भक्त कर्मानन्द जी
श्रीभक्त करमानंद जी............
ये अपने गायन से प्रभु की सेवा किया करते थे. इनका गायन इतना भावपूर्ण होता था कि पत्थर-हृदय भी पिघल जाता था.
ज्यादा दिनों तक इनको गृहस्थी रास नहीं आयी और ये सब कुछ छोड़कर निकल पड़े. इनके पास केवल दो चीज़ें ही थीं-
एक छड़ी और दूसरा ठाकुरबटुआ जिसे ये गले में टाँगे कर चलते थे. ये जहाँ विश्राम करने के लिये रुकते थे वहाँ छड़ी को गाड़ देते थे और उस पर ठाकुर बटुआ लटका देते थे.
इससे ठाकुर जी को झूला झूलने का आनन्द मिलता था.
एक दिन ये सुबह-सुबह ठाकुर जी की पूजा करके श्री ठाकुर जी को गले में लटका कर चल दिए.
उस समय ये भगवन्नाम में इतने डूबे हुए थे कि छड़ी को लेना भूल गए. अब जब दूसरी जगह ये विश्राम करने के लिये रुके तो इन्हें छड़ी की याद आयी.
अब समस्या थी कि ठाकुर जी को कैसे और कहाँ पधरावें. श्री ठाकुर जी में प्रेम की अधिकता के कारण इन्हें उनपर प्रणय-रोष हो आया.
ये गुस्सा करते हुए बोले कि ठाकुर हम तो जीव हैं, हम कितना याद रखें. हम छड़ी भूल गए थे तो आपको याद दिलाना चाहिए था.
अब दूसरी छड़ी कहाँ से लाएं. पिछली जगह भी बहुत दूर है और ये भी पक्का नहीं है कि वहाँ छड़ी मिल ही जाए.
ये ठाकुर जी से खूब लड़े और बोले कि छड़ी लाकर दो. श्री ठाकुर जी इनकी डाट-फटकार पर खूब रीझे.
प्रभु की योगमाया ने छड़ी लाकर दे दी. अब ये फिर रोने लगे कि इन्होंने प्रभु को क्यों डाटा. जब इन्होंने क्षमा मांगी तो प्रभु ने कहा कि यह मेरी ही लीला थी,
मुझे डाट सुननी थी. भगवान ने कहा कि जब यहाँ हम और तुम दो ही हैं तो अगर कुछ कहने-सुनने, लड़ने-झगड़ने की इच्छा होगी तो कहाँ जायेंगे.
प्रभु की यह बात सुनकर श्री करमानंद जी प्रेम सागर में डूब गए.
कुछ करो या न करो भक्तों पर प्रभु से प्रेम करो. ये हमारे खुद के अनुभव की बात भी हैं प्रभु से प्रेम करोगे तो अनंत प्रेम पाओगे.
प्रेम में रहोगे तो हर क्रिया साधना बन जायेगी जैसे छड़ी पर लटकाए जाना प्रभु को झूला झुलाता था.
प्रेम में पगी हर बात श्री ठाकुर जी को रिझा देगी. प्रेम नहीं है तो सब व्यर्थ हो जायेगा. प्रभु से प्रेम करो तो कुछ भी कहोगे,
श्री हरि खुद दौड़े आयेंगे जैसे छड़ी के लिये डाट पड़ने पर खुद भक्त के सामने आ गए.😭😭
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