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मोरकुटी युगल लीलारस-19

जय जय श्यामाश्याम  !!
मयूर मयूरी नृत्य क्रीड़ा से विश्रामित युगल हंस हंसिनी जोड़े के आग्रह को मान कुछ क्षण रूक जाते हैं जिसे देख वृंदा देवी अति प्रसन्न होतीं हैं और दासियों से कह वहीं मोरकुटी में तमाल वृक्ष के तले सुंदर सुडोल झूले का निर्माण करा देतीं हैं।

       झूले की रेश्म की डोर और पुष्पाविंत सुंदर साज सज्जा अति कोमल बना दी गई है जिसके सब ओर गुलाब पुष्प की मनमोहक झालरें लटक रही हैं और साथ ही ऊपर गुलाबी रंग की चूनर पर चमकते सितारों जैसे पुष्पों को सजाकर श्यामा श्यामसुंदर जु के ठीक मस्तक ऊपर सुंदर गुबंदाकृति सा छोरों से झूले की डोर से बँधी है।छायारूप यह श्यामा श्यामसुंदर जु को सुख भी दे रहा है और सुंदर होने से आकर्षण भी।

        पुष्पों की महक से खिंच कर पराग कण पिपासु भ्रमर झूले पर बैठना चाहते हैं पर सखियाँ दोनों ओर खड़ी चंवर ढुरा रही हैं जिससे भ्रमर वहाँ नहीं बैठ पाते और निकुंज में अन्यत्र उड़ उड़ कर श्यामा श्यामसुंदर जु की देह सुगंधी से मग्न हुए विचर रहे हैं।सखियाँ श्यामा श्यामसुंदर जु को दोनों हाथों से पकड़ ले आती हैं और उन्हें झूले पर विराजने का आग्रह करतीं हैं।

          श्यामा श्यामसुंदर जु जैसे ही पुष्पाविंत झूले पर विराजते हैं उसकी चकाचौंध दूगनी हो जाती है और निकुंज की सारी सुंदरता युगलचरणों में आ समर्पित होती है।ऊपर बंधी गुलाबी चूनर की छाया में बैठे श्यामा श्यामसुंदर जु अति सुंदर लग रहे हैं।उनकी मुखकांति जो गौर और श्यामल है गुलाबी रंग की दिव्य आभा से लिप्त अद्भुत प्रेमरस में भीगी सी लग रही है।परस्पर निहारते युगल कभी एक दूसरे को तो कभी सखियों द्वारा सजाए सुंदर निकुंज को देखते हैं।

         पल में ही कुछ सखियाँ दिव्य पात्रों में फल मिठाईयाँ पेय पदार्थ ताम्बूल बीड़ा इत्यादि ले युगल समक्ष हाजिर होती हैं और उन्हें घेर कर आगे बनी वेदी पर सब सजाकर रख देती हैं।वृंदा देवी यह सब देख अति शौभायमान होतीं युगल के प्रति सखियों की सेवा भावना पर प्रसन्न होतीं हैं और युगल से फल मिठाई आरोगने का आग्रह करतीं हैं।अप्राकृत रस निर्झरण हो रहा है युगल से सखियों में और सखियों से युगल में।

        एक एक कर सखियाँ पात्रों को श्यामा श्यामसुंदर जु के आगे करतीं हैं।जो कुछ भी श्यामा जु अपने कोमल कर से उठातीं हैं वह श्यामसुंदर जु को पहले चखाती हैं और जो भी श्यामसुंदर जु उठाते हैं वह पहले श्यामा जु के मुख में डालते हैं।यूँ ही परस्पर नेहभरी चित्तवन से श्यामा श्यामसुंदर जु एक दूसरे का उच्षिट प्रसाद ही पाते हैं।अंत में दोनों एक दूसरे के मुख में ताम्बूल व बीड़ा रख सखियों को प्रसाद ग्रहण करने को कहते हैं और साथ ही वृंदा देवी जु से सभी वन्य जीवों में भी प्रसाद बंटवाने का आग्रह करते हैं।

          श्यामा श्यामसुंदर जु की सेवारत वन्य जीव श्यामाश्याम जु के समक्ष संगीत व गान प्रदर्शन हेतु प्रतीक्षा कर रहे हैं।यमुना जु की जल तरंगों पर तैरते हंस हंसिनी कुछ गुनगुनाते हुए मंद गति से झूम रहे हैं और श्यामा श्यामसुंदर जु के विशुद्ध प्रेम पर गीत गाना आरम्भ कर चुके हैं।प्रेमी युगल हंस जोड़ा स्वयं प्रेमडोर से बंधे विश्वविमोहन श्यामा श्यामसुंदर जु की गहन प्रीत पर चिंतन करते पक्षियों की संगीत ताल पर ताल मिलाते बारी बारी से श्रीयुगल की महिमा गाने लगते हैं।

        बलिहार  !!ऐसा विशुद्ध रस प्रवाह श्री धाम वृंदावन की वीथियों से प्रसारित होता हुआ पूरे ब्रह्मांड को महकाने में तत्परता से प्रेमयुक्त करता है।अद्भुत रस विस्तार रसिक हृदय से होते हुए अन्यत्र युगल प्रेमियों के हृदय तरंगों को रस ललायित करता बह रहा है सीधे श्यामा श्यामसुंदर जु के लीलास्थल की रसक्रीड़ाओं  से महक कर।
क्रमशः

जय जय युगल  !!
जय जय युगलरस विपिन वृंदावन  !!

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