मञ्जरी सेवा

*मंजरी का जन्म एवं सेवा प्राप्ति*

इसमे  मंजरी के जन्म और श्री राधा चरण सेवा प्राप्ति का वर्णन किया है।

साधक की रूचि और स्वभाव के अनुसार गुरु उन्हें सिद्ध स्वरुप प्रदान करते हैं।साधक को नाम,वेश,रंग,सेवा सब बताते हैं।साधक इसी सिद्ध स्वरूप में स्वयं का चिंतन करता है।युगल की लीलाओं का स्मरण करता है।ये है अपना सिद्ध स्वरुप चिंतन।

साधक देह में चित्त पूर्ण शुद्ध होने पर भाव उदय होते हैं।प्रेम प्रकट होता है।फिर साधक देह शांत होने पर(पंचभौतिक देह छूट जाने पर)साधक अपने सिद्ध स्वरुप के अनुरूप देह प्राप्त करता है।

ये किस क्रम से होता है उसको समझते हैं-

1) *बरसाने में जन्म*-

जहाँ जिस ब्रह्माण्ड में उस वक़्त ठाकुरजी की प्रकट लीला चल रही होती है,वहां के भौम वृन्दावन(बरसाने में) में वो किसी गोपी के गर्भ से बालिका के रूप में जन्म लेता है।

2) उसके बाद बालिका बड़ी होती है और 12-13 वर्ष की अवस्था तक पहुँचती है।मंजरी की नित्य आयु सदा 12-13 वर्ष की रहती है।इससे आगे नही बढ़ती।ये आयु में राधारानी से छोटी होती हैं।

3)12-13 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर युगल से न मिल पाने का,सेवा न कर पाने का दुःख और तीव्र हो जाता है।वो उनके नाम का कीर्तन करती है,जप करती है।साधक देह में  वियोग का जिस स्तर तक उसने अनुभव किया था वैसा ही अनुभव करती है।यमुना जी में जल भरने जाती है।

4) ऐसे ही यमुना जी जाते हुए किसी भाग्यशाली दिन उसकी मुलाकात उसके गुरु सखी और उसकी परंपरा के मुख्य मंजरी जी से होती है।मुख्य मंजरी जैसे रूप मंजरी जी,रति मंजरी जी आदि।

5) गुरु मंजरी और परिवार की मुख्य मंजरी उन्हें अपने यूथेश्वरी से मिलवाने ले जाती है।
यूथेश्वरी मतलब ललिता सखी,विशाखा सखी आदि।हर यूथेश्वरी के यूथ(समूह) में लाखों सखियां होती हैं, जो उनके आनुगत्य में होती हैं,उनके कहे अनुसार चलती हैं।

6) यूथेश्वरी सखी उस मंजरी को उसका सेवा कुञ्ज बताती है।अर्थात उसको कहाँ सेवा करनी ये बताती है।

7) अब मुख्य मंजरी जी और दूसरी मंजरियां इस नई मंजरी को नाना प्रकार की सेवा सिखाती हैं।एक एक सेवा वो मंजरी मन लगाकर सीखती है और दक्षता प्राप्त करती है।नृत्य,संगीत,चित्रकला,पाक शास्त्र,विज्ञान सब में पारंगत होती है।प्रमुख मंजरी जी एवं दूसरी मंजरियां उसे मंजरी भाव भली प्रकार समझती है।उसे चतुर और दक्ष बनातीं हैं।

(मंजरी इतनी चतुर और दक्ष होती है कि राधारानी के नेत्रों की भाषा समझ कर काम कर सकती है,राधारानी को बोलना भी नही पड़ता।राधारानी की सेवा में इतनी निपुण होती है कि श्याम सुंदर भी दंग रह जाते हैं।)

7) इतनी दक्षता प्राप्त कर लेने पर प्रमुख मंजरी उन्हें युगल से मिलवाने ले जाती हैं और चरणों में सौंप देती है।

8) मंजरी सदा सदा के लिए युगल सेवा में नियुक्त हो जाती है।

यहाँ ये बताना आवश्यक की ज़रूरी नही हर साधक की सेवा प्राप्ति का यही सीक्वेंस हो।इसमें हेर फेर भी हो सकता है।परम् स्वतंत्र ठाकुरजी और ठकुरानी सबकुछ करने में समर्थ हैं।

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Comments

  1. इंकव नाम , स्वरूप ओर सेवा कैसे विदित हो

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