकरीके छौनेको जाने कहा बान पड़ गयी है; नित उठ भाज जाय वाहि ठौर। मैं जातकी भीलनी, कैसे वाकी सेवा पाऊँ ! एक दिन मैंने उपाय खोज निकाला! वनसे फल-फूल तोड़ लायी, तमालके एक छोटे पेड़का फूलोंसे शृंगार किया, फलोंका भोग लगाया और चरणोंमें सिर रखा। यही मेरे जीवनका पूजा-पाठ नित्यकर्म बन गया।'💙🌹

एक दिन ऐसे ही भोग धरकर बैठी देख रही थी कि 'क्यों री पेड़ को फल खिला रही है ?'– सुन चौंककर मैं खड़ी हो गयी।

'कोई देवता है यह पेड़ ! पूजा कर रही है क्या ? 
एक फल मुझे भी दे न, बड़ी भूख लगी है मुझे।'🌹☺️

मैंने सारे उनके सम्मुख रख दिये।🌹

 'अरी फिर तेरे देवताको क्या भोग लगायेगी ?'

मैं क्या कहती पत्थरकी मूरत सी खड़ी रही।☺️

"अच्छा चल तू भी खा; मैं अकेला तो नहीं खाऊँगा!' 💙
कहकर उन्होंने एक फल चखा और मुँह बिगाड़कर बोले-
'खट्टो है।' 
दूसरा उठाया और दाँतसे काटकर और बुरा मुँह बनाया
 'राम....राम, जे तो कड़वो है।
 तीसरा
 'खारा' लगा।

हृदय भीतर ही भीतर रो उठा-

'हाय! आज चिर अभिलषित आशा फलवती होनेको आयी, तो दुर्भाग्यने उसपर अंगारे औंधा दिये।' 

आँखोंमें भरे आँसू एक साथ झर पड़े। मैं डलिया लेकर और फल लेने चली, तो मेरा हाथ थामकर बिठा दिया।🌹

'कहाँ जा रही है? बैठ।'

 कहकर उन्होंने एक और फल उठाकर चखा, उत्फुल्ल होकर बोले-

 'अहा जे तो मीठो है।' 

अभी आधा फल भी न खा पाये होंगे कि एकदम खड़े होकर बोल उठे-

'मेरे सखा पुकार रहे हैं, मैं जाऊँ ?' 

और हाथमें फल लिये उत्तरकी प्रतिक्षा किये बिना एक ओर को भाग चले। 

बड़ी देरतक मैं पाहनकी तरह बैठी रही। फिर डलियामें जो फल उनके चखे हुए थे उन्हें खाने लगी; वे सबके सब अत्यन्त स्वादिष्ट और मीठे थे।🌹💙

'कृपासिन्धु हैं वे, स्वामिनि जू ! घरमें बाबा मैया मेरी दशा देखकर चिंतित रहने लगे। उन्होंने दवा दारू, झाड़-फूँक, टोटके-टमने सब कर देखे। किसी दादी-बूढ़ीने मैयासे कहा-छोरी सयानी है गयी, अब याको ब्याह कर दो और कछु मांदगी नाय।'

अब बाबा छोरा ढूँढ़ने में लगे हैं। मेरे प्राण सूखे जाते हैं। 

'कौन जाने कहाँ, और कितनी दूर, किस खूँटेसे जा बाँधेंगे। फिर मुझे ये दर्शन कहाँ मिलेंगे ?
 स्वामिनी जू! आप मुझपर कृपा करें!'-🌹

कहती हुई वह भील कन्या मेरे पैरो पर गिर पड़ी और नेत्रों की वर्षासे उन्हें भिगोने लगी ।

मैं क्या कहती ? 
अपनी हृदय-व्याधिसे व्यथित हो यहाँ आयी। तो यहाँ इस तमाल तरुके नीचे इस भील-कन्याको धूरि स्नान करते देखा तो पूछ बैठी। उत्तरमें इसने जो कुछ कहा वह सुनकर मैं सन्न रह गयी। क्या कहकर इसे धीरज दूँ! यह तो व्रजकी प्रत्येक कुमारीकी कथा है। हाथ पकड़ उसे उठाकर बोली-

 'तेरी क्या सहायता करूँ सखी! हम दोनों एक ही रोगकी रोगिणी है।'💙🌹

'मुझे अपने घरकी दासी बना लो।' उसने कहा- 'मुझे आश्रयके अतिरिक्त 
और कुछ भी नहीं चाहिये। खानेके लिये फल वनसे ले आऊँगी, पहननेको अपनी उतरन दे देना बस! मैं बाबासे कह दूँगी मुझे ब्याह-व्याह नहीं करना!'☺️

' नाम क्या है तेरा ?"

'मिट्टी।'

मैं उसे लेकर अपने घर मैयाके समीप आयी- 'मैया! इसे अपने घर चाकर रख लें ? "

'क्यों री ! ऐसी क्या आवश्यकता पड़ गयी चाकर की ? - मैयाने आश्चर्य से पूछा ।

'मैं नहीं मैया! यही रहनेको कह रही है। मैंने अपना बचाव किया
 'कहती है वनसे जलावनकी लकड़ी ला दूँगी, अपने खानेके लिये फल भी ले आऊँगी, खिरक बुहार दूंगी और जो भी कार्य होगा सो कर दूँगी, मुझे केवल पहननेके लिये अपनी उतार दे देना।'💙🌹

'ऐसी क्या बात है बेटी ! रहो तुम्हारा मन हो तब तक भोजन-वस्त्र जहाँ
हमको जुटते हैं, वहाँ तुम्हारे लिये भी नारायण देंगे।' मैया बोली।

 'बड़े मीठे फल है मैया! कहाँ ते आये ?'– 
श्यामसुंदरने मैयासे पूछा।

 'यह तो मिट्टी लाई है लाला!'

 'मिट्टी! मिट्टी कौन ? मैंने तो यह नाम आज तक नहीं सुना !'☺️

'अरे लाला ! यह तो भील कन्या है। अपने सुमुख गोपके घरमें चाकरी करती है। उसकी छोरी प्रज्ञाके साथ फल लेकर आयी थी।'

'उसके साथ बकरीका छौना था क्या मैया ?'– 🌹
श्याम कुछ क्षण सोचकर बोले। 

'ना लाला! मैंने तो नहीं देखा। छौनेवाली कोई और होगी!"

 'अच्छा मैया! फल मीठे हैं, उससे कहना नित्य लाया करे। उसे कुछ
दिया कि नहीं ?🌹

मैंने तो बहुत निहोरा किया, किंतु वह कहने लगी-
 'आपके लाला जीम लें, तो मैं अपना श्रम सार्थक मानूंगी ! उसकी आँखें भर आयी थी, इससे मैं अधिक आग्रह नहीं कर सकी।'💙🌹

'अच्छा मैया! मूल्य न ले तो न सही, किंतु फल मुझे नित्य चाहिये।'

 'कल आयेगी तो कह दूँगी।' 

'क्यों मैया! उसे अपने ही यहाँ क्यों न रख लें।'☺️

'दारी के! औरों की चाकर, हम कैसे रख लें ? " 

'तू वा को पूछ लीजो।'🌹

 'नाय लाला! मोते ऐसे काम ना होय!' 

'रहने दे, मैं ही पूछ लूँगा।'💙🌹

*जय जय श्री राधेश्याम🙏🙏*

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