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मोरकुटी युगल रसलीला-24

जय जय श्यामाश्याम  !!
अति सुंदर रसक्रीड़ा चल रही वृंदावन धाम के मोरकुटी स्थल में।झूले पर विराजे राधे श्यामसुंदर जु और नीचे विभिन्न विभिन्न तरह के वाद्य यंत्र लिए बैठीं सखियाँ मधुर मधुर स्वर में श्यामा श्यामसुंदर जु समक्ष उन्हीं के प्रेम रसभाव उन्हीं को सुना सुना कर रिझा भी रहीं हैं और उन्हें ही सुख भी प्रदान कर रहीं हैं।

         परस्पर श्री राधे जु के लिए और फिर श्रीकृष्ण जु के लिए जो भी पद गाया जाता है उससे हर बार प्रिया प्रियतम जु प्रेम भरे और और करीब आते जा रहे हैं जैसे यह सब कोई और नहीं वे ही दोनों खुद एक दूसरे के लिए गा रहे हों।लाड़ली जु कभी शर्माई सी प्रियतम जु से नज़र झुका लेतीं हैं तो कभी लाल जु प्रियतमा की अट्ठकेलियों पर मंद मुस्काते उन्हें अंक लगा लेते हैं।सखियाँ प्रियालाल जु से अभिन्न होती हुई ही उनके हृदय की बात जान उन्हें सुना रहीं हैं जो श्यामा श्यामसुंदर जु स्वयं नहीं कहते वही सब सखियों के माध्यम से आज रागरूप प्रेम रस बन बह चला।

        एक के बाद एक सखी संगीत वाद्यों की गहरी तान पर मधुर गीत गायन करती जा रही है और प्रकृति झूम झूम कर श्यामा श्यामसुंदर जु का सुख आलिंगन करने को उछाल तरंगों में उचक रही है।ऐसी उच्छाल तरंगों में मयूर फिर से नाच उठते हैं।आलिंगनबद्ध युगल पक्षियों के जोड़े ताल मृदंग पर ताल देते मृदुल अति मृदुल हो झूम रहे हैं।

          सखियों और श्यामा श्यामसुंदर जु का उत्साह बढ़ा बढ़ा पुष्प भी अति सुगंध महक भर भर छिनपल में अंकुरित हो रहे हैं।हर एक एक धरा थाप से एक एक अंकुर फूट रहा है और प्रत्येक कली पुष्प बन रही है।पुष्प नाचते झूमते श्यामा श्यामसुंदर जु के चरणों में न्यौच्छावर होने को अपनी कोमल पंखुड़ियाँ गिरा रहे हैं।पवन के सुमधुर झोंकों संग उड़ उड़ जा कर कुछ यमुना जु में तो कुछ बेल पत्रों संग आलिंगित हुए स्वयं को प्रियालाल जु हेतु पूर्ण मान रहे हैं।कुछ अति सौभाग्य से जा श्यामा जु के चरणन में जा झुकते हैं और श्यामसुंदर उन्हें उठा उठा अपने मस्तक पर लगा कुछ को अपनी व प्रिया जु की वेणी पर लगा देते हैं तो कुछ को अंजली भर भर श्यामा जु की प्यारी कायव्यूहरूप सखियों पर उछाल कर बिखरा देते हैं।यह पुष्प पंखुड़ियाँ रह रह कर लीलारस हेतु अपना पुष्प होना सफल बना रही हैं।

       श्यामा जु प्रकृति व सखियों के स्नेहवर्षण में घिरे अपने प्रियतम को देख अति विभोर हो रहीं हैं।इस मधुर प्राकृतिक अप्राकृत नेह समिलन में प्रिया जु के हृदय में व्याकुलता और पूर्णता एक साथ श्वासों संग भीतर बाहर हाव भावरूप बह रही है।जैसे जैसे लाड़ली जु का हृदय तरंगायित होता है वैसे वैसे नव नवीन कमल खिल रहे हैं।

      रज अणु फूट कर अंकुरित हुआ और प्राकृतिक ढंग से सूर्य की किरणों की हल्की उष्णता व पवन व धरा की मधुर शीतलता पाते हुए बढ़ने लगता है।सखियों व श्यामा जु की श्वासों व महक ने इसे माधुर्य महक प्रदान कर दी है।कलीरूप यह रज अणु जो मोरकुटी की भजन माधुर्य में सौभाग्य वश धरा में जा समाया था वह अब पलक झपकते ही एक सुंदर कमल पुष्प में परिणति पाकर खिलेगा।कहने को प्राकृतिक पुष्प वल्लरियाँ खिली अधखिली मनमोहक हैं पर इनकी रज अणु से मकरंद तक भावपूर्ण जीवन अप्राकृतिक ही है जो सामान्यतःजन जीवन से अनछुआ ही रहता है।इनकी मधुर महक में भी श्यामा श्यामसुंदर जु के मिलन की सगुठित चाहत छिपी हुई रहती है यहां की पावन धरा पर।इनके पास अगर कोई रसिक कर्ण लगाकर सुने तो सच एक संगीत सुनाई आता है जिनके भावस्पर्श से इनकी प्रेम ध्वनियाँ गुंजायमान हो पहुँच जातीं हैं युगल कर्णफूलों व हिलती नाचती सब आभूषण ध्वनियों से।

    जैसे ये गा रहे हों-

"प्यारे आकर हँसकर तुरंत खड़े होंगे वे मेरे पास।
देख उन्हें मैं सँकुचित होकर मुँह ढक लूँगी, कर मृदु हास॥
रस-सागर नटनागर वे यह देख धरेंगे बसनाचल।
उछलेगा तब हृदय,बहेगा नेत्रों से शुचि प्रेम-सलिल॥
कर को पकड़ सुनायेंगे वे मृदु वाणी होकर गद्‌‌गद।
अवश बनूँगी मैं प्रेमातुर,बह जायेगा सारा मद॥
प्रेम-‌आर्त वे देख प्राण-प्रिय मुझे मनायेंगे मन खोल।
खोलेंगे रहस्य सब मधुमय शुचि बचनों में मिश्री घोल॥
देख सु‌अवसर प्यारे मेरी पूरेंगे सब मनकी आस।
मुझे सदा के लिये स्नेह दे, रख लेंगे अपने ही पास॥"

      बलिहार  !!अद्भुत रस भरा है निकुंज की धराधाम में जिसका स्पर्श एक मात्र रज अणु में भी प्राण डाल देता है।वृंदावन की पावन धरा जिस पर श्यामा श्यामसुंदर जु नंगे पाँव लीला अट्ठकेलियाँ करते रहते हैं उनकी पद रज में मिल एक हिमअणु भी पिघल कर भावुक हो उठता है और श्यामा जु के माधुर्य रस की तनिक भर महक ही इसे रससार करती रसिक ही बना देती है।नि:शब्द को शब्द और शब्द को भी मौन में डुबाता यह लीलारस का गहनतम असर रसिक हृदय की वीणा की तारों पर कलम को भी जड़ता प्रदान कर रूकने का इशारा दे रहा है।जैसे कह रहा हो'बस !जिओ' !!
क्रमशः

जय जय युगल !!
जय जय युगलरस विपिन वृंदावन  !!

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