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मोरकुटी युगल लीलारस-9

जय जय श्यामाश्याम  !!
श्री किशोरी जु मयूर मयूरी नृत्य दर्शन करतीं भाव विभोर हुईं स्वयं उनके रंग में रंगी नृत्य करने लगीं और श्यामा जु की भाव दशा पर श्यामसुंदर जु भी अद्भुत नृत्य भाव प्रदर्शन में बहने से खुद को रोक ना सके।सब सखियाँ अत्यधिक विचित्र भाव चित्रण करतीं युगल की रसक्रीड़ा में रसवर्धन हेतु हृदयातुर हो उतरने विचरने लगतीं हैं।

     श्यामा जु की देह पर सजा श्रृंगार उनके भावों का आईना ही हो आया है और गहराते गहराते उनकी कटि किंकणियों ने मयूर पिच्छ का स्वरूप भी धारण कर लिया है।गौरवर्णा श्यामा जु की सुंदर सुकोमल लचीली कमरिया पर सखियों ने मोरपिच्छ का रूप धर लिया है।एक एक सखी एक एक मोर पंख हो आई है।श्यामा जु की देह का सुनहरी नीला वस्त्र श्रृंगार सब मयूर रूप हो गया है।उनकी करधनी पायल चूड़ी नूपुर गलहार बेसर इत्यादि पर लगे सब घुंघरू अब मोरपंख बन उनकी कटि पर आ सजे हैं।श्यामा जु के भाव रस में बहते उनकी खनक इन मोरपंखों से भी आने लगी है।

     श्यामल घण के पीछे छुपे सूर्य बीच बीच में अपनी शीतल किरणों की चमक से लहराते मोरपंखों को चमकाती चटकाती है।ये रौशनी मोरपंखों से छन छन कर श्यामा जु की सुनहरी देह को छूकर गुम हो जाती है और कुछ नीले आसमान से टकरा कर श्यामसुंदर जु के नील रंग को गहराने लगती है।

      मयूरी बनी श्यामा जु का अद्भुत भाव प्रदर्शन देख श्यामसुंदर जु भी मयूर पिच्छ धारण कर लेते हैं।उनके सिर पर लगा मोरपंख झुक कर श्यामा जु के चरणों को छूकर श्यामसुंदर जु की सतरंगी कामरिया को मोरपिच्छ का स्वरूप दे देता है जिसे श्यामसुंदर जु अपनी फेंट पर बाँध लेते हैं।

       श्यामा श्यामसुंदर जु मोरकुटी की पावन धरा पर मयूर मयूरी रूप नृत्य करते सखियों संग रसक्रीड़ा कर रहे हैं।वाद्यों पर संगीत बजाती सखियाँ कमल पुष्प की सुघड़ कोमल पंखुड़ियाँ सी अभिन्न रसप्रवाह कर रहीं हैं।दिव्य छटा बिखर रही है श्रीनिकुंज के प्रांगण में।

      इस अद्भुत रसप्रवाह की दिव्य महक वृंदावन धाम में कण कण को महका रही है।निकुंज ब्यार संग बह कर यह रससंचार सर्वत्र फैल रहा है।डाल डाल पर विराजे खग पक्षी व धरा पर बिखरा एक एक कण जड़ हुआ इस रसक्रीड़ा का पान कर रहा है जैसे सब श्यामसुंदर जु के भावरूप ही श्यामा जु के चरणों से उनके श्रृंगार का दर्शन करते विचर रहे हों।

    कमल पुष्प पर उद्गम हुए इस दिव्य महक का असर हर कहीं दिख रहा है।श्यामा जु की अंगकांति से झर रहे रस का नेत्रों से पान करते श्यामसुंदर जु अब नासिका से रसपान करने हेतु भ्रमर बन निकुंज के ऊपर अनंत रूप धर मंडराने लगे हैं।

    बलिहार  !!रसिक हृदय पर वीणा की तारों से निकले संगीत स्वरों का ऐसा गहन असर कि अद्भुत भाव उच्छल्लन हो रहा है।प्रेमी हृदय की भाव उड़ान ज़रा आसमान में उड़ी तो श्यामसुंदर जु ही भ्रमर रूप श्यामा जु के रस श्रृंगार को निहारते नासिका से उस दिव्य रस महक का पान करते उड़ते दिखाई देने लगे।
क्रमशः

जय जय युगल !!
जय जय युगलरस विपिन वृंदावन  !!

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