श्री कृष्ण का आनन्द

श्री चैतन्य चरितामृत में श्री चैतन्य महाप्रभु एवं श्री विष्णुप्रिया देवी जी मे आपसी संवाद मे महाप्रभु जी कहते है कि हे देवी ! तुममें दो गुण अति विशेष है - एक तो आप तैरना जानती हो, दूसरा आप बुढ़ो की सेवा मे बहुत निपुण हो। लेकिन देवी यह बताओ कि तुम कुछ पढ़ि-लिखी भी हो कि नहीं हो। महाप्रभु ने मुस्कराते हुआ पूछा।

श्री विष्णुप्रिया देवी जी ने मुस्कराते हुए कहा कि स्वामी ! बड़े-बड़े पढ़े-लिखें व्यक्ति आपके सामने आकर अनपढ़ और गवार हो जाते है। तू मैं तो आपके चरणों की दासी मैं कहाँ पढ़ी-लिखी हूँ।

श्री महाप्रभु ने कहा-नहीं-नहीं। टालने वाली बात मत करो। तब विष्णुप्रिया देवी ने कहा कि पहले तो घर मे ही पढ़ाई होती थी। बस थोड़ा सा मैने पढ़ा है।

अच्छा तुम बताओ वास्तव मे शिक्षा का परम सार क्या है?देवी बोली शिक्षा का परम सार है हृदय की स्वच्छता। अच्छा हृदय की परम स्वच्छता का सार क्या है? हृदय की परम स्वच्छता का सार है शुभचिन्तन। अच्छा बताओ शुभचिन्तन का परम सार क्या है? बोली शुभचिन्तन का परम सार है प्रेम। अच्छा बोले कि प्रेम का प्रत्यक्ष स्वरूप क्या है? बोली कृष्ण । बोले- श्रीकृष्ण का व्यापक रूप क्या है? बोली आनन्द ! अच्छा बताओ कि आनन्द की घनमूर्ति कौन है?श्रीविष्णुप्रिया देवी मौन होकर सिर झुकाकर खड़ी हो गई।

श्री महाप्रभु बोले देवी ! तुम श्रीकृष्ण तक पहुंच गयी आनन्द तक पहुँच गयी। आनन्द की घनमूर्ति कौन है यह तो आपने बताया नहीं। श्रीविष्णुप्रिया देवी बोली मैं जानती हूं। बोले अरे ! जानती हो तो बताओ?

श्री विष्णुप्रिया देवी ने मुस्कराते हुए कहा कि श्रीकृष्ण के आनन्द की घनमूर्ति अगर कोई है तो वो निमाई पण्डित है। श्रीमहाप्रभु आनन्द में प्रसन्न हो उठे।

🙌🏼 हरि बोल

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