अष्टम अध्याय 2

श्रीनवद्वीपधाम माहात्म्य

अष्टम अध्याय 2

  श्रीनित्यानन्द प्रभु गोद्रुम द्वीप की महिमा का गुणगान करते हैं। इस द्वीप में मृकण्ड के पुत्र मार्कण्डेय ऋषि प्रलय के समय उपस्थित हुए।उनकी कथा बहुत अद्भुत है। यधपि मुनि की सात कल्प की आयु प्राप्त हुई थी, उस समय उन पर बहुत बड़ी विपत्ति आ गयी। सभी स्थान जलमग्न हो गया तो मुनि के रहने के लिए कोई स्थान शेष न रहा। वह पानी मे बहे जा रहे थे तथा मन ही मन सोच रहे थे हाय ! हाय ! मैंने यह क्या वरदान मांग लिया  था। यधपि सभी स्थान जलमग्न थे तथापि सोलह कोस वाला श्रीनवद्वीप धाम भक्तों को आश्रय प्रदान करने हेतु विराजमान था। मुनि जल तरंगो में बहते बहते मूर्छित हो गए। तभी सुरभि ने मुनि को देख अपने हाथ से उठा लिया। चेतना प्राप्त होने पर मुनि ने गोद्रुम के दर्शन किये। उन्होंने देखा कि यह स्थान एक सौ करोड़ कोस का है तथा यहां पर बहुत सुंदर सुंदर नदियां तथा झरने बह रहे हैं। यहां नाना प्रकार के वृक्ष तथा लताएं शोभामान हैं जिन पर बैठे सुंदर खग जो गौरसुन्दर का गुणगान कर रहे हैं। आठ योजन तक फैले पीपल के एक वृक्ष के नीचे सुरभि गाय विराजमान है।

भूख से पीड़ित मुनि को देख सुरभि गाय ने मुनि को अपना अमृतमय दुग्धपान करवाया। स्वस्थ होने पर मुनि ने भगवती सुरभि की वंदना की। माता आपकी माया से सारा जगत व्याप्त है। मैंने बिना सोचे विचारे सात कल्प आयु का वर प्राप्त कर लिया। किंतु मैया प्रलय के समय तो कष्ट ही कष्ट है , सुख तो है ही नहीं। इस दुख से मेरा उद्धार कैसे हो। उनकी बात सुनकर सुरभि ने कहा तुम गौरहरि के चरणों का भजन करो। यह नवद्वीप धाम प्रकृति से अतीत है यहां प्रलय का भी कोई प्रभाव नहीं है। तुम इस धाम का दर्शन करो। इसके चारों ओर विरजा नदी प्रवाहित हो रही है। यहां का प्रत्येक प्रकोष्ठ एक करोड़ कोस का है।इसके मध्य एक विशाल मायापुर नगर है। इसके आठ द्वीप कमल पुष्प की आठ पंखुड़ियों के समान हैं तथा मध्य में अंतरद्वीप कर्णिका रूप में है।

   सभी देव् , ऋषि मुनि यहां आकर गौरसुन्दर का भजन करते हैं। तुम भी उनके चरणकमलों का आश्रय ग्रहण करो। तुम मुक्ति भुक्ति की इच्छा का त्याग करके निर्मल भक्ति का आश्रय लो तभी तुम प्रेम रूपी मधुर फल को प्राप्त कर पाओगे। जिस व्यक्ति के हृदय में यह प्रेम आविर्भूत होता है वह श्रीकृष्ण के विभिन्न लीला विलास रस में निमंजित हो जाता है। उसे ब्रज में श्रीराधा के चरण कमलों का आश्रय प्राप्त हो जाता है तथा उसका मन सदैव युगल सेवा में लगा रहता है।

   इस भगवत सेवा से अनन्य सुख की प्राप्ति होती है। निर्वाण का सुख तो केवल तुच्छ ओर काल्पनिक वस्तु है।सुरभि के वचनों को सुनकर श्रीमार्कण्डेय मुनि ने पूछा -यदि मैं श्रीगौरहरि के चरणों की सेवा करूंगा तो मेरे प्रारब्ध तथा अप्रारब्ध कर्मो का क्या होगा।सुरभि ने कहा - श्रीगौर के भजन में किसी प्रकार का विधि निषेध का विचार नहीं है।जब तुम श्रीगौरहरि का नाम लेकर पुकारोगे तुम्हारे सब कर्म नष्ट हो जाएंगे। तुम्हारा भवरोग सदा के लिए दूर हो जाएगा । केवल कर्म ही क्यों ज्ञान का फल भी जड़ से नष्ट हो जाएगा।भजन करने से तुम गौरसागर में निमग्न हो जाओगे।मुनि सुरभि की बातें सुन हंसने लगे तथा गौर गौर कहने लगे। कभी हंसते तो कभी रोते।श्रीनित्यानन्द प्रभु ने कहा तुम इस स्थान का दर्शन करो जहां उन्हें पुनः प्राण प्राप्त हुए थे।उस दिन विश्राम करने के उपरांत अगले दिन प्रातः हरि हरि बोलते हुए मध्यद्वीप की ओर चल पड़े।

   श्रीनित्यानन्द प्रभु तथा श्रीजाह्वा देवी के सुशीतल चरण कमलों का आश्रय ग्रहण कर दीन हीन भक्ति विनोद द्वारा श्री नित्यानंन्द प्रभु के आदेश से नदिया का माहात्म्य वर्णन किया जा रहा है।

   अष्टम अध्याय समाप्त

जय जय निताई गौर

Comments

Popular posts from this blog

शुद्ध भक्त चरण रेणु

श्री शिक्षा अष्टकम

श्री राधा 1008 नाम माला