ब्रज रज

"ब्रज रज" : ब्रज मिट्टी
को रज क्यों बोला गया
है ??
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सम्पूर्ण कामनाओं और
श्री कृष्ण भक्ति प्राप्त
करने के लिए "ब्रज" है ।
भगवान ने बाल्यकाल में
यहाँ अनेको लीलाएं की !
उन सभी लीलाओं का
प्रतक्ष द्रष्टा है श्री
गोवर्धन पर्वत, श्री
यमुना जी
एवं यहाँ की "रज" ।
यहाँ की मिट्टी को रज
बोला गया है इसके पीछे
जो कारण है
वह यह कि भगवान ने
इसको खाया और माता
यशोदा के डाँटने पर इस
मिट्टी को उगल दिया ।
इसके पीछे बहुत कारण हैं
जिनमें सबसे मुख्य इसको
अपना प्रसादी करना
था क्योंकि ऐसा कोई
प्रसाद नहीं जो जन्म
जन्मांतर यथावत बना
रहे इसीलिए भगवान ने
ब्रजवासियों को ऐसा
प्रसाद दिया जो न तो
कभी दूषित होगा और न
ही इसका अंत ।
भगवान श्री कृष्ण ने अपने
"ब्रज" यानि अपने निज
गोलोक धाम में समस्त
तीर्थों को स्थापित कर
दिया चूँकि जहाँ
परिपूर्णतम ब्रह्म स्वयं
वास करे वहां समस्त
तीर्थ स्वतः ही आने की
इच्छा रखते हैं, लेकिन
बृजवासियों को किसी
प्रकार का भ्रम न हो
इसके लिए भगवान ने उनके
सामने ही समस्त तीर्थ
स्थानो को सूक्ष्म रूप से
यहाँ स्थापित किया ।
श्री कृष्ण का मानना था
कि केवल ब्रज वासियों
को ही ये उत्तम रस
प्राप्त है क्योंकि इनके
रूप रं स्वयं विद्यमान हूँ
ये मेरी अपनी निजी
प्रकृति से ही प्रगट हैं,
अन्य जीव मात्र में मैं
आत्मा रूप में विराजित हूँ
लेकिन ब्रजजनों का और
मेरा स्वरुप तो एक ही है,
इनका हर एक कर्म मेरी
ही लीला है, इसमें कोई
संशय नहीं समझना
चाहिए ।
माता यशोदा को
तीर्थाटन की जब इच्छा
हुई तो भगवान ने चारों
धाम यहाँ संकल्प मात्र से
ही प्रगट कर दिए । यहाँ
रहकर जन्म और मृत्यु
मात्र लीला है मेरा
पार्षद मेरे ही निज धाम
को प्राप्त होता है
इसलिए संस्कार का भी
यहाँ महत्त्व नहीं ऐसा
प्रभु वाणी है !
संस्कार तो यहाँ से जन्मते
हैं ब्रह्मवैवर्त पुराण के
अंतर्गत कृष्ण के वाम
पार्ष से समस्त गोप और
श्री राधा रानी से
समस्त गोपियों का
प्रादुर्भाव हुआ है इसको
सत्य जानो ।
यहाँ जन्म और मृत्यु दोनों
मेरी कृपा के द्वारा ही
जीव को प्राप्त होती है
एवं प्रत्येक जीव मात्र
जो यहाँ निवास करता है
वह नित्य मुक्त है । उसकी
मुक्ति के उपाय के लिए
किये गए कर्मो का
महत्त्व कुछ नहीं है।
मेरे इस परम धाम को
प्राप्त करने के लिए
समस्त ब्रह्मांड में अनेकों
ऋषि, मुनि, गन्धर्व, यक्ष,
प्रजापति, देवतागण,
नागलोक के समस्त
प्राणी निरंतर मुझे भजते
हैं लेकिन फिर भी उनको
इसकी प्राप्ति इतनी
सहज नहीं है ।
मेरी चरण रज ही इस ब्रज
(गोलोक धाम ) की रज है
जिसमें मेरी लीलाओं का
दर्शन है ।
जय जय ब्रज रज

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