दशम अध्याय 1
नवद्वीपधाम माहात्म्य
दशम अध्याय 1
श्रीनवद्वीप के चन्द्रस्वरूप श्रीशचीनन्दन की जय हो ! जय हो ! अवधूत नित्यानन्द प्रभु की जय हो ! जय हो ! श्रीअद्वैत आचार्य की जय हो ! जय हो ! श्रीगदाधर और श्रीवास पंडित की जय हो ! जय हो ! अन्य सभी तीर्थों के सारस्वरूप श्रीनवद्वीप धाम की जय हो ! जय हो ! जिस धाम में श्रीगौरसुन्दर अवतरित हुए हैं।हे कलियुग के जीवों ! सुनो! ज्ञान ,कर्म और धर्माधर्म को त्यागकर श्रीनित्यानन्द प्रभु तथा श्रीचैतन्य महाप्रभु का भजन करो। हे भाइयो! दया के सागर श्रीगौरनिताई तुम्हारी ऐसी चेष्ठा को देख अकातर होकर अवश्य ही ब्रज के आनन्द को प्रदान करेंगे।सवेरा होते ही श्रीनित्यानन्द प्रभु श्रीजीव को लेकर धाम की परिक्रमा हेतु आगे चल पड़े।
श्रीनित्यानन्द प्रभु ने कहा हे जीव इस ग्राम को देखो। आजकल सभी लोग इसे ब्रह्मणपुरा कहते हैं परंतु शास्त्रों के अनुसार इसका नाम ब्राह्मणपुष्कर है। इस स्थान का रहस्य बहुत गूढ़ है।सतयुग में दिवदास नाम का एक ब्राह्मण ग्रह त्याग कर तीर्थ भृमण करता हुआ घूम रहा था। यधपि उसकी पुष्कर धाम में बहुत प्रीति थी परंतु भृमण करते हुए वह नवद्वीप आ पहुंचा।इसी स्थान पर रात्रि वास के समय उसने स्वप्न में देखा कि कोई उसे कह रहा है तुम यहीं वास करो यहीं तुम्हें नित्यधन श्रीकृष्ण प्रेम की प्राप्ति होगी। इसी स्थान पर कुटिया बना उसने वृद्धकाल तक वास किया। जब वह चलने फिरने में असमर्थ हो गया तब उसकी पुष्कर जाने की इच्छा अति तीव्र हो गयी। चल न पाने के कारण वह क्रंदन करने लगा हाय ! हाय ! मुझे पुष्कर धाम के दर्शन न होंगें।उसे विलाप करता देख पुष्कर तीर्थ ने ब्राह्मण के रूप में दर्शन दिए तथा कहा तुम क्रंदन मत करो। यह जो कुंड तुम्हारे सामने है इसमें स्नान करो, पुष्कर तीर्थ तुम्हारे सामने स्वयम प्रकट हो जाएगा।
उस ब्राह्मण की बात सुन दिवदास ने कुंड में स्नान किया तब उसे दिव्यचक्षु प्राप्त हुए जिससे उसने पुष्कर के दर्शन किये। रोते रोते पुनः कहने लगा कि हे पुष्करराज आपको मेरी वजह से बहुत कष्ट उठाना पड़ा। पुष्कर ने कहा हे सौभाग्यशाली ब्राह्मण मैं तो सदैव यहीं वास करता हूँ। श्रीनवद्वीप की सेवा करने हेतु सभी धाम यहीं वास करते हैं।यधपि मेरे एक स्वरूप का प्रकाश पश्चिम में है तथापि मैं सदैव यहीं निवास करता हूँ। जो फल पुष्कर में सौ बार स्नान करने से मिलता है वह यहां एक बार स्नान से ही प्राप्त हो जाता है।अतः नवद्वीप धाम को छोड़कर जो व्यक्ति अन्य किसी धाम की अपेक्षा करता है वह महामूर्ख है। जब किसी को सभी तीर्थों में भृमण करने का फल प्राप्त होता है तब उसे इस तीर्थ में वास मिलता है।हट्ट के सामने उस ऊंचे स्थान को देखो वहां कुरुक्षेत्र तथा ब्रह्मावर्त विद्यमान हैं। उसके दोनों ओर सरस्वती तथा दृषद्वती बहती है। वे बहुत सुंदर तथा पुण्य प्रदान करने वाली हैं।हे विप्र मैं तुमको एक गूढ़ बात बताता हूँ।थोड़े ही समय मे यहां परम् आनन्द प्रकाशित होगा। मायापुर में शचिमाता के घर गौरसुन्दर प्रकट होंगे जो जनसाधारण को कृष्णप्रेम दान करेंगे। इन सभी स्थानों पर चैतन्य महाप्रभु अपने भक्तों के साथ संकीर्तन करेंगें। प्रेम रूपी बाढ़ में पूरा संसार डूब जाएगा। कुतार्किकों को छोड़ अन्य सभी को महाप्रभु जी अपना प्रेम प्रदान करेंगे।हे दिवदास इस धाम के प्रति जो कोई भी ऐसी निष्ठा रखता है उसे महाप्रभु जी के चरणकमलों की प्राप्ति होती है।क्रमशः
जय निताई जय गौर
Comments
Post a Comment