श्री धाम देव स्तोत्रम्

श्रीश्रीप्रेम धाम देव स्त्रोत्रम्
(विष्णुपाद श्रील भक्तिरक्षक श्रीधर देव गोस्वामी द्वारा रचित)
     
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देवताओं ,सिद्धों,मुक्तों.योगियों और भगवद्भक्तगण सर्वदा जिनकी वन्दना कर रहे हैं तथा जो (ईश विमुखता रूप ) अपकर्म से उदित (भुक्ति मुक्ति सिद्ध कामना जनित)त्रिताप ,विश्व दावाग्नि को दूर करने वाला ,श्री कृष्ण नाम रूप सुधा भण्डार का निज_ नाम _धन्य दान_सागर_स्वरुप हैँ (सुधाकर का जन्म क्षीर सागर से है )_वही देवता प्रेममय मूर्ति श्री गौरांसुन्दर की मैं वन्दना करता हूँ ||1||

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कोटि काँचन वर्ण तेजोमय दर्पण की भांति (जिसमें प्रतिफलन लक्षित है )जिनके श्री अंग सौंदर्य की महिमा (पृथ्वी के)पदम् और (स्वर्ग के)परिजात गन्ध मूर्तिमान होकर जिनके श्री अंग सौरभ की वन्दना कर रहे हैँ,एवम् कोटि कोटि कन्दर्प जिनके श्री रूप के चरणकमलों में (अपने विश्वप्रसिध् रूप के अभिमान में अतितीव्र आघात में)मूर्छित होकर गिरे _वही देवता प्रेममय गौरांग सुंदर की मैं वन्दना करता हूँ।। 2।।

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पंचम पुरुषार्थ श्री कृष्ण प्रेम व उन्हीं का अभिन्न साधन स्वरुप श्रीकृष्णनाम वितरण करने के लिए जिन्होंने पञ्चतत्वात्मक अपना स्वरूप् विलास प्रकाश किया एव्म अपने अप्राकरत अंग,उपांग,अस्त्र और पार्षदों के साथ पृथ्वी पर अवतरित हुए,स्वयम् वही श्यामसुन्दर आज गौरसुन्दर रूप में अपना नाम गान करते करते नृत्योन्मत होकर ग्रामवासी के भांति नदिया के पथों पर भरमण् कर रहे हैँ_वही देवता प्रेममय मूर्ति श्रीगौरंगसुंदर की मैं वन्दना करता हूँ ।।3।।

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जिन्होंने गौड़देश,गंगा तटस्थ श्री नवद्वीप में आर्विभाव और ग्रहस्थ लीला इत्यादि प्रकाशित किये ,एव्म श्रीवास् के आँगन को धन्य करके संकीर्तन _रास_ प्रकाश में(सज्जनों का)हर्ष वर्धन किया । जो श्री लक्ष्मी और श्री विष्णुप्रिया के प्राणपति हैं तथा माता शची और पिता जगन्नाथ मिश्र को पूजनीय मानते हैँ _वही देवता प्रेममूर्ति श्री गौरांगसुंदर की मैं वन्दना करता हूँ ।।4।।

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जो शची दुलाल (यशोदा दुलाल की भांति)बच्चों के साथ चापलय रत हैं और किशोर आयु में ही सर्व शास्त्र विशारद हैं(तत्कालीन नव्य_ न्याय नैपुण्य_गर्वपूर्ण नवदीप का नास्तिक्यप्र्राय पांडित्य का) तर्कयुक्ति के प्रयोग कौशल में जो मङ्गलमय (भगवत भक्ति का ) संस्थापक है । जिन्होंने छात्रो के साथ गंगा तट पर हेलना भाव से प्रसिद्ध दिग्विजयी पंडित का दम्भ हरण किया _वही देवता प्रेममयमूर्ति श्री गौरांगसुंदर की मैं वन्दना करता हूँ।।5।।

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