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वृन्दावन सखी 2

"आँखिनि मैं बसै, जिय मैं बसै, हिय मैं बसत निसि दिवस प्यारौ।
तन मैं बसै, मन मैं बसै, रसना हूँ मैं बसै नँदवारौ ॥"

वृंदावन  !!
फिर वही स्पंदन  !!
आहा !! जहाँ युगल नित्य विहार करते हैं।
वृंदा  !!
वृंदा अर्थात श्यामसुंदर जु की अर्धांगिनी एक सखी जिसने अपने पातिव्रत भाव से श्यामसुंदर को अपने पति के रूप में पाया।श्यामा जु जिन्हें पतिरूप पाने के लिए इन्हीं वृंदा देवी का ध्यान पूजनार्चन करतीं हैं।
श्यामा जु जो स्वयं अभिन्न हैं श्यामसुंदर जु से पर फिर भी उन्हें पाने के लिए वे अपनी ही कायव्यूहरूपा सखियों का सहारा लेतीं हैं।क्यों  ??
सखियाँ जो श्यामा श्यामसुंदर जु की अद्भुत कृपा पात्रा हैं।स्वयं को तृणमात्र जान वे युगल के चरणों में अर्पित हो जातीं हैं ।पर प्रिय श्यामाश्याम जु ऐसे करूणामयी कि इन तृणों को जिन पर ये नंगे पाँव चलते हैं उन्हें अपनी शरण में आए जान अपने चरणों से कभी विलग नहीं करते।हृदय से लगा लेने को आतुर।कहने को चरणरज की अभिलाषिणी दास्तव चाहतीं हैं श्यामाश्याम जु के चरणों का पर उदार युगल की विलक्षण प्रीति इन्हें दासी नहीं अपितु सखी जान अपना लेती है और अपने भजन व निष्ठा जो कि प्रियाप्रियतम जु की ही कृपा वर्षा की बूँदें हैं इन प्यारी सखियों पर स्वयं प्रीति ही हो जातीं हैं।

प्रीति !!
कहने को तो प्रेम जो दो में होता है पर एक अद्भुत गहनतम एहसास जो प्रेम से प्रेम में रची बसी श्यामाश्याम जु के मिलन से उपजी अभिन्न भावरूप तरंगें जो श्यामाश्याम जु में से अवतरित हो फिर फिर इनके सुख हेतू इन्हीं में समा जातीं हैं।स्वसुख की लेशमात्र भी गंध नहीं।होगी भी कैसे ये प्रीतिरूप समाई हैं युगल में और उनके मिलन क्षणों में उन्हें सुखी देखने के लिए उन्हें बिन छुए ही उनके एहसास को जान पूर्तिवत हर पल ललायित रहतीं हैं।

प्रीतिरसरूपी चाशनी में डूबीं ये सखियाँ निकुंज की जीती जागती अनुराग प्रतिमाओं सी हैं जिनका युगल प्रेम में डूब कर अपना कोई भिन्न वजूद नहीं रहता।तत्सुख भाव लिए ये इतना गहनतम डूब जातीं हैं कि श्यामाश्याम जु ही इनका जीवन श्वास रगों में दौड़ता लहू व हृदय की धड़कन है।इनके रोमछिद्र जैसे युगलरस से ही सराबोर हो अद्भुत महक से  आप्लावित व श्वासित होते हैं ताकि ये सुखरूप हो सकें युगल मिलन में।

ऐसी अनगिनत प्यारी युगल सखियाँ अनवरत सेविका बन रहतीं हैं वृंदावन के कुंज निकुंजों में।इनमें से कुछ ऐसी भी होतीं हैं जो युगलरस से लबालब भर युगलसुख के लिए चली आतीं हैं वृंदावन की वीथियों से बाहर रस विस्तार के लिए।विलक्षण प्रीतिरस रूप जिन्हें श्यामा श्यामसुंदर जु से वियोग के पल में देह तो प्रदान करता है पर भीतर उनके वही युगल एक आंतरिक वृंदावन लिए भावजगत सदा संग चलता है।
बलिहार  !!
धराधाम पर इन प्यारी सखियों का आगमन ही होता है और शरणागतों को प्रियाप्रियतम जु के चरणों में ले जाना।
अद्भुत समर्पण !!
असाधारण युगल की असाधारण प्रेमी सखियाँ !!

जय जय सखीवृंद
जय जय श्यामाश्याम
जय जय वृंदावन धाम
क्रमशः

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