प्रेमी का विलाप

प्रेमी का विलाप..(संक्षिप्त)

उधौ मन न भये दस बीस..
एक हतौ सो गयौ स्याम संग..
अब को आराधै ईस....

श्री कृष्ण की आज्ञा पाकर जब उद्धव मथुरा से व्रज गए..तब रात्रि विश्राम कर अगले दिन गोपियों से मिल के उन्हें ब्रह्म ज्ञान देने लगते है..
तब उसके जवाब में गोपिया उद्धव से कहती है..कि....

उद्धव हमारे पास मन कोई दस बीस नहीं है..
एक ही मन था..जो कि श्यामसुन्दर के साथ चला गया..
तो अब तुम्हारे कहने पर हम किस ईश्वर को आराधे....

जो श्यामसुन्दर हमारे सर्वस्व है..
केवल उन्हीं की याद ही हमें जीवित रखे हुई है..
ओ उद्धव अब हम किसी की उपासना, आराधना करने योग्य नही रहीं....
गोपियाँ अश्रुपात करते हुए ये सब उद्धव से कहती है....

कुछ इसी प्रकार का हाल उस प्रेमी का होता है जो
श्री कृष्ण से अपने प्रेम के चलते अपने कर्म और कर्तव्य को पूरा करने में असहजता का अनुभव कर रहा होता है..

कर्म की पूर्णता से ही कर्तव्य की पूर्णता है..
प्रेम प्रवाह के चलते प्रेमी अपने कर्म को ही पूर्ण नहीं कर पाता..तब कर्तव्य की चले ही क्या....

प्रेमी हर उस आने वाले क्षण की इस प्रकार प्रतीक्षा करता है कि शायद इस में मुझे मेरे सर्वस्व श्यामसुन्दर के दर्शन अवश्य होंगे..वो मुझसे मिलने अवश्य आएंगे..बस इसी आशा में उस प्रेमी का जीवन टिक कर रह जाता है....

विरहित जीवन जीते हुए श्री कृष्ण की याद में करहाता प्रेमी जगत, संसार के उन सभी असहनीय शब्दों को सुनने पर विवश हो जाता है जो साधारण व्यक्ति के सहन के बाहर है....और वही कठोर शब्द उसके प्रेम को और प्रगाढ़ करने में निसंदेह सहायक होते है....!

श्री कृष्ण से मिलन की तड़प में यही प्रेमी का विलाप है..
जो प्रकृति या किसी व्यक्ति विशेष से नहीं अपितु स्वयं से ही है...कि कब मेरे भाव उस स्थिति में पहुंचेंगे जब मेरे नाथ मुझ पर अनुग्रह कर मुझे अपने साक्षात् दर्शन देने आएंगे....!

श्री राधे..🙌

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