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मोरकुटी युगलरस लीला-30

जय जय श्यामाश्याम  !!
पूर्णिमा की अर्ध रात्रि होने को है।प्राकृत चाँद सितारों ने भी चाँदनी की चादर ओढ़ ली है निकुंज की धरा पर क्योंकि इस अप्राकृत भावराज्य में अब पूर्णतः सब कुछ अप्राकृत होकर अप्राकृत लीला का हिस्सा बन चुका है।प्राकृतिक जीवों का यहाँ आगमन नहीं।वन्य व जल विहारी पक्षियों ने भी अप्राकृत गहन रसराज्य में होते हुए भी समाधिस्थ निद्रा को धारण कर लिया है।

        भावराज्य में शरीर तो क्या शारीरिक प्रेम का भी आवरण मात्र भी आगमन नहीं है।यहाँ का दिव्य प्रेम जो श्यामाश्याम जु से अनुग्रहीत है उसका अनुगमन भी उनमें ही होता है।सखियाँ इस अद्भुत भावराज्य की अनुयायी तो अवश्य हैं पर उनका श्रीयुगल से विभिन्न कोई स्वरूप ही नहीं है।श्यामा श्यामसुंदर जु स्वयं भी केवल रसक्रीड़ा हेतु द्विरूप धरते हैं और प्रेम की प्रगाढ़ता में एकप्राण होकर केवल प्रेम स्वरूप ही निकुंज की धरा पर विहरते हैं।यहाँ कोई दूसरा है ही नहीं ना ही दूसरे का यहाँ प्रवेश ही है।यहाँ केवल वही है जो प्रियाप्रियतम स्वरूपधारी उनके लिए उनके द्वारा ही चुना गया है।

"प्रिया-प्रीतम नित करत बिहार।
नित्य निकुंज परम सोभन सुचि माया-गुन-गो-पार।।
नहिँ तहँ रबि-ससि की दुति,नहिँ तहँ भौतिक अन्य प्रकास।
नित्य उदित दिव्याभा तनु की छाई रहत अकास।।
जिन की पद-नख-प्रभा ब्रह्म बनि ग्यानी-जन-मन छाई।
जिन की ही सत्ता-प्रभुता सब जग मेँ रही समाई।।
जिन के हास-बिलास-रास-रस सब निरगुन हरि-रूप।
मायिक गुन प्रबसित न तहाँ,चिन्मय सब वस्तु अनूप।।
दिव्य निकुंज मध्य नहिँ संभव असरीरी-अस्तित्व।
बिलसित नित्य दिव्य अति भगवद्-रूप प्रेम कौ तत्व।।
सखी-मंजरी,सज्या-सोभा,लीला-साधन अन्य।
सबहि स्याम-स्यामामय,प्राकृत नाम,भए ते धन्य।।
कहत-सुनत-समझुत सोइ मानव,जो तजि भोगासक्ति।
रहत निरंतर सेवा-रत,जो करत भाव-रस भक्ति।।
सोइ देखत निकुंज की लीला अनुपम दिव्य महान।
जिन को दै अधिकार दिखावत स्वयं जुगल भगवान।।"

            सखियों व श्यामा जु के आभूषणों की चमक ही निकुंज को रौशनाती है और श्यामसुंदर जु की श्यामवर्ण आभा ही निकुंज की रात्रि समान है।यहाँ की पवन श्रीयुगल व सखियों की महक भरी श्वासें हैं।पदों की सुघड़ मंद थाप निकुंज की धड़कन स्वरूप है।लता वल्लरियँ धाया प्रतिछाया हैं।किशोरी जु व सखियों की वेणियों में सजे पुष्प व चुनरियों के रत्न चाँद सितारे हैं तो उनकी माथे की बिंदियाँ सूर्य सी रौशनी बिखरातीं किरणें हैं।उनकी आँखों की कजरारी रेख अंधियारी रात की चाँदनी व पलकों का झपकना दामिनी की दमक के समान है।श्यामसुंदर जु के काले कजरारे नेत्र आसमान हैं तो घुंघराले बाल जो कभी उनके तो कभी श्यामा जु व सखियों के सुनहरे कपोलों को छू जाते हैं वे श्यामल घन स्वरूप हैं।

