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मोरकुटी युगलरस लीला-21

जय जय श्यामाश्याम  !!
नृत्य क्रीड़ा के बाद युगल हंस हंसिनी के जोड़े की रसक्रीड़ा में निमग्न हैं।हंस हंसिनी बारी बारी से श्यामा श्यामसुंदर जु के प्रति गीत गा रहे हैं।हंस श्री राधे जु के लिए तो हंसिनी श्री कृष्ण हेतु।मोरकुटी यमुना पुलिन पर रसक्रीड़ा को आगे बढ़ाने हेतु युगल को जड़ता से निजात दिलाने के लिए इस लीला का अवतरण सखियों का तत्सुख नेह ही है जो हंस हंसिनी के रूप में युगल प्रसाद ही है।

         तो पहले हंस गा उठता है प्रिया जु के विशुद्ध प्रेम की अद्भुत झाँकी अनुरूप-

"पूर्ण त्यागमय सर्वसमर्पण का जिनके अनन्य अभिलाष। 
निज-सुख-वाञ्छा-लेश-गन्ध का त्याग,सहज मन परमोल्लास।।
प्रियतम-सुख ही एकमात्र है जिनके जीवन का आनन्द। 
पूर्णानन्द ममत्व नित्य प्रियतम-पद-पंकज में स्वच्छन्द।।   
प्रियतम मन से जिनका मन है,प्रियतम प्राणों से हैं प्राण।
प्रियतम सेवारत नित श्रवणेन्द्रिय त्वग्-दृग रसना-घ्राण।।
नित्य कृष्ण-सेवा-रसरूपा सर्वसद्गुणों की जो खान।
सर्वसुखों के दाता को भी देती अहंरहित सुखदान।।
ऐसी प्रियतम-सुख-स्वरूपिणी,कृष्ण गतात्मा निरहंकार।
गोपीजन है भरा हृदय शुचि प्रेम-सुधारस पारावार।।
जिनके पावन प्रेमामृत-रस-आस्वादन के हित भगवान।
शरद-निशाओं में मधु मन कर निर्मित रचते रास विधान।।
पुन्यमयी उन गोपी जन के पदरज में सतकोटि प्रणाम। 
जिसे चाहते उद्धव बनकर लता-गुल्म औषधि अभिराम।।"

       यह राग सुनते सुनते प्रियतम श्रीप्रिया जु की ओर देख मुस्करा देते हैं और श्रीप्रिया मस्तक झुकातीं पलकें निवाय उनके करीब आ जातीं हैं।

   तभी हंसिनी गा उठती है-

"नँद-नँदन श्रीकृष्ण एक ही हैं सब रूपों के आधार।
वे ही सकल रसों के,वे ही सकल सुखों के भी आधार।।
चिन्तन उनका सुखमय,सुखमय हैं उनके मंगल-दर्शन।
अंग-स्पर्श परम सुखमय है,उनका सब कुछ ही कर्षन।।
आत्मरूप में तन-मन में नित मिले हुए हैं वे प्रियतम।
वे ही नित अनुभव में आते,छटा दिखाते शुचि अनुपम।। 
भरे रहें रस-रूप-सौख्यमय प्रिय वे मम बाह्याभ्यंतर।
उनकी रति में हँसता-रोता,रहे नाचता नित अन्तर।।"

       श्यामा जु यह राग हंसिनी के मुख से सुन अत्यधिक प्रसन्न हो जातीं हैं और श्यामसुंदर जु को देख लजा कर फिर पलकों को झुका लेतीं हैं।परस्पर रागसुख से श्यामा श्यामसुंदर जु का हृदय भावविभोर हो उठता है।सखियों को भी अति आश्चर्य हो रहा है कि कैसे यह हंस हंसिनी प्रेमी युगल हमारे प्यारे श्यामा श्यामसुंदर जु को आनंदित कर रहा है।सखियों को अपने प्रियालाल जु को आनंदित देख आनंद होता है और वे बलाईयाँ लेतीं इन हंस हंसिनी का प्रोत्साहन करने लगतीं हैं।

      बलिहार  !!अद्भुत लीला झाँकी उतर रही रसिक हृदय में।पल पल श्रीयुगल को रिझाने हेतु और उनको एकरस में डुबाने हेतु जैसे निकुंज की हर प्रतिक्रिया उत्तरोत्तर नवरंगों में रंगी रस वर्षा ही कर रही हो।यमुना जु का जल उन्माद से भर रहा है।मोरकुटी की पवन महक उठी।सखियों के हृदय में प्रेम उत्सव हिलोरें ले रहा और श्यामा श्यामसुंदर जु तो भावविह्वल हुए नयनाभिराम झाँकी का खूब खूब आनंद ले रहे हैं।
क्रमशः

जय जय युगल  !!
जय जय युगलरस लीला विपिन वृंदावन  !!

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