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प्रदोषकालीन सेवा

प्रदोषकाल में वृन्दावनेश्वरी का वस्त्रालंकारादि से समयोचित श्रंगार करना अर्थात कृष्णपक्ष में नील वस्त्र आदि और शुक्लपक्ष में शुभ्र वस्त्रादि तथा अलंकार धारण कराना एंव गन्धानुलेपन करना।
अनन्तर सखियों के साथ श्रीमती को अभिसार कराना तथा उनके पीछे-पीछे गमन करना।
[2]निशाकालीनसेवा

निकुंज में श्रीराधा-कृष्ण का मिलन दर्शन करना।
रास में नृत्य आदि की माधुरी के दर्शन करना।
वृन्दावनेश्वरी श्रीराधिकाजी के नूपुर की मधुर ध्वनि और श्रीकृष्ण की वंशी-ध्वनि की माधुरी को श्रवण करना।
श्रीयुगल की गीत-माधुरी का श्रवण करना तथा नृत्यादि के दर्शन करना।
श्रीकृष्ण की वंशी को चुप कराना।
श्रीराधिका की वीणा-वादन-माधुरी का श्रवण करना।
नृत्य, गीत और वाद्य के द्वारा सखियों के साथ श्रीराधाकृष्ण के आनन्द का विधान करना।
सुवासित ताम्बूल, सुगन्धित द्रव्य, माला, हवा, सुवासित शीतल जल और पैर सहलाने आदि के द्वारा श्रीराधा-कृष्ण की सेवा करना।
श्रीकृष्ण का मिष्टान्न तथा फलादि भोजन करते दर्शन करना।
सखियों के साथ वृन्दावनेश्वरी श्रीराधिकाजी का श्रीकृष्ण के प्रसाद का भोजन करते हुए दर्शन करना।

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