          सखियाँ हाथों में हाथ लिए श्यामसुंदर जु संग नाच रहीं हैं।चिन्मय धरा पर चिन्मय संगीत लहरियाँ स्वतः मध्यम स्वर से गूँज रही हैं।ना तो सखियों के हाथ में कोई दिव्य वाद्य यंत्र है और ना ही श्यामसुंदर जु के हाथ कोई वंशी।फिर भी दिव्य संगीत लहरियाँ पवन संग बह रही हैं।सखियों व श्यामा श्यामसुंदर जु की नूपुर पायल की गहन धमनियाँ व पद थाप कमल पुष्पों की दिव्य धरा के मृदंग व झांझ हैं तो कटि की करधनी पर लटकती घंटियाँ सुमधुर छैनों की ध्वनि समान।परस्पर टकराती चूड़ियों की खनक से स्वतः सात स्वर निकल पड़ते हैं और कंठहारों पर लगे मोती व नग का आपसी मधुर संगीत जैसे शहनाई वादन कर रहा है।कर्णफूल व बालों में गुंथे छोटे घुंघरू जैसे तारों पर वीणा का राग मधुरिम राग ही हो।

        ता ता थई थई के मंद एकरस स्वर जो सखियों के मुख से स्वतः निकल रहे हैं वही रास की रात्रि में प्रेमगीत है।अद्भुत दिव्य आभा फैली है निकुंज की धरा पर जिसमें श्यामा श्यामसुंदर जु नामक मंत्रमुग्ध कर देने वाली ऐसी मय है जिसने सखियों को देहावरण समय इत्यादि का बोध भुला दिया है।पल पल नवल ताल पर श्यामा श्यामसुंदर जु के पद थिरक रहे हैं।प्रेम रस अनवरत बरस रहा है मोरकुटी की पावन धरा पर।

             गहन रस की बरसात में रास ने महारास का रूप ले लिया है।श्री युगल भावरस में प्रेम की श्रीअंगों से अद्भुत वर्षा कर रहे हैं।श्यामा जु के नेत्रों से छलक रहा प्रेम रस श्यामसुंदर जु के हृदय में समा रहा है तो श्यामसुंदर जु के नयनकोरों से बहता रस प्रिया जु के चरणों को धो रहा है।लाल सुर्ख अधरों पर प्रेमरस की ओसबूँदें परस्पर युगल को नेत्रसुख भी दे रहीं हैं तो उनकी रस लालसा भी बढ़ा रहीं हैं।युगल के श्रीअंगों का परस्पर स्पर्श उन्हें तो संपादित कर ही रहा है साथ ही सखियों को भी कम्पायमान करता है।

          प्रत्येक गोपी के साथ श्यामसुंदर जु कमल पुष्प पर रास रचाते हुए चिन्मय श्रीअंगों का स्पर्श कर रहे हैं।ऐसा जादू चलाया है लीलाधर ने कि उनके स्पर्श से हर एक सखी राधे ही हो गई है।श्यामा जु की सखियों का स्वयं राधा हो जाना ही राधा तत्व है क्यों कि सगरी सखियाँ श्यामा जु का श्यामसुंदर जु के प्रति तत्सुख प्रेम भाव लिए सदैव"राधा राधा"ही जपती हैं।कृष्ण सुख हेतु ही वे श्यामा जु की आज्ञा से रसक्रीड़ा में महारास का गूढ़तम हिस्सा बनती हैं।नंदलाल भी अबोध रसमग्न हुए सखियों को राधे जु की भाव विभुतियाँ जान ही उन संग गहन रासक्रीड़ा करते हैं वो भी प्रियासुख हेतु।

       बलिहार  !!अद्भुत रसक्रीड़ा स्थली पर अद्भुत रास रचाते अद्भुत मनमोहन श्यामसुंदर जु और सुघड़ सलोनी मनमोहिनी श्रीराधे।अप्राकृत राज्य का अद्भुत तत्सुख भावभीना अप्राकृत प्रेम जाल जिसमें सखियाँ वहीं रसिकवर स्वतंत्र हैं पर श्यामा श्यामसुंदर जु की प्रेम बेड़ियों में तन मन से जकड़े इच्छुक अस्वतंत्र भी।ऐसे दिव्य चिन्मय प्रेम जाल से कोई छूटना भी क्यों चाहेगा भला।
क्रमशः

जय जय युगल  !!
जय जय युगलरस विपिन वृंदावन  !!

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