षोडश अध्याय 1

श्रीनवद्वीपधाम माहात्म्य

षोडश अध्याय 1

नदियाविहारी श्रीगौरचन्द्र की जय हो! जय हो ! एकचक्रा नामक ग्राम के अधिपति श्रीनित्यानन्द प्रभु की जय हो ! जय हो ! शांतिपुर के अद्वैत प्रभु की जय हो ! जय हो ! रामचन्द्रपुर निवासी श्रीगदाधर पंडित की जय हो ! जय हो ! चिंतामणि के सार स्वरूप श्रीगौड़मण्डल की जय हो ! जय हो ! जहां पर गौरहरि ने अपनी लीलाएं की हैं। पद्मवतीनंदन श्रीनित्यानन्द प्रभु श्रीजाह्वा को पार करके कुछ दूर चलने के उपरांत भक्तों से कहने लगे। देखो बिलवपक्ष नामक यह स्थान परम् मनोहर है। आजकल इसे बेलपुखुरिया कहते हैं।

शास्त्र ब्रजधाम में जिस स्थान  को बेलवन कहते हैं , नवद्वीप में उसी स्थान का दर्शन करो।यहां पर पंचमुख बिल्वकेश नामक शिव विराजमान थे, अनेक ब्राह्मणों ने पन्द्रह दिनों तक बेल पत्तों द्वारा उनकी आराधना की। शिव जी ने प्रसन्न होकर उन्हें कृष्णभक्ति का वर दिया।उन ब्राह्मणों में श्रीनिम्बादित्य भी विध्यमान थे।उन्होंने बहुत भक्तिपूर्वक पंचमुखी शिव की आराधना की थी।

   उनकी आराधना से प्रसन्न होकर शंकर भगवान ने कहा कि इस गावँ की सीमा पर एक दिव्य बेलवन है। उस वन में सनक, सनन्दन, सनातन, सनत्कुमार ध्यान में मग्न हैं। उनकी कृपा से तुम्हें दिव्यज्ञान की प्राप्ति होगी। वह तुम्हारे गुरु हैं । उनकी सेवा से तुम्हारी सब मनोकामनाएं पूरी होंगी। इतना कहकर महेश्वर अंतर्ध्यान हो गए। श्रीनिम्बादित्य उनके द्वारा बताए गए स्थान को ढूंढते हुए इस विल्वबन मे आ गए। उन्होंने श्रीसनक, सनन्दन, सनातन तथा सनत्कुमार नामक ऋषियों को एक सुंदर वेदी पर बैठे देखा। वृद्धकेश नामक शिव के निकट बैठे हुए परम् उदार चित्त वाले उन वस्त्रहीन सुकुमारों को कोई साधारण व्यक्ति नहीं देख सकता था। उन्हें देख निम्बादिताचार्य उत्सुकता पूर्वक अति आनन्द से भरकर हरे कृष्ण , हरे कृष्ण का उच्चारण करने लगे।

हरिनाम सुनने से उनका ध्यान भंग हो गया और उन्होंने अपने समक्ष एक वैष्णव को देखा। उन चारों कुमारों ने प्रसन्नतापूर्वक एक एक करके उसे आलिंगन किया। उन्होंने फिर पूछा तुम कौन हो तथा यहां क्यों आये हो। अपना परिचय दो हम तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी करेंगे। उनकी बात सुनकर श्रीनिम्बादित्य ने उन्हें प्रणाम किया । ततपश्चात विनीत होकर अपना परिचय देने लगे। उनका परिचय जानकर ऋषि कुमार बोले घोर कलियुग आने वाला है। ऐसा जानकर जीवो के परम कल्याण हेतु परम् कृपामय सर्वेश्वर श्रीकृष्ण ने अपने चित्त में भक्ति का प्रचार करने का दृढ़ निश्चय किया। भगवान ने चार भक्तों में शक्ति का संचार किया तथा जगत में भक्ति प्रचार करने हेतु भेजा। वे चार भगवत शक्तिसम्पन्न महाजन श्रीरामानुज, श्रीमध्व, श्रीविष्णुस्वामी तथा चौथे तुम हो। श्रीलक्ष्मी देवी ने रामानुजाचार्य, श्रीब्रह्मा ने श्रीमधवाचार्य को तथा श्रीरूद्र ने श्रीविष्णुस्वामी को अपने अपने भक्ति सम्प्रदाय में को अंगीकार किया है। आज से हम तुम्हें अपने भक्ति सम्प्रदाय में स्वीकार कर रहे हैं। तुम्हें अपना शिष्य बनाकर ही धन्य हो जाना हमारा प्रयोजन है। हम पहले अभेद ब्रह्मज्ञान की चिंता में निमग्न रहते थे। किंतु भगवान की कृपा से हमारा यह पाप दूर हो गया है।

   अब हमने यह जान लिया है कि शुद्ध भक्ति ही उत्कृष्ट वस्तु है। हमने भक्ति पर आधारित एक संहिता की रचना भी की है। उसका नाम सनत्कुमार संहिता है। उसके अनुसार ही तुम्हारी दीक्षा होगी। श्रीगुरूपादपदम के ऐसे अनुग्रह को देखकर बुद्धिमान निम्बकाचार्य बिना किसी विलम्ब के भगीरथी में स्नान कर आये।क्रमशः

जय निताई जय गौर

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