अष्टम अध्याय 1

नवद्वीपधाम माहात्म्य

अष्टम अध्याय 1

  श्रीनवद्वीप के चन्द्रस्वरूप श्रीशचीनन्दन की जय हो ! जय हो ! अवधूत नित्यानन्द प्रभु की जय हो ! जय हो !  श्रीअद्वैत आचार्य की जय हो ! जय हो ! श्रीगदाधर और श्रीवास पंडित की जय हो ! जय हो ! अन्य सभी तीर्थों के सारस्वरूप श्रीनवद्वीप धाम की जय हो ! जय हो ! जिस धाम में श्रीगौरसुन्दर अवतरित हुए हैं।श्रीवास पंडित आदि भक्तवृंद हरि हरि कहते हुए श्रीनित्यानन्द प्रभु के साथ चलने लगे।श्रीनित्यानन्द प्रभु मदमस्त होकर झूम रहे थे तथा प्रेम विभोर होकर आधे आधे अक्षर बोल रहे थे।उनके नेत्रों से प्रेमाश्रु झर रहे थे तथा गौर गौर उच्चारण कर रहे थे।उनके सभी आभूषण झलमल कर रहे थे जिनकी आभा से सभी दिशाएं आलोकित हो रही थी। श्रीवास पंडित श्रीजीव के साथ नृत्य करते हुए झूम रहे थे तथा कभी उद्दंड नृत्य कर रहे थे। अन्य सभी भक्त भी नाचते नाचते चलने लगे ।अलकनंदा के निकट पहुंच श्रीनित्यानन्द प्रभु ने श्रीजीव से कहा बिल्वपक्ष नामक ग्राम को अपने पश्चिम में मंदाकिनी नदी ने घेर रखा है।जहां पर तुमने सुवर्णविहार देखा था मंदाकिनी वहीं अलकनंदा को छोड़ देती है।

    अलकनंदा के पूर्वतट तथा गंडकी के किनारे श्रीहरिक्षेत्र वर्तमान है।समय आने पर यहां एक श्रीमूर्ति प्रकाशित होगी तथा एक सुंदर उपवन सुशोभित होगा।अलकनंदा के पश्चिम तट पर काशी का दर्शन करो। यहां पर शैव तथा शाक्त मुक्ति पाने का प्रयास करते हैं। यह हरिहर क्षेत्र वाराणसी से श्रेष्ठ है।यहां धूर्जटी शिव डमरू धारण किये विराजमान हैं। यहां पर शिव गौर गौर कहकर सब समय नृत्य करते हैं तथा अपने अनुयायियों के लिए गौरभक्ति की प्रार्थना करते हैं। एक हज़ार वर्षों तक काशी में निवास कर सन्यासियों को जिस मुक्ति की प्राप्ति होती है , उस मुक्ति को गौरभक्त चरणों से ठोकर मार हरि हरि बोलते नृत्य करते हैं। वह गौर नाम का पान करते ही स्वयम को धन्य मानते हैं।यदि कोई जीव मरते समय यहां शरीर छोड़ देता है तो शिव मरते हुए उसके मुख में गौर नाम उच्चारण करते है। इसलिए इस धाम को महावाराणसी भी कहते हैं क्योंकि मरणोपरांत गौरनाम से सद्गति की प्राप्ति होती है। यहां पर देह त्याग करने वालों को किसी प्रकार का कोई भय नहीं होता है।

    इतना कहकर श्रीनित्यानन्द प्रभु नृत्य करने लगे तथा श्रीजीव को भी गौर प्रेम प्राप्त हो इसके लिए प्रार्थना करने लगे।अलक्षित रूप से सदाशिव ने श्रीनित्यानन्द प्रभु के चरणों मे प्रणाम किया।यहां पर सदाशिव गौरी के संग गौरसुन्दर के नामों का उच्चारण करते हुए अपनी सभी अभिलाषाएं पूर्ण करते हैं। स्वतंत्र प्रभु श्रीनित्यानन्द जी सभी भक्तों को सँग लेकर गाडिगाछा ग्राम में पहुंचे।तब हास्य करते हुए कहने लगे इस द्वीप का नाम गोद्रुम है।यहां पर सुरभि नित्य वास करती है। श्रीकृष्ण की माया के वशीभूत होकर जब इंद्र ने अभिमान पूर्वक गोकुल पर मूसलाधार वर्षा की तब श्रीहरि ने गोवर्धन उठाकर गोकुल की रक्षा की थी।इंद्र का अभिमान चूर्ण होने पर उसने श्रीहरि को पहचान लिया।अपने अपराध को क्षमा करवाने हेतु इंद्र ने भूमि पर दण्डवत करके श्रीकृष्ण के चरणकमलों का वंदन किया। यधपि दया सागर श्रीकृष्ण ने इंद्र को क्षमा कर दिया तथा अभय प्रदान किया तब भी उनका भय दूर नहीं हुआ। वह सुरभि से कहने लगे श्रीकृष्ण को न पहचान मुझसे अपराध हो गया है।मैंने सुना है कि कलियुग में श्रीकृष्ण नवद्वीप में गौरचन्द्र के रूप में अपनी लीला का प्रकाश करेंगें।मुझे भय है उस समय भी माया के प्रभाव से पुनः कोई अपराध न कर बैठूं। हे सुरभि तुम तो सब कुछ जानती हो। इस अपराध से बचने का कोई उपाय मुझे बताओ।तब सुरभि ने कहा चलो हम दोनों मिलकर श्रीनवद्वीप धाम जाकर गौरसुन्दर का भजन करते हैं।तब वह दोनों गौरसुन्दर के भजन में लीन हो गए। श्रीगौरसुन्दर का भजन बहुत ही सरल है तथा इससे प्राप्त होने वाला फल कृष्णप्रेम सर्वोत्तम धन है। वह दोनों गौरांग गौरांग नाम उच्चारण करते हुए क्रंदन करने लगे तथा जल्दी ही महाप्रभु जी ने उनको दर्शन दिए। उन्होंने अद्भुत रूप कलेवर युक्त श्रीगौरसुन्दर का दिवय दर्शन किया। महाप्रभु जी मन्द मन्द हास्य कर रहे थे तथा रस के भंडार स्वयम ही गदगद हो रहे थे।

   मुस्कुराते हुए गौरसुन्दर ने कहा मैं तुम्हारे मन की इच्छा जानता हूँ। कलियुग में मैं नवद्वीप धाम में प्रकट होऊँगा तब तुम दोनों लीला में मेरी सेवा प्राप्त करोगे।इतना कहकर गौरांग अदृश्य हो गए तथा सुरभि पीपल के वृक्ष के नीचे निवास करने लगी।तब से इस द्वीप का नाम गोद्रुम हो गया है। यहां पर सुरभि भक्तों की सब इच्छाओं को पूर्ण करती है। यहां के दर्शन करने पर मन अनायास ही गौर चरणकमल में मग्न होने लगता है।क्रमशः

जय निताई जय गौर

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