द्वादश अध्याय नवद्वीप धाम

नवद्वीपधाम माहात्म्य

द्वादश अध्याय

  श्रीनवद्वीप के चन्द्रस्वरूप श्रीशचीनन्दन की जय हो ! जय हो ! अवधूत नित्यानन्द प्रभु की जय हो ! जय हो !  श्रीअद्वैत आचार्य की जय हो ! जय हो ! श्रीगदाधर और श्रीवास पंडित की जय हो ! जय हो ! अन्य सभी तीर्थों के सारस्वरूप श्रीनवद्वीप धाम की जय हो ! जय हो ! जिस धाम में श्रीगौरसुन्दर अवतरित हुए हैं।हे कलियुग के जीवों ! सुनो! ज्ञान ,कर्म और धर्माधर्म को त्यागकर श्रीनित्यानन्द प्रभु तथा श्रीचैतन्य महाप्रभु का भजन करो।श्रीजगन्नाथ मिश्र के भवन की जय हो।

   प्रभात के समय उठकर सभी गौरनिताई का नाम उच्चारण करने लगे।चंपक हट्ट से श्रीवाणिनाथ भी नित्यानंन्द प्रभु के साथ चलने लगे तथा मन ही मन सोचने लगे क्या मेरे जीवन मे कोई ऐसा दिन आएगा कि मैं श्रीनिताई चाँद के साथ आनन्दिता होकर परिक्रमा करते करते श्रीमायापुर स्थित श्रीमन महाप्रभु के घर जाऊंगा।देखते ही देखते वह ऋतुद्वीप पहुंच गए। यहां सभी वृक्ष अपना मस्तक झुका कर खड़े हुए हैं तथा पवन धीरे धीरे प्रवाहित हो रही है। चारों दिशाओं में पुष्प प्रस्फुटित हो रहे हैं। भृमर की गुंजार तथा पुष्पों की सुगंध ने आने जाने वाले पथिकों के चित्त को मदमस्त बना दिया है।नित्यानंन्द प्रभु भावाविष्ट हो गए तथा कहने लगे जल्दी से मेरा शिंगा लाओ । कनाई घर पर सो रहा है। बालक बुद्धि वाला कनाई अब तक न आया।सुबल श्रीदाम तुम सब कहाँ हो। मैं अकेला गौचारण को नहीं जा सकता । कहते कहते नित्यानंन्द प्रभु ऊंचा ऊंचा उछलने लगे। उनके उस भाव के दर्शन कर सब कहने लगे प्रभु आपके भाई गौरचन्द्र इस समय यहां नहीं हैं।वह सन्यास लेकर हमें कंगाल बनाकर चले गए हैं। यह सुनकर वह रोते रोते रज में लौटने लगे।

  श्रीनित्यानन्द प्रभु कहने लगे - किस दुख के कारण कन्हाई हमको छोड़ चले गए।मैं भी उनके बिना जीवित नहीं रहूंगा। यमुना में कूद जाऊंगा। इतना कहते कहते वह मूर्छित होकर गिर पड़े।उनकी महाभाव अवस्था देख सभी कीर्तन करने लगे।जब एक दण्ड तक (एक घण्टा छत्तीस मिनट) श्रीनित्यानन्द प्रभु नहीं उठे तब सबने मिलकर गौर कीर्तन आरम्भ किया। उनका कीर्तन सुनकर नित्यानंन्द प्रभु उठ गए तथा कहने लगे यहां दोपहर में कन्हाई राधा कुंड में आएगा। तुम सब इस श्याम कुंड का दर्शन करो।आस पास में सभी कुंजो के दर्शन करो। यहां दोपहर के समय श्रीगौर संकीर्तन के आनन्द में विभोर होकर सबको प्रेम दान देंगे।

   हे भाई ! ऐसा स्थान त्रिभुवन में नहीं है। जो व्यक्ति इस स्थान पर वास करता है उसे प्रेम धन की प्राप्ति होती है तथा उसका मन शीतल हो जाता है।उस दिन उसी स्थान पर सभी ने गौरनाम करते हुए दिन रात व्यतीत किये। अगले दिन नृत्य करते करते नित्यानन्द प्रभु श्रीविद्यानगर पहुंचे। मुनियों के मन को आकर्षित करने वाले उस नगर की शोभा को देख सब मुग्ध हो गए।

  श्रीनित्यानन्द प्रभु तथा श्रीजाह्वा देवी के सुशीतल चरण कमलों का आश्रय लेकर इस अकिंचन भक्ति विनोद द्वारा श्रीनवद्वीप की महिमा का गान करके केवलमात्र श्रीकृष्णभक्ति रूपी धन की भिक्षा की कामना की जा रही है।

द्वादश अध्याय समाप्त

जय निताई जय गौर

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