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मोरकुटी युगलरस लीला-29

जय जय श्यामाश्याम  !!
"जिन श्रीराधा के करैं नित श्रीहरि गुन गान।
जिन के रस-लोभी रहैं नित रसमय रसखान॥
प्रेम भरे हिय सौं करैं श्रवन-मनन,नित ध्यान।
सुनत नाम’राधा’तुरंत भूलै तन कौ भान॥
करैं नित्य दृग-‌अलि मधुर मुख-पंकज-मधु-पान।
प्रमुदित,पुलकित रहैं लखि अधर मधुर मुसुकान॥
जो आत्मा हरि की परम,जो नित जीवन-प्रान।
बिसरि अपुनपौ रहैं नित जिन के बस भगवान॥
सहज दयामयि राधिका,सो करि कृपा महान।
करत रहैं मो अधम कौं सदा चरन-रज दान॥"

         ऐसे भाग्य सत् ईश्वर प्रेम रूप सखियों के जो सदा सर्वदा श्यामा श्यामसुंदर जु के हिय की वाणी स्वरूप हैं।नित्य पल श्यामा श्यामसुंदर जु को मिलाने की हितु नवरंग चूनर औढ़े उनके रसरूपी सितारों से सजती संवरती रहती हैं और श्यामा जु को भी सजाती हैं।

       सखियाँ श्यामा जु का भाव लिए नृत्य कर रहीं हैं जिसमें श्यामा श्यामसुंदर जु व सब सखियों के नेत्र मुंदे हुए हैं फिर भी उनके भाव एकरस हैं।रासक्रीड़ा की गहनता में महाभावा श्यामा जु के नेत्र से एक अश्रु बह जाता है जो श्यामसुंदर जु की भुजा को छूते हुए धरा पर अंकुरित कलियों को सींचता है।श्यामा जु के प्रेम रस की छुअन से रज अणु तुरंत एक सुंदर पुष्प का रूप ले लेता है जिसकी कलियाँ श्यामा जु की दिव्य भाव रूपी सखियाँ हैं।श्यामसुंदर जु की भुजा की छुअन से इसमें दिव्य पीत रंग रस संचार होता है और अद्भुत महक उठती है सखियों के द्वारा संगीत गायन व नृत्य से हो रहे स्पंदन से।

           अब श्यामा श्यामसुंदर जु भावराज्य में अप्राकृत कमल पुष्प पर विराजमान हैं।सखियों के चरणों तले भी कई रंगों के कमल पुष्प खिले हैं जो प्रेम रस से सिंचित हैं और इनकी वाणी स्वयं श्यामसुंदर जु की वंशी ध्वनि ही है।श्यामसुंदर जु वंशी ध्वनि में ऐसा नाद छेड़ते हैं कि यह जान पाना भी असम्भव है कि ध्वनि आ कहाँ से रही है।जैसे श्यामसुंदर जु श्रीप्रिया जु के पास खड़े होकर ही नहीं अपितु पूरे निकुंज में विभिन्न स्थलों पर खड़े वंशी वादन कर रहे हों।सखियों के संगीत वाद्यों की ध्वनियाँ भी गहन नाद की स्थिति में चिन्मय रूप धारण कर चुकी हैं।

      मोरकुटी की पूर्ण धरा पुष्पाविंत हुई प्रेम रसयुक्त संगीत की ध्वनि व नूपुर पायल के मधुर कलरव से रससराबोर हो उठी है।श्यामा श्यामसुंदर जु आलिंगनबद्ध हुए रस विस्तार कर रहे हैं।भावराज्य में सखियों की नृत्य क्रीड़ा ने गहन भाव को पा लिया है।जहाँ श्यामा श्यामसुंदर जु एक विशाल पुष्प पर आलिंगित खड़े हैं वहीं सभी सखियों के संग प्रत्येक पुष्प पर एक एक श्यामसुंदर खड़े वंशी बजा रहे हैं और सखियाँ रासरस में डूबी अनवरत नृत्य कर रही हैं।

            थिरकते थिरकते श्यामा जु ने भी सुमधुर वंशी ध्वनि पर नाचना झूमना आरम्भ कर दिया है।प्रत्येक पुष्प पर एक एक सखी विराजमान एक एक श्यामसुंदर जु रसक्रीड़ा कर रहे हैं और इस एक दिव्य पुष्प पर श्यामा श्यामसुंदर जु नृत्य रसक्रीड़ा में मग्न हो रहे हैं।

         रज अणु से कमल पुष्प की अद्भुत यात्रा तय कर अब इस पुष्प के हृदय की सराहना करते नहीं बनती।एक भ्रमरी के नेत्र कोर से बहा हिमअणु ललिता सखी जु की छुअन से उन्मुक्त हुआ और फिर नृत्य क्रीड़ा की धरा में गहन धमनियों से इसका विस्तार होना अप्राकृत तो है ही पर रसपूर्ण भी।श्यामा श्यामसुंदर जु जैसे ही पुष्प पर नृत्य करते हैं वैसे ही महाभाग पुष्प पद थाप से महक उठता है।

        पुष्प के मध्य भाग में अनगिनत पराग कण हैं जो अत्यंत कोमल चरणारविंदों के लिए सखियों का हृदय रूपी मकरंद ही हो आया है।श्यामा श्यामसुंदर जु के अति सुकोमल पदों में यह परागकण कहीं काँटा बन चुभ ना जाए इस भाव से पुष्प अनवरत अश्रुपात कर रहा है और पराग को अत्यधिक सुकोमलतम बनाए रखता है।पुष्प पर बिछे ओसकण रूपी अश्रु सखियों व श्रीयुगल के चरणों से लग उनके व स्वयं पुष्प के दग्ध भावों को पुष्ट कर रहे हैं।जितने सुकोमल श्यामा श्यामसुंदर जु के चरण हैं उतने ही कोमल पुष्प पराग निरंतर पद थाप पाते अतिशय प्रेम रस में डूब रहे हैं और मधुरूप मकरंद इनसे झड़ कर सखियों व श्यामा श्यामसुंदर जु के चरणों से लग रहा है।

       बलिहार  !!अद्भुत लीलारस बिखर रहा है मोरकुटी धरा धाम पर।चहूं ओर पुष्प ही पुष्प जिन पर सखियाँ हाथों में झांझ मृदंग लिए श्यामसुंदर जु की वंशी की धुन पर हल्के कदमों से पुष्प पराग पर थिरक रहीं हैं।श्यामा श्यामसुंदर जु की अद्भुत निराली छटा रसिक हृदय को आनंद तो दे रही है ही साथ ही वे श्यामा श्यामसुंदर जु के कोमल चरणारविंदों के लिए अश्रुजल बहाते सेवारत भी हैं कि उनके इस पुष्प पराग भाव में थिरकते कोई पराग कण श्री युगल के अति सुकोमल चरणों में चुभ ना जाए।
क्रमशः

जय जय युगल !!
जय जय युगलरस विपिन वृंदावन  !!

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