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प्रातः[1] कालीन सेवा

17.पाक के लिये श्रीमती के नन्दीश्वर (नन्दगाँव) जाते समय ताम्बूल तथा जलपात्र आदि लेकर उनके पीछे-पीछे गमन करना।
18.श्रीवृन्दावननेश्वरी के पाक तैयार करते समय उनके कथनानुसार कार्य करना।
19.सखाओं सहित श्रीकृष्ण को भोजनादि करते देखते रहना।
20.पाक तैयार करने और परोसने के कार्य से थकी हुई श्रीवृन्दावनेश्वरी की पंखे आदि के द्वारा हवा करके सेवा करना।
21.श्रीकृष्ण का प्रसाद आरोगने के समय भी श्रीराधारानी की उसी प्रकार पंखे की हवा आदि के द्वारा सेवा करना।
22.गुलाब आदि पुष्पों के द्वारा सुगन्धित शीतल जल समर्पण करना।
23.कुल्ला करने के लिये सुगन्धित जल से पूर्ण आचमनीय पात्र आदि समर्पण कना।
24.इलायची-कपूर आदि से संस्कृत ताम्बूल समर्पण करना।
25.बदले हुए पीताम्बर आदि सुबल के द्वारा श्रीकृष्ण को लौटाना।
[2]पूर्वाहंकालीन सेवा

1.बाल-भोग(कलेऊ) आरोगकर श्रीकृष्ण के गोचारण के लिये वन जाते समय श्रीराधाजी सखियों के साथ कुछ दूर श्रीकृष्ण के पीछे-पीछे जाकर जब यावट को लौंटें, उस समय ताम्बूल और जल-पात्र आदि लेकर पीछे-पीछे गमन करना।
2.श्रीराधा-गोविन्द के पारस्परिक संदेश उनके पास पहुँचाकर उनको संतुष्ट करना ।
3.सूर्य-पूजा के बहाने (अथवा कभी-कभी वन-शोभा-दर्शन के बहाने) श्रीराधाकुण्ड पर श्रीकृष्ण से मिलन कराने के हेतु श्रीमती को अभिसार कराना और उस समय ताम्बूल और जल-पात्र आदि लेकर उनके पीछे-पीछे गमन करना।

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