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प्रातः[1] कालीन सेवा

ब्राह्ममुहूर्त बीतने पर (अर्थात प्रातःकाल होन पर) श्रीराधारानी के द्वारा छोड़े हुए वस्त्रों को धोकर तथा अलंकार, ताम्बूल-पात्र और भोजन-पान आदि के पात्रों को माँज-धोकर साफ करना।
चन्दन घिसना और उत्तम रीति से केसर पीसना।
घर वालों की बोली सुनकर सशंकित-सी हुई श्रीवृन्दावननेश्वरी का जगकर उठ बैठना।
श्रीमती को मुख धोने के लिये सुवासित जल और दाँतन आदि समर्पण करना।
उबटन अर्थात शरीर स्वच्छ करने के लिये सुगन्धित-द्रव्य तथा चतुस्सम अर्थात चन्दन, अगर, केसर, और कुमकुम का मिश्रण, नेत्रों में औंजने के लिये अंजन औ अंगराज आदि प्रस्तुत करना।
श्रीराधा रानी के श्री अंगों में अत्युत्कृष्ट सुगन्धित तेल लगाना।
तत्पश्चात सुगन्धित उबटन द्वारा उनके श्रीअंग का मार्जन करते हुए स्वच्छ करना।
आँवला और कल्क (सुगन्धित खली) आदि के द्वारा श्रीमती के केशों का संस्कार करना।
ग्रीष्मकाल में ठंडे जल और शीतकाल में किंचित उष्ण जल से श्रीराधारानी को स्नान कराना।
स्नान के पश्चात् सूक्ष्म वस्त्र के द्वारा उनके श्रीअंग और केशों का जल पोंछना।
श्रीवृन्दावनेश्वरी के श्रीअंग में श्रीकृष्ण के अनुराग को बढ़ाने वाला स्वर्ण खचित (जरीका) सुमनोहर नीला वस्त्र (साड़ी) पहनाना।
अगुरु-धूम के द्वारा श्रीमती की केश-राशि को सुखाना और सुगन्धित करना।
श्रीमती का श्रंगार[2] करना।
उनके श्रीचरणों को महावर से रँगना।
सूर्य की पूजा के लिये सामग्री तैयार करना।
भूल से श्रीवृन्दावनेश्वरी के द्वारा कुंज में छोड़े हुए मोतियों के हार आदि उनके आज्ञानुसार वहाँ से लाना।

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