मोर पंख आँचल सखी@

मोर पंख कितना भाग्यशाली है न यह...कान्हा जिसे स्वयं अपने शीश पर स्थान दिये।वह भाग्यशाली तो है ही।यह झूम झूमकर इठलाता हुआ अपने भाग्य पर बडा मान करता है।आज प्रियाजी ने अपने सुकोमल कर मे जब इसे उठाया तब यह गुदगुदा उठा,हल्के से उनकी अंगुरी के पोरो मे उलझ गया।श्यामाजु ने मुस्कुराकर इसे अपने कोमल कपोल पर जब फिराया न हाय! जीवन का वही क्षण धन्य था।इसी पल के लिए इस मोर पंख का सम्पूर्ण जीवन धन्य हो गया,अहा! कपोलो को सहलाते हुए ये लाल अधर भी इससे छू गये और वह पान की सुगंध इसके अंग अंग मे नाचने लगी।यह नटखट भी स्वयं को न संभालकर नाच उठा पवन के एक हल्के झोके संग।
तभी लाडलीजु ने बडे ही लाड से लालजु को अपने निकट बैठाया। मोर पंख को लेकर श्यामसुन्दर के केशो मे लगा दिया।
दोनो के ह्रदय मे प्रेम की नदी बह चली लालजु तो ऐसे मग्न हुए की नैनो से अश्रु वर्षा करते हुए अपने मस्तक को श्यामाजु के चरण कमलो पर रख दिये।
और आज इस मोर पंख के भाग खुल गये।श्रीजु चरणो की रेणु इसके अंग अंग मे लग गयी।लालजु मस्तक यू ही धरे जाने कब तक बैठे रहे।वही मोर पंख इन चरणो पर न्योछावर हुआ जा रहा।प्रियाजु के चरण कुमकुम का कुछ अंश इस मोर पंख पर लग गया तो मानो यह आज किसी नववधू सा हो गया।
जिसने प्रथम बार अपनी मांग मे सिंदुर लगाया है।मानो श्रीजु ने इसे सोभाग्य का आशीष दिया है।

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