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मोरकुटी युगलरस लीला-31

जय जय श्यामाश्याम !!
नित्य रसमग्न श्री युगल मोरकुटी की पावन धरा पर मयूर मयूरी नृत्य रसक्रीड़ा से अब रासक्रीड़ा में भाव मग्न हो चुके हैं।ढोल मृदंग मंजीरों की सुमधुर संगीत ध्वनि पर ता ता थई थई थिरकते सखियों के चरण कोमल पुष्प पराग में रस भर रहे हैं।प्रत्येक पुष्प पर श्यामसुंदर जु संग सखियाँ व एक पर श्यामसुंदर श्यामा जु संग रास रचाते रसमुग्ध हो रहे हैं।

      इस दिव्य रास क्रीड़ा के चलते सभी चकोर पपीहा मयूर कोकिल इत्यादि मौन धारण कर समाधिस्थ हैं पर सखियों व श्यामा श्यामसुंदर जु की अति सुमधुर भ्रमर भ्रमरियों जैसी गुंज़ार है जो उससे कई भ्रमर आ कर निकुंज के ऊपर मंडरा रहे हैं।सखियों की पद थाप से पराग कण महक उठे हैं और उनमें से उठती यह अद्भुत मनहरिणी महक भ्रमरों को आकर्षित कर रही है।वे मदमाते रस पिपासु भ्रमर श्यामसुंदर जु की ही तरह प्रेम रस की महक पर आने से खुद को रोक नहीं पाते।पंख पसारे ये भ्रमर कमलरूपी सिंदूरी आँगन पर उड़ रहे हैं।

         मंगल अति सुमंगल प्रेमगीत गूंज रहा है और इससे रस सौरभ चहुं दिशाओं में फैल रहा है।श्यामा जु संग सब सखियों को मधुसूदन श्रीकृष्ण से ऐसी लग्न लगी है कि वे स्वयं को भुला चुकी हैं।स्व की सुद्ध खोकर केवल श्यामसुंदर जु की रसतृषा हेतु रसनिमग्न बावरी सी हुई नृत्य कर रही हैं।भोर से रात्रि तक तन्मयता से युगल सेवा में संलग्न यह सखियाँ अर्धरात्रि में रास वेला तक ऐसे रमी हैं कि उन्हें देहाध्यास ही नहीं रहता कि वे श्रीयुगल से भिन्न जी भी सकतीं हैं।

       रास गहराते गहराते कुछ ही क्षणों में महारास में बदल चुका है।अब गोपियों से सखियाँ और सखियों से भी कायव्यूहरूप अंतरंग सहचरी भाव लिए यह युगलरस भावभंगिमाएँ स्वयं को बिल्कुल विस्मरण कर चुकी हैं।

          श्रीराधे वृषभानुजा वृंदावन विपिन विहारणी जु की अपार कृपा पात्रा सखियाँ श्यामसुंदर जु की सुखरूपा नृत्य करतीं कब स्वयं राधारूप हो जातीं हैं यह उन्हें भी ज्ञात नहीं रहता।हर एक पुष्प पर जैसे श्यामा श्यामसुंदर जु ही गलबहियाँ डाले रास क्रीड़ा कर रहे हैं।सभी चिन्मय देहस्वरूप सखियाँ एकरस एकरूप होकर श्यामा जु से ही तन्मय हो चुकी हैं।

         हर तरफ से एक ही राधेगोविंद नाम की धुन सुनाई आ रही है और बीच बीच में पराग कणों पर थिरकते युगल चरणों से अद्भुत घुघरूओं की झंकार तो कभी केवल करधनी की ठुमक ठुमक लचक व कभी केवल कपोलों अधरों से टकराते कर्णफूल और नख बेसर की सुमधुर संगीत ध्वनि।एकरस एकरूप अनगिनत श्यामा श्यामसुंदर जु की एक ही सी सारी रास नृत्य क्रीड़ाएँ।श्यामा जु की नाग सी वेणी और श्यामसुंदर जु के नागिनों के झुंड जैसे घुंघराले बाल झूमते एक एक चरण थाप सब एकरस।

       कुछ देर तक यूँ ही यह रासक्रीड़ा कई कमल पुष्पों पर अनगिनत श्री युगल के बीच हो रही लगती है पर फिर एक एक कर सब कायव्यूहरूप सखियाँ स्पंदन रूप श्यामा जु में समाने लगतीं हैं और श्यामसुंदर जु भी अनेक से एक हो जाते हैं।अब एक ही विशाल पुष्प पर एक ही श्यामा श्यामसुंदर जु महारास नृत्य क्रीड़ा करते विहर रहे हैं।उनके अंग प्रत्यगों से निकुंज का दिव्य रस बह चला है जिससे अति कोमल पराग कण रसमदमाते से हुए मकरंद रूप होकर झड़ने लगते हैं।यह मकरंद कण श्यामा श्यामसुंदर जु के चरणों से लग रहे हैं और इनकी महक व आभा ऐसी कि इनकी रंगत में दिव्य चमक आ गई है।

       बलिहार  !!अद्भुत भाव दर्शन श्रीप्रिया जु की कृपा से रसिक हृदय में नित्य पल एक नवरूप ले लेता है और भ्रमर रूप यहाँ से वहाँ व वहाँ से यहाँ दौड़ती रसपिपासु मन की मदमुग्ध निगाहें जो एक एक पुष्प से पराग चुरा कर एक ही पुष्प पर केंद्रित हो जाती हैं।सर्वत्र श्यामा श्यामसुंदर जु की ही प्रतिछायारूप सखियाँ और फिर सखियों की देह में भी श्यामा जु के अद्भुत दर्शनों पर बलिहारी चंचल मन।चिन्मय भावराज्य की चिन्मय भावतरंगों की महक में डूबा चिन्मय रसिक भ्रमर।
क्रमशः

जय जय युगल !!
जय जय युगलरस विपिन वृंदावन !!

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