अष्टकालीन सेवा 1
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श्रीराधा-कृष्ण की अष्टकालीन स्मरणीय सेवा
साधकगण श्रीव्रजधाम में अपनी अवस्थिति का चिन्तन करते हुए अपनी-अपनी गुरुस्वरूपा मंजरी के अनुगत होकर, एक परम सुन्दरी गोपकिशोरीरूपिणी अपने-अपने सिद्ध मंजरी-देह की भावना करते हुए, श्रीललितादि सखीरूपा तथा श्रीरूप-मंजरी आदि मंजरीरूपा नित्यसिद्धा व्रजकिशोरियों की आज्ञा के अनुसार परम प्रेमपूर्वक मानस में दिवानिशि श्रीराधा-गोविन्द की सेवा करें।
निशान्तकालीन सेवा
निशा का अन्त (ब्राह्ममुहूर्त का[1] आरम्भ) होने पर श्रीवृन्दा देवी के आदेश से क्रमशः शुक्र, सारिका, मयूर, कोकिल आदि पक्षियों के कलरव करने पर श्रीराधा-कृष्ण-युगल की नींद टूटने पर उठना।
श्रीराधा और श्रीकृष्ण के एक-दूसरे के श्रीअंग में चित्र-निर्माण करने के समय दोनों के हाथों में तूलिका और विलेपन के योग्य सुगन्धिद्रव्य अर्पण करना।
श्रीराधा-कृष्ण-युगल के पारस्परिक श्रीअंगों में श्रंगार करने के समय दोनों के हाथों में मोतियों का हार, माला आदि अर्पण करना।
मंगल-आरती करना।
कुंज से श्रीवृन्दावनेश्वरी के घर लौटते समय ताम्बूल और जल पात्र लेकर उनके पीछे-पीछे चलना।
जल्दी चलने के कारण टूटे हुए हार आदि तथा बिखरे हुए मोती आदि को आँचल में बाँधना।
चर्वित ताम्बूल आदि को सखियों में बाँटना।
घर (यावट ग्राम) पहुँचकर श्रीराधिका का अपने मन्दिर में शयन करना।
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