पंचम अध्याय 3

श्रीनवद्वीप माहात्म्य

पंचम अध्याय 3

  इसके पश्चात वह सभी मधाई घाट की ओर गए।मधाई घाट से दस मीटर उत्तर की ओर बारकोना घाट है।यह नगर के सभी व्यक्तियों को आकर्षित करता है इसलिए इसे नगरिया घाट भी कहते हैं। विश्वकर्मा ने महाप्रभु जी की आज्ञा के अनुसार इसका निर्माण किया था। श्रीनित्यानन्द प्रभु बोले जीव देखो इस घाट पर पांच शिवालय हैं जिनमे पांच दिव्य ज्योतिर्लिंग विराजमान हैं।यह घाट मायापुर की शोभा का विस्तार करते हैं तथा यहां स्नान करने से सब दुख दूर हो जाते हैं। मायापुर के पूर्व में जो स्थान है उसे सभी अंतरद्वीप कहते हैं । महाप्रभु जी की इच्छा के अनुसार अब वहां कोई लोग नहीं रहते तथा यह अनेक दिनों तक सुनसान ही रहेगा। समय आने पर यहां पुनः वास होगा तथा यह स्थान नदिया के गौरव के रूप में प्रकाशित होगा।आज तुम मायापुर में ही रहो कल तुमको सीमन्त द्वीप लेकर जाऊंगा।

    यह सुनकर जीव बोले प्रभु मेरे मन के संशय का निवारण कीजिये।जब गंगा देवी पुनः मायापुर को प्रकाशित करेगी तब भक्त किस चिन्ह के माध्यम से योगपीठ को प्रकाशित करेंगे। यह सुनकर श्रीनित्यानन्द प्रभु ने कहा जब गंगा मायापुर को ढक लेगी तब मायापुर का एक कोना बचा रहेगा। यधपि वहां बहुत सारे यवन वास करेंगे तब भी उसका नाम मायापुर ही रहेगा।अवशिष्ट स्थान के पश्चिम दक्षिण में एक हज़ार मीटर दूरी पर घास से ढका उच्च स्थान दिखाई देगा , वही स्थान जगन्नाथ मिश्र का भवन होगा। वहां से दस मीटर दूरी पर वृद्ध शिवालय है। इसी परिमाण के अनुसार भक्त इन स्थानों का निर्णय करेंगे। जहां पर शिवडोबा नाम की एक खाई दिखाई देगी वही यह इंगित करेगी कि पहले यहां गंगा बहती थी। इस प्रकार महाप्रभु जी की इच्छा होने पर भक्त लोग इस स्थान को प्रकाशित करेंगे।जब महाप्रभु जी के आविर्भाव को चार सौ वर्ष हो जाएंगे तब यह स्थान प्रकाशित होंगे ।श्रीजीव ने कहा प्रभु ! इस स्थान का नाम अंतरद्वीप होने का कारण बताइए।तब प्रभु ने कहा इस स्थान पर द्वापर में ब्रह्म जी ने महाप्रभु की कृपा प्राप्त करने की इच्छा से तपस्या की थी।कृष्णलीला में ब्रह्मा जी से जो बछड़े तथा गोप बालक चुराने का अपराध हुआ तथा श्रीकृष्ण पर संदेह करने का भृम हुआ इससे वह बहुत दुखी थे। क्योंकि वह उस जन्म में कृष्ण प्रेम से वंचित रहे । उनके मन मे जब यह भाव उदित हुआ तब श्रीकृष्ण ने उनपर कृपा की तथा गौर अवतार में उनकी इच्छा पूर्ण करने की स्वीकृति दी। तब ब्रह्मा जी ने इस स्थान पर बैठ घोर तपस्या की।बहुत समय बाद उसकी तपस्या से प्रसन्न हो उसे गौरचन्द्र रूप में दर्शन दिए जिनके दर्शन से ब्रह्म जी मूर्छित हो गए।ब्रह्मा के मस्तक पर श्रीप्रभु ने अपना हाथ रखा तथा उनका सत्व करने लगा। सभी देव आपके दास हैं मुझ दीन हीन के भाग्य में आपकी सेवा तथा आपके शुद्धदास होना नहीं है।इसीलिए माया ने अपना जाल बिछा दिया है। मेरे जीवन का आधा समय तो आपसे विमुख होने के कारण व्यर्थ हो गया है। अब आपसे दूर रहने पर मैं बहुत कष्ट पा रहा हूँ। आपके चरणों मे यही प्रार्थना है कि प्रकट लीला में आपका दास बनकर आऊँ ।आपके साथ रहूँ तथा आपके गुणों का गान करता रहूँ।तब श्रीगौरसुन्दर ने तथास्तु कहकर वरदान दिया।तुम हर समय स्वयम को दीन हीन समझोगे तथा तुम्हारा नाम हरिदास होगा।तुम्हें कोई अभिमान न होगा । तुम्हारी जिव्हा पर प्रतिदिन तीन लाख नाम नृत्य करेगा तथा अंतिम समय मे तुमको मेरे दर्शन होंगे।इस साधन के बल पर तुम इस धाम को प्राप्त करोगे तथा नित्य रस में निम्नजित रहोगे।

   तब गौरसुन्दर ने कहा अब मेरे हृदय की बात सुनो अभी मेरे इस रहस्य को इधर उधर शास्त्रों में प्रकाशित मत करना। मैं भक्त का भाव लेकर भक्तिरस का आस्वादन करूंगा तथा परम् दुर्लभ कीर्तन को पुनः प्रकाशित करूंगा। अन्य अवतारों के समय जितने भी भक्त थे सभी को ब्रजरस में निमज्जित कर दूंगा।मेरा हृदय श्रीराधिका के प्रेम से वशीभूत है , मैं उन्हीं के भाव तथा अंगकान्ति को लेकर प्रकट होऊंगा।मेरी सेवा करके श्रीराधा को किस सुख की प्राप्ति होती है , मैं राधाभाव लेकर इस रस का आस्वादन करूंगा। आज से ही तुम मेरे शिष्यत्व को प्राप्त होंगे तथा हरिदास के रूप में मेरी सेवा करोगे।यह कहकर महाप्रभु जी अंतर्ध्यान हो गए तथा ब्रह्मा जी मूर्छित होकर गिर पड़े।पुनः चेतना लौटने पर हा गौरांग ! हा दीनबन्धो ! हा नाथ कब मुझे आपके चरणकमलों की प्राप्ति होगी।इस प्रकार कुछ दिन क्रंदन करने के बाद भगवान द्वारा किये कार्य को पूरा करने ब्रह्मलोक चले गए।

   श्रीनित्यानन्द प्रभु तथा श्रीजाह्वा देवी के सुशीतल चरण कमलों का आश्रय प्राप्त करने की इच्छा से दीन हीन यह भक्ति विनोद द्वारा श्रीनवद्वीप धाम की महिमा का गुणगान किया जा रहा है।

पंचम अध्याय समाप्त

जय निताई जय गौर

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