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मोरकुटी युगलरस लीला-10

जय जय श्यामाश्याम  !!
नित्य निकुंज श्री मोरकुटी की पावन धरा पर मयूर मयूरी स्वरूप नृत्य क्रीड़ा करते युगल अप्राकृत कमल पुष्प पर पराग कणों की सेज पर सखी रूप कोमल पंखुड़ियों से घिरे प्रेम रस पिपासा हेतु परस्पर सुख अनुदान करते नव नव रसलीला में डूबे विचर रहे हैं।

     श्यामा श्यामसुंदर जु जो अनंत कोटि पूर्णकाम हैं तत्सुख भाव से देह धारण कर स्वयंचित्त रूपमाधुरी का अमृतत्व पान कर रहे हैं।परस्पर नेत्रों से व कर्णप्रिय मधुर नूपुरों की ध्वनि रसपान करते श्यामा श्यामसुंदर जु रसक्रीड़ा में मंत्रमुग्ध हैं।श्यामा जु के अंगों पर लगा चंदन केसर उबटन लेप श्यामसुंदर जु को आकर्षित करता उन्हें नासिका से भी रसपान करने का आमंत्रण देता है।

      अद्भुत महक जो श्यामा जु और श्यामसुंदर जु के रोम रोम से उठ कर रसप्रवाह कर रही है उससे श्यामसुंदर जु भ्रमर रूप होकर श्यामा जु की रसपरागरूपी देह पर मंडराने लगे हैं।सखीरूप मोरपंखों से रस पिपासु भंवरा रस चुराता अपनी तृषा को पल पल बढ़ा रहा है।मयूरी बनी श्यामा जु की सुघड़ सुनहरी देह पर मयूर बने श्यामसुंदर जु पीतवर्ण आवरण डाले भ्रमरों को आकर्षित कर रहे हैं।निकुंज पवन उनकी सुगंध को अन्यत्र उड़ा ले जा रही है जिससे रसिक भ्रमर जो श्यामसुंदर जु के ही रूपदेह से निकल श्यामा जु की चरण सेवा पा कर स्वयं को तत्सुख हेतु तल्लीन करना चाहते हैं।

       यहाँ नृत्य क्रीड़ा स्थली पर श्यामसुंदर जु स्वयं भ्रमर हुए श्यामा जु के रसरूप के पान करने को मंडरा रहे हैं तो वहाँ सैंकड़ों भ्रमरियाँ श्रीयुगल के चरणारविंदों से उठ रही मनमोहक महक से खिंची मोरकुटी स्थल के ऊपर मंडराने लगी हैं।इन रस भ्रमरियों का ध्येय ही युगल चरणारविंद सेवा पाना है और ये पराग से मधुरस बना श्यामा श्यामसुंदर जु की रस क्रीड़ा में स्वयं योगदान देने हेतु आई हैं।ये भ्रमरियाँ निकुंज में विभिन्न स्थलों में स्माधिरूप बैठ इस नृत्य क्रीड़ा का पान करने लगी हैं।श्रीयुगल को निहारती भ्रमण करतीं ये सखियों के वादन नाद से खिंची उनके समीप आ कर बैठ जाती हैं।

       ललिता सखी जु जहाँ वृक्ष तले वीणा वादन कर रहीं हैं वहाँ उस की एक डाल पर भ्रमरी कब से अनवरत ये मधुर रसक्रीड़ा देख रही है और जड़तावश इसके रोम रोम में महक सिहरन बन समा गई है।जैसे जैसे वीणा की तारों से उठ रहा नाद इसके भीतर भावतरंगों को छेड़ गहरा कर अनहद नाद हुआ जा रहा है वैसे वैसे इसके अंतरंग गहन भाव इसकी प्रियाप्रियतम मिलन की तीव्र उत्कंठा को हृदय से नेत्रों में स्पष्ट नज़र आने लगता है।

       बलिहार  !!रसिकेश्वर जहाँ स्वयं रसिक भ्रमर बने रसपान कर रहे हैं वहीं श्यामा जु के पदचरणों पर लगे पराग से भ्रमित हुई रसिक भ्रमरियाँ भी रसिक प्रेमी की देह से उड़ उड़ कर निकुंज में मंडराने लगीं हैं।प्रेमयुगल के गहराते भावों संग रसिक के हृदय में भी प्रेम नाद गहराने लगा है और रस हेतु उसका हृदय रूपी भ्रमर उड़ चला।अद्भुत युगल के अद्भुत अभिन्न चरणरस पिपासु रसिक प्रेमी।
क्रमशः

जय जय युगल !!
जय जय युगलरस विपिन वृंदावन  !!

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