श्री जी महाराज 2

र के कई मन्त्री महोदय, राजस्थान एवं अन्य राज्यों के राज्यपाल महोदय, मुख्यमन्त्री महोदय तथा उनके मन्त्रीमण्डल के सदस्य एवं विधायक महोदय आपके आशीर्वाद हेतु आचार्य पीठ में पधार चुके हैं। इनके अलावा भारतवर्ष के श्रेष्ठ कवि, विद्वद्जन, गायक कलाकार एवं संगीतकार समय-समय पर पीठ में दर्शनार्थ पधारते रहे है। आपके आशीर्वाद से श्रीनिम्बार्कतीर्थ के अलावा अन्य कई स्थानों पर भी नये मन्दिरों के निर्माण के साथ-साथ प्राचीन मन्दिरों एवं भवनों के पुन:रुद्धार का कार्य भी हुआ है। तथा अभी भी कई स्थानों पर कार्य चल रहा है। इनके अलावा आपके सानिध्य में वि0सं0 2001 प्रयाग कुम्भ में भक्तों के लिये प्रथम बार निम्बार्क नगर की स्थापना की गई। जो आज तक हर कुम्भ एवं अद्‍​र्धकुम्भ में अनवरत जारी है।
आचार्य श्री स्वयं संस्कृत, हिन्दी, बंग्ला एवं राजस्थानी आदि भाषाओें के जानकार ही नहीं अपितु आयुर्वेद तथा संगीतकला के मर्मज्ञ भी है। आपने संस्कृत एवं हिन्दी के कई ग्रन्थो की रचना की है। जो निम्न प्रकार से है- 1. श्रीनिम्बार्क भगवान कृत प्रात:स्तवराज पर युग्मतत्त्वप्रकाशिका नामक संस्कृत व्याख्या 2. श्रीयुगलगीतिशतकम् 3. उपदेश दर्शन 4. श्रीसर्वेश्वर सुधा बिन्दु 5. श्रीस्तवरत्नाञ्जलि 6. श्रीराधामाधवशतकम् 7. श्रीनिकुञ्ज सौरभम् 8. हिन्दू संघटन 9. भारत-भारती-वैभवम् 10. श्रीयुगलस्तवविंशति: 11. श्रीजानकीवल्लभस्तव 12. . श्रीहनुमन्महिमाष्टकम् 13. श्रीनिम्बार्कगोपीजनवल्लभाष्टकम् 14. भारतकल्पतरु 15. श्रीनिम्बार्कस्तवार्चनम् 16. विवेकवल्ली 17. नवनीतसुधा 18. श्रीसर्वेश्वरशतकम् 19. श्रीराधाशतकम् 20. श्रीनिम्बार्कचरितम् 21. श्रीवृन्दावनसौरभम् 22. श्रीराधासर्वेश्वरमंजरी 23. श्रीमाधवप्रपाष्टकम् 24. छात्र-विवेकदर्शन 25. भारत-वीर-गौरव 26. श्रीराधासर्वेश्वरालोक 27. श्रीपरशुराम-स्तवावली 28. श्रीराधा-राधना 29. मन्त्रराजभावार्थ-दीपिका 30. आचार्य पंचायतनस्तवनम् 31. राधामाधवरसविलास (महाकाव्य) 32. गोेशतकम् 33. सीतारामस्तवादर्श: 34. स्तवमल्लिका 35. श्रीरामस्तवावली 36. श्रीमाधवशरणापत्तिस्तोत्रम् आदि-आदि ।
आप द्वारा लिखित पाठ अभी कुछ समय पूर्व तक माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान की कक्षा दस के संस्कृत विषय में सम्मलित था। इस प्रकार आपने कई ग्रन्थों की रचनायें की है। आपने अपने साहित्य में धर्म के साथ-साथ अन्य समसामयिक विषयों यथा- देश प्रेम, पर्यावरण, भ्रष्टाचार आदि पर भी अपने विचारों को व्यक्त किया हैं।

श्रीजी विशेषण :-
आचार्य पीठ के आचार्यों को ’’श्रीजी’’ महाराज के नाम से सम्बोधित किया जाता है। आचार्य पीठ के आचार्यों को ’’श्रीजी’’ महाराज उच्चारित करने की परम्परा निम्बार्काचार्य श्री गोविन्दशरण देवाचार्य जी के समय मे प्रचलित हुई थी, क्योंकि एक बार जब आप श्री की पधरावणी जयपुर महाराजा के यहाँ हुई थी। तब एक दिन आचार्य श्री सदुपदेश के लिये रनिवास में विराज रहे थे। उस समय महल में केवल रानियाँ एवं दा​सियाँ थी। वहाँ पर आचार्य श्री के अतिरिक्त अन्य कोई भी पुरुष नहीं था। उसी समय किसी विरोधी ने जयपुर महाराजा के कान भरते हुये कहा ’’महाराज रनिवास में आचार्य श्री के अतिरिक्त अन्य कोई भी पुरुष नहीं है। वहाँ पर केवल रानियाँ एवं दा​सियाँ ही है।’’ परिणाम स्वरूप जब सशंकित महाराजा ने महल में जाकर देखा तो वे आश्चर्य चकित रह गये। वहाँ महाराजा ने स्वयं अपनी आँखों से देखा कि आचार्य श्री राधिकाजी (श्रीजी) स्वरूप में विराज रहें है। यह देखकर जयपुर महाराजा अपने आप बहुत लज्जित हुये और आचार्य श्री को समस्त बात बताते हुये क्षमा याचना करने लगे। आचार्य श्री ने महाराज को क्षमा करते प्रभु भक्ति प्राप्त होने का आशीर्वाद प्रदान किया। उपरोक्त घटना के पश्चात इस पीठ के आचार्य गणों को सम्माननीय ’’श्रीजी विशेषण’’ से सम्बोधित किया जाने लगा।

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