4

मोरकुटी युगलरस भाव-4

जय जय श्यामाश्याम  !!
श्यामा जु की रूपछटा अत्यधिक लुभावनी लग रही है।उनके हस्तकमल में गुलाबी गुलाब शौभायमान अपने को बड़भागी मान महका रहा है श्यामसुंदर जु की नासिका को और उन्हें बार बार प्रिया जु की ओर आकर्षित करता हुआ उन्हें जैसे चिढ़ा रहा हो कि अभी श्यामसुंदर जु को श्यामा जु का हाथ थामने का मौका नहीं मिला।

     श्यामसुंदर जु वैसे तो श्यामा जु से ही अपनी दृष्टि नहीं हटा पा रहे हैं और एक टक उनकी रूपमाधुरी का पान कर रहे हैं पर श्यामा जु तो पूर्णतः डूबी हुईं हैं मयूर मयूरी के नृत्य में।श्यामा जु के ध्यान में विक्षेप ना हो इस भाव से वे कभी कभी मयूर युगल पर दृष्टि डाल लेते हैं और श्यामा जु की रसतन्मयता का कारण उनके नृत्य में ढूँढने लगते हैं।यूँ तो ये मयूर मयूरी भी श्यामा जु को सुख पहुँचे इस हेतु श्यामसुंदर जु के भाव से भरे ही नृत्य कर रहे हैं पर फिर भी ये श्यामसुंदर जु की चंचलता कि वो इसका श्रेय भी श्यामा जी के दृष्टिकोण को देते हैं और मानते हैं कि यह श्यामा जु के मन की विचित्र सुंदरता ही है जो इन्हें अद्भुत क्रीड़ाएँ करवा रही हैं।

       विश्वविमोहन श्यामसुंदर जु स्वयं रूप की अद्भुत निराली रसरूपराशि हैं पर श्यामा जु के समक्ष स्वयं को फीका मान लेते हैं।श्यामा जु के सुनहरे गौरवर्ण स्वरूप के सामने श्यामसुंदर जु का रूपरंग नीलवर्ण अवश्य दिखता पर यही अगर श्यामा जु के मुख से अपने प्रियतम श्यामसुंदर जु की रूपमाधुरी का वर्णन सुनना हो तो श्यामा जु के पास भी लफ्जों की कमी पड़ जाए।युगल परस्पर एक दूसरे को ही सब श्रेय देते हैं और स्वयं को दूसरे के नाकाबिल ही बताते हैं और श्यामसुंदर तो श्यामा जु की चाटुकारितावश भी खुद को उनसे सदा न्यून ही बताते हैं।यह तो रसिक प्रेमी हृदयों और सखियों की चतुराई ही है जो इनके सौंदर्य में भेद कर जाते हैं अन्यथा आईने को आईना दिखाया जाए तो छविभेद कहाँ ठहरे।हाय !!

     प्रियतम श्यामसुंदर जु ने पीतवर्ण वस्त्र धारण कर उस पर नीले हरे रंग का गहरा लहलहाता सुंदर सुनहरे रत्नों से जड़ा ओरछा ले रखा है।उनके नीलबदन पर तरह तरह से जो आभूषण हैं वे जैसे सुंदर सुबह के आसमान ने सूर्य की किरणों से लाल रंग चुरा अपने तन पर तारे सजा लिए हों।चरणों में पायल काछनी पर कमरबंध भुजाओं पर बाजुबंध गले में वैजयंती माला विशाल वक्ष् पर लहराती पतली ओढ़नी कानों में कुण्डल नासिका की सुनहरी बेसर और घुंघराली अल्कों पर सजा मोर मुकुट !!अहा !क्या कहने !!

बलिहार  !! अद्भुत रस श्रृंगार निकुंज लीला को अत्यधिक सुंदरतम विस्तार दे रहा है और प्रेमी हृदय की लहलहाती भावतरंगों को उन्माद में डुबोता जा रहा है।ऐसी रूपमाधुरी कि समक्ष कैसा भी कुछ भी दृश्य हो उसमें स्वत:ही गहन रस ही रस अनुभूत होना ही है।
क्रमशः

जय जय युगल  !!
जय जय युगलरस विपिन वृंदावन  !!

Comments

Popular posts from this blog

शुद्ध भक्त चरण रेणु

श्री शिक्षा अष्टकम

श्री राधा 1008 नाम माला