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मोरकुटी युगल रसलीला-27

जय जय श्यामाश्याम  !!
हृदय में"कृष्ण कृष्ण"नाम जपती श्यामा जु के अंतर्मन को समझती सखियों के सुर ताल पर थिरक उठी सखी के भाव जगत में वह श्यामा जु के श्री चरणों में बैठ कर उनसे लीला को आगे बढ़ाने की आज्ञा माँगती है और लाल जु की मधुर वंशी की धुन जैसे उसे यह करने को आमंत्रण दे रही हो।श्यामसुंदर जु वंशी की धुन में"राधे राधे"की नाम ध्वनि से उनकी कायव्यूहरूप सखियों को स्पंदित व व्याकुल कर रहे हैं।

          सखी जैसे ही श्रीयुगल के चरणों में स्वयं को अर्पित कर उनसे आज्ञा लेती है तो देखती है कि प्रियतम श्यामसुंदर जु उसके संग प्रिया जु के चरणों में बैठ उसे देख मुस्करा रहे हैं जिससे उसके हृदय की धड़कन बढ़ जाती है और वह तुरंत नेत्र बंद कर सखियों के बीच अपने नृत्य पर ध्यान केंद्रित करती है।

"भ‌ई गति कैसी सुनु सजनी !
धुनी मनोहर कृष्ण नाम की,जब तैं मधुर सुनी॥
अचरज भर्‌यौ अमृत हिय में,तातें प्रगटी अगिनी।
बुझै न बिनु पाये यह दरसन-सुधा दाह-समनी॥
नित्य निरंतर तडफ़त मन,नहिं चैन दिवस-रजनी।
सार-हीन जीवन बिनु प्रियतम सु-मिलन नीलमनी॥
सखी ! सुदौसी लै चलु,हों जहँ माधव नाम-धनी।
नहिं उपकार बिसारूँ पल-छिन,रहूँ कृतज्ञ-रिनी॥"

        श्यामा जु के अंतस की भावभंगिमाएँ सखी के हाव भाव में प्रत्यक्ष उतर रही हैं और श्यामसुंदर जु की सुमधुर पर तीव्र वंशी ध्वनि उसे अति व्याकुल कर रही है।सखी को अनवरत नृत्यांगना रूप धरा धाम पर थिरकते देख प्रकृति में पुष्प वल्लरियाँ झुक झुक कर धरा को छूने लगतीं हैं और रज अणु से फूटी कलियाँ सूर्य की ताक में ऊपर उठने लगीं हैं।ऊष्णता और शीतलता एक मध्य स्थिति को छू कर निकुंज धरा को कमल पुष्पों से सजाने लगी है।

         श्यामा जु श्यामसुंदर जु के कंधे पर अपना कर कमल टिकाए खड़ीं हैं और दोनों के नेत्र मुंदे हुए होने की अपेक्षा भी परस्पर निहार रहे हैं।श्यामा जु संगीत धमिनियों से प्रभावित हुईं धीरे धीरे धरा पर पद थाप दे रहीं हैं और श्यामसुंदर जु मन ही मन श्यामा जु की नूपुर पायल की ध्वनि सुन मंत्रमुग्ध से हो चले हैं।उनकी वंशी की तान अब श्यामा जु के पैरों के घुंघरूओं से मिलने लगी है।श्यामा जु के चरणों के अंगूठों में पहने अनवट् व नख धरा से नव पराग उकेर रहे हैं।

          नेत्र मुँदे सखियाँ वाद्यों पर संगीत बजा रही हैं और परस्पर श्यामा जु व सखियों के भाव एकचित्त हुए श्यामसुंदर जु को रास रचाने की अनुमति दे चुके हैं।एक सखी नृत्यांगना की गहन होती नृत्य क्रीड़ाओं ने श्यामा जु के प्रेम रस में डूब कर अन्यान्य सखियों को संपादित कर दिया है।

      वृंदा सखी जु ने रास के समय का अनुमान लगा श्यामसुंदर जु के आग्रह पर मोरकुटी की धरा पर कमल अंकुरों की चादर ही बिछा दी है।सूर्य देव भी प्रिय श्यामसुंदर जु की आज्ञा पा कर पुष्पों को एक नज़र निहार कर उन्हें श्यामा श्यामसुंदर जु के चरणों में अर्पित कर छिप जाता है।यह सब कमल पुष्प अब रात्रि में भी यूँ ही खिले रहेंगे और सखियों व श्यामा जु के चरणों से लग पूर्णतःअपनी सेवा प्रदान करेंगे।

         सखी नृत्यांगना की भाव भरी श्वासों की महक से स्पंदित हो धीरे धीरे और सखियों के भी घुंघरू थिरक उठते हैं।एक एक कर सब सखियाँ रास में शामिल होने लगतीं हैं।जहाँ जहाँ सखियाँ नृत्य करने लगतीं हैं वहाँ वहाँ उनके चरण की थाप पड़ते ही एक कमल पुष्प पूर्ण विकसित हो उठता है।हर एक पुष्प पर सखियाँ अभिन्न भाव तरंगों में डूबी नेत्र मूंदे रासक्रीड़ा में सम्मिलित होने लगतीं हैं।

          बलिहार  !!अप्राकृत पुष्प खिले हैं और पंखुड़ियों पर सखीरूप मुस्कान उभर रही है।यमुना जु की लहरों में थिरकन पवन के झोंकों में उनका स्पर्श हर तरफ उनका ही वास।प्रियतम के लिए यह प्रेम और सखी के लिए प्रेम महोत्सव है।रसिक हृदय के लिए यह नृत्य क्रीड़ा जैसे मधुर मधुर मंद मंद जल कर श्यामा श्यामसुंदर जु के सुख का पथ आलोकित करना है।सखी की आकुलता प्रिया जु की व्याकुलता का हेतु और मिलन परिधियों को छूती श्यामसुंदर जु की वंशी की मधुर तीव्र धुन।अद्भुत भावजगत अद्भुत चिन्मय रस जो भिन्न देह से बहता पर समाया एकरस एकरूप एक ही चित्त अनुरूप।
क्रमशः

जय जय युगल  !!
जय जय युगलरस विपिन वृंदावन  !!

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