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मोरकुटी युगलरस लीला-26

जय जय श्यामाश्याम  !!
"जब तैँ मैँ देखे नँद-नंदन,खेलत जमुना-कूल री।  
तब तैँ कुल कौ कूल बहि गयौ,गइ सब सुध-बुध भूल री।।   
तन-मन-प्रान पलटि गए सगरे,भए कान्ह के रूप री।
निसि-दिन अनुभव करत आपु मँह मोहन रूप अनूप री।।
घर-बाहर,जल-थल,नभ-कानन,जहँ-तहँ दृष्टि-पसार री।
तहँ-तहँ हौँ नित निरतत निरखौ प्यारौ नंद-कुमार री।।
हौँ बौरी,की दृष्टि पलट गइ,की जय छायौ श्याम री।
नैन-प्रान-मन सब जा अटके रूप-सुधा-रस-धाम री।।"

          श्यामसुंदर जु के विशुद्ध प्रेम ने सदैव गोपियों का मन हरा है।घर परिवार तज सब वंशी की धुन पर झूमती नाचती अपने प्रेमी के पास आ जातीं हैं।ऐसी ही कुछ सखियाँ जो प्रियतम श्यामसुंदर के प्रेम के मद में चूर हैं वे श्यामा जु की कायव्यूहरूप सखियाँ हैं जो स्पंदन रूप श्यामा जु के हृदय के भावरस को जान सदैव डूबी और स्वयं में श्यामा जु को धारण किए रहती हैं।यह कहना भी गलत ना होगा कि यह श्यामा जु की अंतरंग सखियाँ सदा युगलरस से भरी युगल प्रेम को समर्पित हैं।श्यामा जु में भावरूप रहने वाली सखियाँ ही श्यामा जु की तन प्राण हृदय हैं।अगर प्रियालाल जु प्राणप्रतिष्ठित मूर्ति स्वरूप हैं तो सखियाँ मंदिर में बजने वाली घंटियाँ व आरती ध्वनि हैं।प्रेम पुजारिनें हैं प्रेम ध्वजा गोपियाँ भी जो निरंतर प्रियतम सुख हेतु प्रिया जु को नव नव खिलित भावपुष्प अर्पित करती हैं और उन्हें नव नवीन उमंग तरंगों में सजाती संवारती रहती हैं।नेहपूर्ण विशुद्ध प्रीति जिसमें तनिक भी स्वसुख हेतु कुछ नहीं।सखियाँ आरम्भ से लेकर अंत तक सेवारूप पूरी रसक्रीड़ा का संचालन करती हैं और उनकी क्रीड़ाओं के नायक नायिका सदैव श्रीयुगल ही हैं।

      मोरकुटी की पावन रसिक भजन स्थली पर बहुत समय से मयूर मयूरी रसक्रीड़ा निरंतर चल रही है।स्वाभाविक है रसरास क्रीड़ा में प्रेम भाव को गहन से गहनतम होना ही है।जैसे जैसे नृत्य रसलीला में श्यामा श्यामसुंदर जु की समीपता बढ़ रही है वैसे रस विस्तार बढ़ता जा रहा है।एक प्राकृतिक मयूर जोड़े से आरम्भ हो यह नृत्य क्रीड़ा युगल से फिर प्रकृति और पक्षियों पर अपना पूर्ण प्रभाव छोड़ अब सखियों को प्रभावित करने लगी है।

       जैसे ही श्यामसुंदर जु लीलारस लालसा हेतु झूले से उठ कर अन्यत्र प्रेम वर्षण करने लगते हैं तभी श्यामा जु के हृदय में रस उच्छल्लन सखियों के हृदय की तारों को छेड़ देता है।सखियाँ श्यामा जु से अभिन्न नहीं हैं इसलिए वे उनकी भावभंगिमाओं से प्रेमलिप्त हुईं व श्यामसुंदर जु के वंशी निनाद से रसस्कित क्रीड़ा के पूर्वराग हेतु उठ क्रीड़ा को आगे बढ़ाती हैं।

            धरा धाम पर रज अणुओं से कमल पुष्पों का अंकुरित होकर फूटना और पक्षियों के मधुर कलरव के पश्चात अब श्यामा जु की कायव्यूहरूप सखियों ने रसक्रीड़ा को आगे बढ़ाने हेतु स्वयं रस धारण कर लिया है।सुमधुर समुचित गायन उपरांत अब उन्मादिनी सखी का नृत्य करना श्यामा श्यामसुंदर जु के हित में है।उन्माद में भरी सखी के प्रेम रस की महक से सब प्रभावित हो रहे हैं।आवेश में इसने अपनी सुधि बिसरा दी है और बस भाव विह्वल होकर हृदय की वीणा पर"श्याम____ हा श्यामा____"पुकार रही है।

सखियाँ गान कर रही हैं-

"छलकि रहि गोपी मन अति प्रीती।
चली छाँडि लज्जा सब कुल की,त्याग लोक की नीती॥
भ‌ई बावरी,दृग अपलक,सिर बिथुरे कुंचित केस।
सुधि नहिं कछु मन-तन-बसननि की,कौन सँवारै बेस॥
भटकि रही मद-छकी-सदृस अति,नहीं बाह्य कछु चेत।
रुकि-रुकि बोलि उठत गद्‌‌गद-'हा प्यारे ! प्रान-निकेत !’॥
नाचि उठी करि हास्य मनोहर-'आय ग‌ए प्रानेस’।
कह,पुनि पकरन भुजा पसारी,परम प्रीति-आबेस॥
नहीं पाय,संकुचित बाहु करि,परी धरनि बेहाल।
मन-भावन गोपी-प्रानाधिक आय गये ततकाल॥
ल‌ई उठा‌इ,अंक सिर राख्यो ,करि निज बसन बयार।
भयौ चेत,आनंद हृदय अति,मिली सुभुजा पसार॥"

        उन्मादित सखी को डूब कर नृत्य करते देख श्यामा जु भी उन्माद में सखियों के गायन के साथ झूमने लगतीं हैं और श्यामसुंदर जु भी रस लालसा हेतु वंशी को अधरों से लगाए सखियों व श्यामा जु की रसलिपसा को बढ़ाने लगते हैं।सखी की आँखों से अनवरत अश्रुधार बह रही है।देह से तो वह नृत्य कर रही है पर उसके हृदय की दशा कुछ और ही है जिसे उसके युगल भलिभांति जानते हैं और वही कर रहे हैं जो सखी चाहती है और सखी वही कर रही है जो उसके युगल चाहते हैं।यह परस्पर सुखहेतु युगल के प्रति सखी का अद्भुत भाव समर्पण ही है।

        बलिहार  !!सखियों के विशुद्ध प्रेम रस का अद्भुत तत्सुख भाव।रस पिपासु श्यामसुंदर भ्रमर की तरह वंशीध्वनि की गुंजार करते निकुंज सखियों पर न्योच्छावर हैं और श्यामा जु भावभावित हुईं श्यामसुंदर जु पर जिसकी परस्पर अनुभूति लिए सखियाँ श्रीयुगल के हृदय के भावों को ही प्रेम रंग में डुबो उन्हें ही आनंद दे रहीं हैं।अद्भुत रस रसिक हृदय में पल पल नव नव भाव लिए प्रियालाल जु को समर्पित हो रहा है।
क्रमशः

जय जय युगल  !!
जय जय युगलरस विपिन वृंदावन  !!

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