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मोरकुटी युगलरस-15

जय जय श्यामाश्याम  !!
श्यामा श्यामसुंदर जु अपलक परस्पर निहार रहे हैं।दोनों अभी तक बिन स्पर्श किए चारों इंद्रियों से रसपान कर रहे हैं।श्यामा जु की सौम्यता और श्यामसुंदर जु से रस निर्झर बह रहा है जिससे प्रकृति में अर्धअंकुरित भावलताएं पुष्प इत्यादि सब प्रफुल्लित होते नाच उठे हैं।श्यामा जु की प्यारे जु को निहारने से नेत्र प्यास व श्यामसुंदर जु के ललायित रसअधर उत्तरोत्तर परस्पर रसतृषा को बढ़ा रहे हैं।

      एक तरफ जहाँ अभिन्न होते हुए रस विस्तार के अक्षुण्ण पलों में श्यामा श्यामसुंदर जु नयन अधर उलझाये खड़े हैं नृत्य मुद्रा में वहीं भीतर विरहताप से इनकी देह जलने लगीं हैं।परस्पर दोनों एक दूसरे के भावों में डूबे हुए भी हैं और अलग देखने पर जड़ता भी उतर रही है।एक ही पल में मिलित भाव युगल के अर्ध निमलित नयनों को नम कर रहा है।इनके परस्पर निहारने में रस भी है पर अंतर में ताप इतना बढ़ रहा है।जैसे बूँद में शीतलता और ताप एक साथ हो तो रस स्वतः फूट पड़ता है।जल की शीतलता और सोम का ताप बढ़ कर जब मिलता है तो रस थिरक उठता है।

       मोरकुटी में लीला कुंज के पेड़ की शाखा से सिमटी सी बैठी भ्रमरी के नयन कोर से हिमकण झर कर पत्र से फिसल सूर्य से ताप पाकर वीणा की मधुर तान से टकरा जाता है।यहाँ यह हिमअणु से एक प्राकृतिक ढंग से सूर्य के ताप से जल अणु और फिर पत्र से फिसल कर रस और मधुर तान को छू कर माधुर्य पा जाता है।यह प्राकृतिक विकास तो है ही पर इसका मधुर रस को छू जाना मोरकुटी की धरा धाम से उठ रही दिव्य आभा का असर है जो श्यामा श्यामसुंदर जु के रस से महक कर इत्र का कार्य कर गई है।

      ललिता सखी जु की महकती मधुर अंगकांति को छूते ही इसमें से ऊष्णता तो वाष्पित हो जाती है और शीतलता जल रूप होकर धरा में समा जाती है।पर रस पिपासु ने जैसे ही रस को छुआ तो यह एक रज अणु बन श्रीनिकुंज की धरा पर मधुर रूप थिरक उठता है।अद्भुत रस प्रवाह जड़ता से चेतनता की ओर।

         एक गहन स्पंदन ने छू दिया है और सिहरन से छलकने तक व बह कर थिरकने तक का जो अद्भुत रसप्रवाह हुआ उससे यह हिमअणु रजअणु में तब्दील हो जाता है।धराधाम की पावन रज जिसे श्यामा श्यामसुंदर जु ने सदा अपने अति सुकोमलतम पदों से सहलाया निखराया उस धरा पर यह अणु एक बीजरूप है।धरा में समा भी गया है और पवन में खो भी गया।रस से रसराज तक जाने का रहस्यमय पथ जो ब्रजरज की छुअन से ही प्रगटता है।

         बलिहार  !!प्रियाप्रियतम जु के अद्भुत सुंदर प्रेम क्रीड़ा जो स्वसुख से परे प्रकृति का भी समार्दन करती है और प्रियतम श्यामसुंदर जु के सुख से लिप्त भी।अद्भुत सुंदर भावधारा में बहते रसिक हृदय के गहन अनोखे भावों में सम्पूर्ण निकुंज धाम सखियों के संग में स्पंदनयुक्त।
क्रमशः

जय जय युगल  !!
जय जय युगलरस विपिन वृंदावन  !!

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