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मोरकुटी युगलरस लीला-6

जय जय श्यामाश्याम  !!
ललिता सखी जु के अद्भुत वीणा वादन से सम्पूर्ण निकुंज का दर्शन बदल चुका है।कण कण से महक व सितारों सी चमक उठ रही है जैसे नाच उठा हो निकुंज।

     रसराज स्वयं रसरूप बन समा गए हैं संगीत की ध्वनि में और उनके मन के सुंदर भावों से ही श्री निकुंज की धरा पर सब ओर प्रिया जु की सेवा हेतु जड़ चेतन जीव वस्तु इत्यादि जगमगा उठे हैं।इस जगमगाहट से निकुंज असीम निर्मल  भावयुक्त हो उठा है और अपनी रूपमाधुरी व प्रियाप्रियतम जु से अभिन्नता के कारण उनके चक्षुओं व कर्णरूंधों में समा रहा है।

    सर्वत्र संगीत की गहन धमनियों से प्रकृति की चमक से श्यामा जु की माँग में सजे पुष्प रूपी सितारे जगमगा उठते हैं।उनकी देह पर पहने आभूषण झिलमिला उठे।अंग अंग से उठ रही सौरभ कांति वायुमंडल को महका रही है।उनकी श्वासों व रोमकूपों से जो"श्यामसुंदर श्यामसुंदर"नाम की प्रतिध्वनि हो रही है उसकी गूँज निकुंज में वीणा नाद के साथ तरंगों सी बहने लगती है।निकुंज के सभी ओर ऐसा नाद भर रहा है कि कण कण नाम ध्वनि करता उल्लास से भर कर नीलपीतवर्ण हो रहा है।

     श्यामसुंदर जु एक क्षण के लिए जैसे प्रकृति का अनुकूल संचालन कर रहे हों और श्रीप्रिया जु को आनंद देने हेतु डूब रहे हों।उनके हृदय में"राधा राधा"नाम ध्वनित हो रहा है और उनके  श्रृंगार की दमक भी जैसे चाँद की चाँदनी बन बिखर रही है।श्रीयुगल की नाम माला की ध्वनि तीव्र होते होते घुलने लगी है और कौन अब क्या उच्चार रहा इसमें कोई भेद ना रहा।समस्त निकुंज में"राधा श्यामसुंदर"व ललिता जु की वीणा का राग और धरा पर समस्त जीवों के पदथाप की ही लहराती तरंगें उठ रही है।

      परस्पर नाम उच्चारण जो हो तो भीतर रहा है बिन कहे ही सुन लिया हो जैसे श्री युगल ने।श्यामा जु की पलक झपकने से उनकी बिंदिया चमक उठती है और उसकी प्रतिछाया पड़ती है श्यामसुंदर जु के हृदय से लगी कौस्तुभ मणि पर।

      आह !!जैसे श्यामा श्यामसुंदर जु के अंतर्निहित भाव ही एक दूसरे से टकरा गए हों और बिन कहे ही सब सुन लिया हो युगल ने।श्यामा जु श्यामसुंदर जु को और श्यामसुंदर जु श्यामा जु को निहारते हैं और नज़र मिलते ही सृष्टि जैसे ठहर ही जाती है दोनों के लिए।परस्पर ना जाने अपलक कब तक यूँ ही डूबे रहते हैं युगल।

      बलिहार  !!परस्पर मणियों की चमक से श्यामा जु का ध्यान श्यामसुंदर जु की ओर जाता है और श्यामसुंदर जु का श्यामा जु की ओर।अद्भुत उच्छल्लन रसिक हृदय में ललिता जु के वीणा नाद से।रोम रोम चहक उठा प्रेमी हृदय का।नाच उठा ललिता जु की वीणा की तारों सा।रसिक हृदय में रस विस्तार को प्रेमी ही जान सकता है या रसिकेन्द्र रसेश्वरी श्यामा श्यामसुंदर जु !!
क्रमशः

जय जय युगल  !!
जय जय युगलरस विपिन वृंदावन  !!

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