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[1]मध्याह्नकालीन सेवा

33. किसी एक स्थान में रसोई बनाना।
34.श्रीयुगल के पारस्परिक रहस्यालाप का श्रवण करना।
35.श्रीयुगल के वन-विहार, वसन्त-लीला, झूलन-लीला, जल-विहार, पाश-क्रीड़ा आदि अपूर्व लीलाओं के दर्शन करना।
36.श्रीयुगल के वन-विहार के समय श्रीमती की वीणा आदि लेकर उनके पीछे-पीछे गमन करना।
37.अपने केशों द्वारा श्रीयुगल के श्रीपाद पद्यों की रज को झाड़ना-पोंछना।
38.होली-लीला में पिचकारियों को सुगन्धित तरल पदार्थों से भरकर श्रीराधिका और सखियों के हाथों में प्रदान करना।
39.झूलन-लीला में गान करते हुए झूले में झोटे देना, झुलाना।
40.जल-विहार के समय वस्त्र और अलंकार आदि लेकर श्रीकुण्ड के तीर पर रखना।
41.पाश-क्रीडा में विजय प्राप्त श्रीराधिका जी की आज्ञा से श्रीकृष्ण के द्वारा दाव पर रखी सुरंग आदि सखियों (या मुरली आदि) को बल पूर्वक लाकर उनके साथ हास्य-विनोद करना।
42.सूर्य-पूजा करने के लिये राधाकुण्ड से श्रीमती के जाते समय उनके पीछे-पीछे जाना।
43.सूर्य-पूजा में तदनुकूल कार्यों को करना।
44.सूर्य-पूजा के पश्चात् श्रीमती के पीछे-पीछे चलकर घर लौटना।

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