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[1]अपरांहकालीन सेवा

श्रीराधिकाजी के रसोई बनाते समय उनके अनुकूल कार्य करना।
श्रीराधारानी के स्नान करने के लिये जाते समय उनके वस्त्राभूषण आदि लेकर उनके पीछे-पीछे जाना।
स्नान के पश्चात् उनका श्रंगार आदि करना।
सखियों से घिरी हुई श्रीवृन्दावनेश्वरी के पीछे-पीछे अटारी पर चढ़कर वन से लौटते हुए सखाओं से घिरे श्रीकृष्ण के दर्शन करके परमानन्द-उपभोग करना।
छत के ऊपर से श्रीराधिका जी के उतरने के समय सखियों के साथ उनके पीछे-पीछे उतरना।
[2]सायंकालीन सेवा

श्रीमती का तुलसी के हाथ व्रजेन्द्र श्रीनन्दजी के घर भोज्य-सामग्री भेजना। श्रीकृष्ण को पान की गुल्ली और पुष्पों की माला अर्पण करना तथा संकेत-कुंज का निर्देश करना। तुलसी के नन्दालय जाते समय उसके साथ जाना।
नन्दालय से श्रीकृष्ण का प्रसाद आदि ले आना।
वह प्रसाद श्रीराधिका और सखियों को परोसना।
सुगन्धित धूप के सौरभ से उनकी नासिका को आनन्द देना।
गुलाब आदि से सुगन्धित शीतल जल प्रदान करना।
कुल्ला आदि करने के लिये सुवासित जल से पूर्ण आचमन-पात्र प्रदान करना।
इलायची-लौंग-कपूर आदि से सुवासित ताम्बूल अर्पण करना।
तत्पश्चात् प्राणेश्वरी का अधरामृत-सेवन अर्थात उनका बचा प्रसाद भोजन करना।

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